आप लोगो के प्यार और आशीर्वाद के वजह मैं खुद को रोक नही पाता बहुत व्यस्तता से घिरे होने के बावजूद भी आज यह मन नही माना और और बस कुछ लाइनें लेकर फिर से आ गया. परंतु अब शायद कुछ दिन बाद ही यहाँ आना संभव हो तो बस आप सभी से आग्रह है की ऐसे स्नेह बनाएँ रखे ...
इंसानों को इंसानों से इतनी भी मायूसी क्यों?
प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में,फिर भी ये कंजूसी क्यों?
क्यों बारिश की बूँद नदारद,
क्यों सूरज है आग भरा,
क्यों सावन है उलझा उलझा,
क्यों बसंत है डरा डरा,
क्यों खुश्बू की हवा से यारी,
धीमी पड़ती जाती है,
इंसानों की करतूतों से,
क्यों धरती शरमाती है,
शोर शराबा एक तरफ है, एक तरफ खामोशी क्यों?
प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
क्यों मंदिर मस्जिद होते हैं,
जाति-धर्म के झगड़े क्यों,
क्यों ज़मीन के लिए लड़ाई,
क्यों पिछड़े व अगड़े क्यों,
अपने दुख पर दुख होता है,
गैरों पर खुशहाली क्यों,
भौतिकता की बलि चढ़ गयी,
वृक्षों की हरियाली क्यों,
कब तक जागेंगे जग वाले, यारो ये बेहोशी क्यों??
प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
क्यों ईमान धरम है गायब,
बेईमानों के नाम हुए,
देखो पैसों की लालच में,
क्यों नेता बदनाम हुए,
रात भी सहमा सहमा रहता,
हर दिन होती एक सनसनी,
क्यों दहेज की माँग बढ़ी,
क्यों है बेटी बोझ बनी,
निर्धनता अभिशाप बन गयी, इसमें बेटी दोषी क्यों??
प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
20 comments:
कब तक जागेंगे जग वाले, यारो ये बेहोशी क्यों?? प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
क्यों इंसान धरम है गायब, बेईमानों के नाम हुए, देखो पैसों की लालच में, क्यों नेता बदनाम हुए, रात भी सहमा सहमा रहता, हर दिन होती एक सनसनी, क्यों दहेज की माँग बढ़ी, क्यों है बेटी बोझ बनी,
निर्धनता अभिशाप बन गयी, इसमें बेटी दोषी क्यों?? प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
yeh panktiyan dil chhoo gayin
bahut hi badhiya kavita........
सुंदर विचारों को शब्द दिया है आपने .. बहुत अच्छी लगी यह रचना !!
विनोद जी आपने अपने व्यस्ततम समय मे से समय निकाला इसके लिये धन्यवाद ....सुन्दर भाव कविता का...
bahut sundar rachna.
गजब रचना ले आये विनोद भाई. अभिभूत हूँ, जय हो उस कलम की!!
Jo cheez muft me miltee hai, usee kee qeemat hame samajh nahee aatee...' duniya jise kahte hain, jaadu ka khilauna hai, mil jaye to mittee hai, kho jaye to sona hai"!
Behad sundar rachna hai, sahaj prawahit hotee huee..
बहुत ही वाजिब सवाल है आपका ...........यह सही मे एक विड्म्बना है,बहुत ही सुन्दर विचार है आपके जिसमे..........भावनाओ का समन्दर है .....विचार जगे हुये है!बेहतरीन !बधाई!
ye behad bha gayi
क्यों मंदिर मस्जिद होते हैं, जाति-धर्म के झगड़े क्यों, क्यों ज़मीन के लिए लड़ाई, क्यों पिछड़े व अगड़े क्यों, अपने दुख पर दुख होता है, गैरों पर खुशहाली क्यों, भौतिकता की बलि चढ़ गयी, वृक्षों की हरियाली क्यों,
कब तक जागेंगे जग वाले, यारो ये बेहोशी क्यों?? प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
बहुत सुंदर नज़्म लिखी है आपने
...बधाई
बहुत सुन्दर विनोद जी !
निर्धनता अभिशाप बन गयी,
इसमें बेटी दोषी क्यों??
प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में,
फिर भी ये कंजूसी क्यों??
पाण्डेय जी!
इस क्यों का जवाब हम भी ढूँढ रहे हैं।
बहुत बढ़िया कविता लिखी है, आपने!
बधाई!
insaan को जो चीज़ aasaani से milti है उसकी kadr नहीं होती .......... isliye प्रेम की भी kadr नहीं है .......... आपने बहुत ही कमाल का लिखा है ..... अगर insaan insaan से प्रेम करना seekh जाए तो aadhi samasyaayn तो samasyaaen ही न bane ..........
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रात भी सहमा सहमा रहता,
हर दिन होती एक सनसनी,
बेहतरीन अभिव्यक्ति दी है आपने आज के हालात की.
बहुत सुन्दर
aaj ke samajik parivesh se jude samyik prashna uthaye hain aapne is rachna mein!
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है ! बहुत बहुत बधाई!
प्रिय विनोद,
क्यों बारिश की बूँद नदारद,
क्यों सूरज है आग भरा,
क्यों सावन है उलझा उलझा,
क्यों बसंत है डरा डरा,
क्यों खुश्बू की हवा से यारी धीमी पड़ती जाती है
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
किस किस पँक्ति का कहूम्म पूरी रचना ही लाजवाब है ।इतने व्यस्त रह कर भी इतनी सुन्दर रचना लिखना कमाल है बहुत बहुत बधाई
विनोद जी, कमाल की रचना है. हरेक पंक्ति पर 'वाह' निकलती है. बधाई.
महावीर शर्मा
इस बार दिल से बधाई निकल रही है.... शाब्बास.. वाह
exceelent creation
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