जगह-जगह सरकारी चमचे
पब्लिक की लाचारी चमचे
मंत्री जी को भी पसंद है
पढ़े-लिखे अधिकारी चमचे
शहद घुली सी मीठी बोली
लगते हैं मनुहारी चमचे
सब होगा बस रुपया दो
इतने तो हितकारी चमचे
थाना हो या कोर्ट-कचहरी
अफ़सर पर भी भारी चमचे
जनता को ठगने की डेली
करते हैं तैयारी चमचे
आम आदमी बंदर जैसा
डमरू लिए मदारी चमचे
दुनिया चमचों का मेला है
मिलते बारी बारी चमचे
23 comments:
बेहतरीन व्यब्ग्य और लाजवाब ग़ज़ल !
दुनिया चमचों का मेला है
मिलते बारी बारी चमचे
हर एक शेर में नया ख्याल है .....वह क्या बात है ...बेहतरीन गजल ..शुभकामनायें
umda rachna
blog mai aane ko aabhar
kripaya yuhi margdarsan karte rahe
दुनिया चमचों का मेला है
मिलते बारी बारी चमचे
बेहतरीन .. बहुत सुन्दर
आपस में मिल बाँट कर खाते
कदम कदम पे सरकारी चमचे
बेहतरीन कटाक्ष.... सच हर जगह भरे पड़े हैं चमचे ....
विनोद भाई ... आपके इस जलवे के केन्द्र में असाधारण आदमी है और उसके चारो ओर चमचे घूमते हैं। आजकल चमचों की सभ्यता और संस्कृति की नींव बहुत मज़बूत है! जिसके कारण साधारण आदमी का आशियाना सिमटता-सिकुड़ता जा रहा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
विचार-शिक्षा
आम आदमी बंदर जैसा
डमरू लिए मदारी चमचे
ज़बरदस्त चमचा प्रकरण
.
थाना हो या कोर्ट-कचहरी
अफ़सर पर भी भारी चमचे..
bahut sateek vyaakhya hai chachon ki
.
मंत्री जी को भी पसंद है
पढ़े-लिखे अधिकारी चमचे
आम बोलचाल की भाषा में लाजवाब व्यंग बना दिया है आपने .... बहुत ही खूबसूरत और तेज़ धार है विनोद जी आपकी .... अब आप मास्टर नहीं पी एह दी होते जा रहे अहिं व्यंग लिखने में ... और अलग अलग माध्यम से ...
achchhi vyangy rachna.metre bhi bahut badhiya .
chamchon ki chandi to hai hi!
बड़े अफसरों के दरवाजे
हरदम ठाठ बढ़ाते चमचे
दो घंटे से हम लाइन में,
मंद मंद मुस्काते चमचे!
बढ़िया व्यंग्य.. बहुत धार है आपमें..
Aah! Afsos! Sach hai...har taraf,har jagah chamche hee chamche hain!
जगह-जगह सरकारी चमचे
पब्लिक की लाचारी चमचे
सब होगा बस रुपया दो
इतने तो हितकारी चमचे
थाना हो या कोर्ट-कचहरी
अफ़सर पर भी भारी चमचे
आम आदमी बंदर जैसा
डमरू लिए मदारी चमचे
वाह वाह भाई विनोद जी ,
टिप्पणी ये है कि ..
नपा तुला लेखन है भाई
सच है जीवन दर्शन भाई
ढेर हो गईं लिखीं किताबें
सच्चा आंखन देखन भाई
पूरी ग़ज़ल बढ़िया है ...
बढ़िया व्यंग्य!
मंत्री जी को भी पसंद है
पढ़े-लिखे अधिकारी चमचे
bahut khoob likha hai..chamcho kaa itna sundar gungaan vyakhyaan nahi mila padhne ko... bahut achhi rachna..
व्यंग्य गज़ल को उर्दू में हज़ल कहते हैं । यह उस श्रेणि की उम्दा रचना है ।
इन चमचों में एक गुण और होता है,,,,
एक कप के टूटते ही दूसरे कप के हो जाते हैं।
...आजकल बहुत खूब लिख रहे हो भाई।
Hahaha...
Afsar chamcha dou khade, kaake lagu paon..balihaari va chamche ko jo afsar tak pahunchaye... mazedar rachna
चमचों को खूब मारा है तमाचा
शनिवार को गोवा में ब्लॉगर मिलन और रविवार को रोहतक में इंटरनेशनल ब्लॉगर सम्मेलन
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 23 -11-2010
को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
Are Bahut achhi vayang rachna likhi hai aapne Vinod ji. Aabhaar.
बेहतरीन चमचे हर एक शेर दाद के काबिल। बधाई।
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