व्यंग्य ग़ज़लों का सिलसिला जारी रखते हुए अपने सीधे-सादे लहजे में प्रस्तुत करता हूँ एक और ग़ज़ल|आप सब के आशीर्वाद का आपेक्षी हूँ.
चारो ओर मचा है शोर
सब अपनें-अपनों में भोर
बच कर के रहना रे भाई
बना आदमी आदमख़ोर
इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर
नज़र उठा कर देखो तो
है ग़रीब,सबसे कमजोर
अजब-गजब के लोग यहाँ
बाप सिपाही,बेटा चोर
जिसको कोई कमी नही हैं
उसका भी दिल माँगे मोर
17 comments:
बच कर के रहना रे भाई
बना आदमी आदमख़ोर
Kya baat kah dee!
नज़र उठा कर देखो तो
है ग़रीब,सबसे कमजोर
पूरी गजल के हर एक शेर बहुत गहरे अर्थ को संप्रेषित करते है.....सुंदर
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर
सच्चाई को वयां करती रचना , बधाई
शाबाश विनोद ....परिपक्व रचना !
बहुत सशक्त व्यंग रचना ..दिल मांगे मोर
जिसको कोई कमी नही हैं
उसका भी दिल माँगे मोर
सभी पंक्तियाँ कमाल हैं.... पर इन दो लाइनों ने सब कुछ ही कह दिया....
सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत अच्छे विनोद जी, बहुत अच्छे।
अजब-गजब के लोग यहाँ
बाप सिपाही,बेटा चोर
जिसको कोई कमी नही हैं
उसका भी दिल माँगे मोर
क्या बात है ... बहुत ही बढ़िया ... मज़ा आ गया !
bahut sundar rachna . padhkar bahut accha lga , aaj ke desh ki yahi sacchi tasweer hai
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर ..
कुछ कुछ व्यंग ... कुछ कुछ सीधा इंसान ... बहुत कुछ चुप है विनोद जी आपके अन्दर .... लाजवाब ग़ज़ल है ...
इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर ..
कुछ कुछ व्यंग ... कुछ कुछ सीधा इंसान ... बहुत कुछ Chupa है विनोद जी आपके अन्दर .... लाजवाब ग़ज़ल है ...
जिसको कोई कमी नही हैं
उसका भी दिल माँगे मोर
वाह , क्या बात कही है ।
बढ़िया व्यंग ।
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इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर...
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हकीकत बयान करती उम्दा ग़ज़ल ।
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छोटी बहर में सीधे-सादे लहजे में अच्छी ग़ज़ल बनी है विनोद जी....!!
बाप सिपाही बेटा चोर का जवाब नही ।
अजब-गजब के लोग यहाँ
बाप सिपाही,बेटा चोर
जिसको कोई कमी नही हैं
उसका भी दिल माँगे मोर
ये चार पंक्तियाँ तो गज़ब है ...विनोद जी. बहुत ही बढ़िया.
जिसको कोई कमी नही हैं
उसका भी दिल माँगे मोर
...बहत अच्छा प्रयोग, चोर-सिपाही का भी।
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