Thursday, November 5, 2009

क्यों, होता है ये सब

आप लोगो के प्यार और आशीर्वाद के वजह मैं खुद को रोक नही पाता बहुत व्यस्तता से घिरे होने के बावजूद भी आज यह मन नही माना और और बस कुछ लाइनें लेकर फिर से आ गया. परंतु अब शायद कुछ दिन बाद ही यहाँ आना संभव हो तो बस आप सभी से आग्रह है की ऐसे स्नेह बनाएँ रखे ...


इंसानों को इंसानों से इतनी भी मायूसी क्यों?

प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में,फिर भी ये कंजूसी क्यों?


क्यों बारिश की बूँद नदारद,

क्यों सूरज है आग भरा,

क्यों सावन है उलझा उलझा,

क्यों बसंत है डरा डरा,

क्यों खुश्बू की हवा से यारी,

धीमी पड़ती जाती है,

इंसानों की करतूतों से,

क्यों धरती शरमाती है,


शोर शराबा एक तरफ है, एक तरफ खामोशी क्यों?

प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??


क्यों मंदिर मस्जिद होते हैं,

जाति-धर्म के झगड़े क्यों,

क्यों ज़मीन के लिए लड़ाई,

क्यों पिछड़े व अगड़े क्यों,

अपने दुख पर दुख होता है,

गैरों पर खुशहाली क्यों,

भौतिकता की बलि चढ़ गयी,

वृक्षों की हरियाली क्यों,


कब तक जागेंगे जग वाले, यारो ये बेहोशी क्यों??

प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??


क्यों ईमान धरम है गायब,

बेईमानों के नाम हुए,

देखो पैसों की लालच में,

क्यों नेता बदनाम हुए,

रात भी सहमा सहमा रहता,

हर दिन होती एक सनसनी,

क्यों दहेज की माँग बढ़ी,

क्यों है बेटी बोझ बनी,


निर्धनता अभिशाप बन गयी, इसमें बेटी दोषी क्यों??

प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??

20 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

कब तक जागेंगे जग वाले, यारो ये बेहोशी क्यों?? प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??
क्यों इंसान धरम है गायब, बेईमानों के नाम हुए, देखो पैसों की लालच में, क्यों नेता बदनाम हुए, रात भी सहमा सहमा रहता, हर दिन होती एक सनसनी, क्यों दहेज की माँग बढ़ी, क्यों है बेटी बोझ बनी,
निर्धनता अभिशाप बन गयी, इसमें बेटी दोषी क्यों?? प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??


yeh panktiyan dil chhoo gayin


bahut hi badhiya kavita........

संगीता पुरी said...

सुंदर विचारों को शब्‍द दिया है आपने .. बहुत अच्‍छी लगी यह रचना !!

Mishra Pankaj said...

विनोद जी आपने अपने व्यस्ततम समय मे से समय निकाला इसके लिये धन्यवाद ....सुन्दर भाव कविता का...

kavita verma said...

bahut sundar rachna.

Udan Tashtari said...

गजब रचना ले आये विनोद भाई. अभिभूत हूँ, जय हो उस कलम की!!

kshama said...

Jo cheez muft me miltee hai, usee kee qeemat hame samajh nahee aatee...' duniya jise kahte hain, jaadu ka khilauna hai, mil jaye to mittee hai, kho jaye to sona hai"!
Behad sundar rachna hai, sahaj prawahit hotee huee..

ओम आर्य said...

बहुत ही वाजिब सवाल है आपका ...........यह सही मे एक विड्म्बना है,बहुत ही सुन्दर विचार है आपके जिसमे..........भावनाओ का समन्दर है .....विचार जगे हुये है!बेहतरीन !बधाई!

गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said...

ye behad bha gayi

क्यों मंदिर मस्जिद होते हैं, जाति-धर्म के झगड़े क्यों, क्यों ज़मीन के लिए लड़ाई, क्यों पिछड़े व अगड़े क्यों, अपने दुख पर दुख होता है, गैरों पर खुशहाली क्यों, भौतिकता की बलि चढ़ गयी, वृक्षों की हरियाली क्यों,
कब तक जागेंगे जग वाले, यारो ये बेहोशी क्यों?? प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में, फिर भी ये कंजूसी क्यों??

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत सुंदर नज़्म लिखी है आपने
...बधाई

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर विनोद जी !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

निर्धनता अभिशाप बन गयी,
इसमें बेटी दोषी क्यों??
प्रेम मुफ़्त है इस दुनिया में,
फिर भी ये कंजूसी क्यों??

पाण्डेय जी!
इस क्यों का जवाब हम भी ढूँढ रहे हैं।
बहुत बढ़िया कविता लिखी है, आपने!
बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

insaan को जो चीज़ aasaani से milti है उसकी kadr नहीं होती .......... isliye प्रेम की भी kadr नहीं है .......... आपने बहुत ही कमाल का लिखा है ..... अगर insaan insaan से प्रेम करना seekh जाए तो aadhi samasyaayn तो samasyaaen ही न bane ..........
.

M VERMA said...

रात भी सहमा सहमा रहता,
हर दिन होती एक सनसनी,
बेहतरीन अभिव्यक्ति दी है आपने आज के हालात की.
बहुत सुन्दर

Manish Kumar said...

aaj ke samajik parivesh se jude samyik prashna uthaye hain aapne is rachna mein!

Urmi said...

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है ! बहुत बहुत बधाई!

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रिय विनोद,

क्यों बारिश की बूँद नदारद,
क्यों सूरज है आग भरा,
क्यों सावन है उलझा उलझा,
क्यों बसंत है डरा डरा,
क्यों खुश्बू की हवा से यारी धीमी पड़ती जाती है

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

निर्मला कपिला said...

किस किस पँक्ति का कहूम्म पूरी रचना ही लाजवाब है ।इतने व्यस्त रह कर भी इतनी सुन्दर रचना लिखना कमाल है बहुत बहुत बधाई

महावीर said...

विनोद जी, कमाल की रचना है. हरेक पंक्ति पर 'वाह' निकलती है. बधाई.
महावीर शर्मा

योगेन्द्र मौदगिल said...

इस बार दिल से बधाई निकल रही है.... शाब्बास.. वाह

निर्झर'नीर said...

exceelent creation