Sunday, June 27, 2010

बादल जी के नाम एक खुला पत्र-----(विनोद कुमार पांडेय)

अभी सुबह ५ मिनट की बूंदा-बंदी के बाद शांत पड़े बादल जी के नाम एक पत्र है काव्य रस से ओत प्रोत शायद सभी को पसंद आए..


लो फिर टिपटिपा के चले गये|

खुशी हुई तुम आए थे,
थोड़ी देर ठहरते तो,
ऐसी भी क्या हुई बेरूख़ी,
थोड़ी देर बरसते तो,

मौसम खूब बनाए थे,पर बस भरमा के चले गये|

आँधी के झोंकों ने तेरे,
स्वागत में संगीत बजाई,
बिजली रानी तड़प-तड़प के,
अपने मन की व्यथा सुनाई,

सारी बातें अनदेखी कर,कान दबा के चले गये|

गर्मी के गर्म थपेड़ों से,
धरती भी हलकान पड़ी,
हाथ उठा कर तुमको पीने,
सारी दुनिया हुई खड़ी,

वो सब प्यासे आस लगाए,तुम तड़पा के चले गये|

चलो ठीक है अबकी जाओ,
पर जल्दी दोबारा आना,
दिन-दिन गर्मी बढ़ती जाती,
थोड़ी शीतलता पहुँचना,

मैं विनती करता हर बार,तुम बहका के चले गये|

21 comments:

Udan Tashtari said...

हम भी टिपटिपाने ही आय हैं मगर पूरा पढ़ने तक ठहरे..लम्बा लिखते तो लम्बा ठहरते. :)


बढ़िया रचना!

राजीव तनेजा said...

टिप टिप बरसा पानी...पानी ने आग लगा दी...
बहुत बढ़िया.. :-)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बादल आपकी पुकार अवश्य सुनेंगे!
--
हमारे यहाँ तो प्रति दिन कृपा कर ही देते हैं!
--
मैं उनसे कहूँगा कि वो आपको भी स्नेहसिक्त कर दैं!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अरे आप को भी तो एक अच्छी कविता दे कर चले गए.
...बधाई.

राम त्यागी said...

बहुत बढ़िया ...टिप टिप

डॉ टी एस दराल said...

आज फिर एक बदली छाई
आज फिर एक फुहार आई ।
चलने लगी है हौले हौले
आज फिर से वही पुरवाई।

आपकी कविता का असर हो गया । हम पर भी , मौसम पर भी ।

निर्मला कपिला said...

टिप्पणी की टिप टिप हम भी कर देते हैं बहुत अच्छी रचना बधाई

girish pankaj said...

dil ko chhoo lene valaageet hai vinod...badhai.

kshama said...

Yah bhi khoob kahi..ham bhi 'baraste' mausam ke intezaar me hain!

नीरज मुसाफ़िर said...

हम भी जब सुबह सोकर उठे थे, तो हर जगह छिडकाव हो रखा था। लेकिन बादल महाराज चले गये तो चले गये। उनकी मर्जी।

Mukesh K. Agrawal said...

बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है...

vandana gupta said...

सुन्दर प्रस्तुति।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर जी, अब इस पत्र को पतंग के साथ बांध कर बादलो को भेजे ना

Satish Saxena said...

बहुत खूब विनोद !
यह खुला ख़त बहुत अच्छा लगा शायद बादल कुछ शर्मिंदगी महसूस करें और बापस आ जाएँ ! भीषण गर्मीं में एक खूबसूरत रचना देने के लिए हार्दिक शुभकामनायें !

ZEAL said...

Our life is full of mirages. These clouds are also playing hide and seek with us. In a way teaching us the philosophy of life to live in moments.

Smart Indian said...

हम तडपते रह गये वो मुस्कुरा के चल दिये...

हरकीरत ' हीर' said...

अभी सुबह ५ मिनट की बूंदा-बंदी के बाद शांत पड़े बादल जी के नाम एक पत्र है
........
वाह..... बादल जी चिट्ठी आई है ....आई है ...विनोद जी की चिट्ठी आई है ......

बहुत खूब .....!!

स्वाति said...

बादल पर बहुत अछा लिखा है आप् ने

दिगम्बर नासवा said...

इन बादलों की आँखमिचोली तो चलती रहेगी .... पर जब जब ये जाम कर बरसेंगे तो क्या होगा .... सुंदर काव्य रचना है विनोद जी ... हर पंक्ति रंग में रंगी हुई ...

दिगम्बर नासवा said...

इन बादलों की आँखमिचोली तो चलती रहेगी .... पर जब जब ये जाम कर बरसेंगे तो क्या होगा .... सुंदर काव्य रचना है विनोद जी ... हर पंक्ति रंग में रंगी हुई ...

shashiKant said...

Ati subder Rachna...........