रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर,
ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
घर तक है नीलाम पड़ा,दारू की ठेकेदारी में,
देखो फिर भी दम भरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
इंसानों से कब का रिश्ता, तोड़ चुके हैं ये साहिब,
इंसानियत कहरते है,बस झूठी शोहरत के खातिर.
लिए गुरूर-अहम सत्ता का,हैवानो से हाथ मिलाते,
हैवानियत से डरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
हरकत गिरी हुई है,जिनकी आदत से लाचार हैं जो,
बड़ी बड़ी बातें करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
रोज ग़रीबों की आहों पर, नाम लिखा होता है जिनका,
मानवता पर वो मरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
32 comments:
"गंगाजल को तरस गये,
बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर."
विनोद कुमार पांडेय जी।
आपने बिल्कुल सच्चे शेर प्रस्तुत किये हैं।
बधाई हो!
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन रचना, बधाई ।
वाह, लाजबाब शब्द पिरोये है आपने !
kya baah hai janab. lajavab.narayan narayan
हरकत गिरी हुई है,जिनकी आदत से लाचार हैं जो,बड़ी बड़ी बातें करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
सही लिखा है पान्डेय जी आपने ऐसा ही करते है
गंगाजल को तरस गये,
बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर.
आप की कविता आज के सच को दरशाती है.
वाह ! बहुत अच्छी है ये रचना !
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर||
बहुत ही उम्दा!! हर शेर बढिया!
"गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर."...............
बिल्कुल सही लिखा है विनोद जी.......
समाजिक सरोकार से सम्बन्धित होते है ........
जो कविता के विषय वस्तु को विस्तृत करता है ........
रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर,ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर
आज चारो तरफ बनावट ही बनावट है.......
बहुत खुब
ऐसे ही लिखते रहे
शुक्रिया
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर
SATY KO DARSHATI ACHEE RACHNA ... KAMAAL KA LIKHA HAI VINOD JI ....
Kya baat hain pandey ji... dil jit liya yaar.
"गंगाजल को तरस गये,
बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर."nice
Marvellous....U did it again..
"गंगाजल को तरस गये,
बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर."
इन लाइनों में दुनिया का सत्य है। श्रद्धाओं में ज्यादातर ऐसा ही होता है। जो उम्र भर तरसते रहे पानी की घूंट को, आज उनकी स्माधि पर दूध उडेला जाता है।
आज शोहरत सबसे उपर है...झूठी ही सही ... तो क्या
झूठी शोहरत की
एक सच्ची दास्तां
किस किसके मन
के छोड़े हैं निशां
नहीं मिली तो
है खुद परेशां।
ज़माने को नंगा कर दिया आपने।सच और सच के अलावा कुछ नही निकला आपकी कलम से।
सही कहा आपने
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना । कुछ लोगों की यही फितरत होती है विनोद जी । बहुत खूब ।आभार ।
बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने ! एक से बढ़कर एक शेर है! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई !
रोज दिखावा करते हैं बस झूठी शोहरत के खातिर
ज़ख्मों पे मरहम रखते हैं बस झूठी शोहरत की खातिर
--अच्छा शेर है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
गंगाजल को तरस गये,
बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर.
क्या गज़ब के जज़्बात पिरोये हैं इस गज़ल मे बहुत बहुत बधाई
"गंगाजल को तरस गये,
बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,
बस झूठी शोहरत के खातिर.
विनोद जी क्या गज़ब के एहसास पिरोये हैं इस गज़ल मे बधाई
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
katu satya hai ...
aisa hi ho raha hai ab to..
ek sarthak rachna..
badhai..
विनोद जी,
बहुत ही करीबी रचना, दिल को छूती हुई। मुझे तो यह अशआर बहुत ही पसंद आया :-
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
खूब लिखिये....
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन रचना, बधाई ।
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,
मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर
सच्चाइयों को बयां करने का आपका ये अंदाज़ पसंद आया,
लगे हाथ हम भी बहती गंगा में हाथ धो ही लें..............
कभी किसी के काम न आया लिखा-पढ़ा सब अपना
ब्लाग लिखा करते हैं , बस झूठी शोहरत के खातिर
त्योहारों के इस मौसम में शुभकामनाओं की फुहारें..........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
हरकत गिरी हुई है,जिनकी आदत से लाचार हैं जो,बड़ी बड़ी बातें करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
aaj ka sach bakhubi kha hai aapne
shubhkamnaye
बहुत ही सुन्दर!
"शोहरत के खातिर" की जगह "शोहरत की खातिर" व्याकरण-सम्मत नहीं होगा क्या?
बहुत खूब!! जूठी सोहरत की खातिर न जाने कितनी बलि चढ़ चुकी हैं !
जिंदगी का आइना दिखा दिया आपने। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
Vinod bahut hi kadwa sach likha hai yeh......... vyang ke saath saath karaara tamacha bhi maara hai...... ajkal ke saamaajik vyavastha ko.....
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