Wednesday, September 23, 2009

एहसास


नित पुष्प खिला कर,खुशियों के,
मन बगिया महकाया तुमने,
आँखों के आँसू लूट लिये,
हँसना सिखलाया तुमने,
सूना,वीरान,अधूरा था,
तुमसे मिलकर परिपूर्ण हुआ,
दिल के आँगन में तुम आई,
जीवन मेरा संपूर्ण हुआ,

किस मन से तुझको विदा करूँ,
तुम ही खुद मुझको बतलाओ,
मैं कैसे कह दूँ तुम जाओ.

मैं एक अकेला राही था,
संघर्ष निहित जीवन पथ पर,
तुम जब से हाथ बढ़ायी हो,
यह धरती भी लगती अम्बर,
व्याकुल नयनों की आस हो तुम,
मेरी पूजा तुम,विश्वास हो तुम,
हर सुबह तुम्ही से रौशन है,
हर एक पल की एहसास हो तुम,

एहसासों का मत दमन करो,
विश्वासों को मत दफ़नाओं,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ,

सब बंद घरों में क़ैद पड़े,
मैं किससे व्यथा सुनाऊँगा,
सुख में तो देखो भीड़ पड़ी,
दुख किससे कहने जाऊँगा,
बरसों तक साथ निभाया है,
अब ऐसे मुझको मत छोड़ो,
हम संग विदा लेंगे जग से,
अपने वादों को मत तोडो,

मत बूझो मेरे मन को यूँ,
मत ऐसे कह कर तड़पाओ,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ.

23 comments:

सदा said...

बहुत ही दिल को छूते हुये शब्‍दों के साथ लाजवाब प्रस्‍तुति, आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सब बंद घरो में कैद पड़े,
मै किससे व्यथा सुनाउगा,
सुख में तो देखो भीड़ पडी,
दुःख किससे कहने जाऊँगा !

बहुत खूब, सौ आने सच बात कह दी आपने पाण्डेय साहब ! इंसान के जीवन में अगर उसे एक सच्चा मित्र(जीवन साथी) मिल जाये, तो उसका आधा जीवन तो वैसे ही धन्य हो जाता है ! वही तो जीवन में एक ऐसा प्राणी होता है जिससे आप हर एक सुख और दुःख की छोटीऔर बड़ी बात बेहिचक कह सकते हो !
बहुत सुन्दर अहसास !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"बरसों तक साथ निभाया है,
अब ऐसे मुझको मत छोड़ो,
हम संग विदा लेंगे जग से,
अपने वादों को मत तोडो,
मत बूझो मेरे मन को यूँ,
मत ऐसे कह कर तड़पाओ,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ."

ताल, लय और वजन में फिट,
सभी बढ़िया छंद है।
मार्मिक कविता के लिए बधाई!

अविनाश वाचस्पति said...

कह सकते हैं विनोद की

जीवन की गंभीरता को बूझती

एक नेक कविता।

Unknown said...

hi vinod
very nice
ye lines to dil ko chhute ander tak ja rahai hai.
LAJWAB

Mishra Pankaj said...

पाण्डेय जी नमस्कार ,
बढ़िया रचना

नीरज गोस्वामी said...

व्याकुल नयनों की आस हो तुम,
मेरी पूजा तुम,विश्वास हो तुम,
हर सुबह तुम्ही से रौशन है,
हर एक पल की एहसास हो तुम,

सुन्दर शब्द और भावों से रची आपकी ये रचना अप्रतिम है...बधाई...
नीरज

kshama said...

Aapka yah roop bhee aaj dekha...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कविता.
धन्यवाद

ओम आर्य said...

विनोद जी

आपकी रचनाओ का विस्तृत दायरा है यह मै हमेशा से ही कहता रहा हूँ/इस रचना ने तो दिल ही जीत लिया/हाँ,जीवन साथी जीवन के सभी खालीपन को अवश्य भर देता है/बहुत ही सुन्दर

बहुत बहुत आभार

हेमन्त कुमार said...

भई वाह !
कहीं से कोई लोच नहीं न भटकाव है रफ्तार में
आभार !

kishore ghildiyal said...

dil ko chhu gaye aapke behatrin shabd

kishore ghildiyal said...

bahut khoob likha hain aapne

M VERMA said...

एहसासों का मत दमन करो,विश्वासों को मत दफ़नाओं,मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ,
एहसास के इस एहसास को केवल एहसास किया जा सकता है.
बहुत सुन्दर

निर्मला कपिला said...

व्याकुल नयनों की आस हो तुम,
मेरी पूजा तुम,विश्वास हो तुम,
हर सुबह तुम्ही से रौशन है,
हर एक पल की एहसास हो तुम,
बहुत खूबसूरत रचना है बहुत बहुत बद्गाई

Naveen Tyagi said...

bahut sundar rachna hai.

महेन्द्र मिश्र said...

खूबसूरत रचना है...

Kulwant Happy said...

दिल को छू गई हर लाइन।

Urmi said...

मुझे तो इस बात पर आश्चर्य लग रहा है आखिर मुझ पर ऐसा घिनौना इल्ज़ाम क्यूँ लगाया गया? मैं भला अपना नाम बदलकर किसी और नाम से क्यूँ टिपण्णी देने लगूं? खैर जब मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं तो फिर इस बारे में और बात न ही करूँ तो बेहतर है! आप लोगों का प्यार, विश्वास और आशीर्वाद सदा बना रहे यही चाहती हूँ!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! दिल को छू गई आपकी ये ख़ूबसूरत रचना! बधाई!

Pawan Kumar said...

किस मन से तुमको विदा करू
क्या बढ़िया ख्याल है भाई वाह....

दिगम्बर नासवा said...

सब बंद घरो में कैद पड़े,
मै किससे व्यथा सुनाउगा,
सुख में तो देखो भीड़ पडी,
दुःख किससे कहने जाऊँगा .....


दिल को छू गई आपकी ये रचना ...... बहुत ही संवेदन शील लिखा है विनोद जी ..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मत बूझो मेरे मन को यूँ,मत ऐसे कह कर तड़पाओ,मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ.

Vinod bahut hi khoobsoorat kavita ......chhoo liya is ne dil ko....

दिनेशराय द्विवेदी said...

रचना बहुत अच्छी है। जिस भाव को ले कर आरंभ की गई, उस भाव को अंत तक निभाया गया है। जैसे जैसं कविता आगे बढ़ती गई बात का वजन और तीव्रता बढ़ती गई है।
सब से बड़ी बात कि इस कविता को पाठक अनेक संदर्भों में देख सकता है। यह इस कविता की उपयोगिता को बढ़ाती है।