Friday, January 7, 2011

साल नया पर हाल न बदला---(विनोद कुमार पांडेय)

नववर्ष की हार्दिक बधाई के साथ साथ अपनी ही शैली में एक व्यंग्य रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ|आप सभी के आशीर्वाद का आपेक्षी हूँ|धन्यवाद

साल नया पर हाल न बदला,गीत नयी पर ताल पुरानी
मँहगाई नें जड़े तमाचे,जनता की है गाल पुरानी

मरते है हर साल भूख से,अपने देश के बाशिंदे
दूर ग़रीबी होगी अबकी,है सरकारी ढाल पुरानी

राजनीति व्यवसाय बना है,काले-गोरे धंधों का
आरक्षण व जाति-धर्म की वहीं चुनावी जाल पुरानी,

पढ़े लिखे भी चुप बैठे हैं,जो है सब कुछ वही ठीक है,
लोगों को भरमा कर रखना,चमचों की है चाल पुरानी

राजनीति कब तक सुधरेगी,यह कह पाना मुश्किल है,
संसद में बदलाव चाहिए,मन में यहीं ख्याल पुरानी

9 comments:

डॉ टी एस दराल said...

लो फिर आ गया नया साल
क्या इस साल भी होगा वही हाल !

लगता तो ऐसा ही है फिलहाल ।
सुन्दर रचना ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

deepti sharma said...

bahut sunder rachna

nav varsh ki hardik badhayi

is bar mere blog par
"main"

डॉ. मनोज मिश्र said...

@@ साल नया पर हाल न बदला,गीत नयी पर ताल पुरानी
मँहगाई नें जड़े तमाचे,जनता की है गाल पुरानी
और
राजनीति कब तक सुधरेगी,यह कह पाना मुश्किल है,
संसद में बदलाव चाहिए,मन में यहीं ख्याल पुरानी..
भई वाह.

Satish Saxena said...

बहुत खूब ...
हार्दिक शुभकामनायें !

M VERMA said...

राजनीति सुधरेगी भी?
सामयिक रचना
नया साल मुबारक हो

Dimple Maheshwari said...

जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

विनोद भाई ......कैसे हो?

दिगम्बर नासवा said...

राजनीति कब तक सुधरेगी,यह कह पाना मुश्किल है,
संसद में बदलाव चाहिए,मन में यहीं ख्याल पुरानी

आपका अपना अंदाज़ ... पुरानी शैली ... मज़ा आ गया इस ग़ज़ल को पढ़ कर ..