Saturday, October 31, 2009

कभी नौबत नही आयी

गम यूँ मिला की वो,आँसुओं में डूब गया,
किसी मैखत में जाने की,कभी नौबत नही आयी.

अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
गैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.

कई सपने संवर कर टूट जाते, रात भर में अब,
सुबह के गुनगुनाने की, कभी नौबत नही आयी.

बाप बनकर जिसे सदा दी,जिंदगी के हर मोड़ पर,
उसे हक़ भी जताने की,कभी नौबत नही आयी.

जीवन पथ पर चलता रहा, कंधे पर बोझ लिए,
चहक कर मुस्कुराने की,कभी नौबत नही आयी.

घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.

बुढ़ापे में खुदा से जो मिला,यह तोहफा उसको,
जिसे जग से छुपाने की,कभी नौबत नही आयी.

पड़ोसी भी नुमाइस देखकर, हँस कर निकल जाते,
किसी से गम बताने की,कभी नौबत नही आयी.

25 comments:

Mahfooz Ali said...

अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
गैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.

Vinod ji........ bahut shandar kavita..... in lines ne to dil hi chhooo liya....

घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.
wah! ghar ke aangan mein hi deewar apnon ne utha liya....bahut hi sateek pankti hai........

behtareen shabdon ke saath ek khoobsoorat rachna.......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जीवन पथ पर चलता रहा, कंधे पर बोझ लिए,
चहक कर मुस्कुराने की,कभी नौबत नही आयी.

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
गैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी....
KYA BAAT KAHI HAI VINOD JI .... SUBHAAN ALLA ...

घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.
YATHAART HAI YE JEEVAN KA ....

VINOD JI .....SANAAJ KA AAINA HAI AAPKI GAZAL ....

M VERMA said...

जीवन पथ पर चलता रहा, कंधे पर बोझ लिए,
चहक कर मुस्कुराने की,कभी नौबत नही आयी.
------
जीवन के सन्दर्भो को शब्द दिया है आपने. करीबी एहसास और भाव

अविनाश वाचस्पति said...

नौबत आनी भी नहीं चाहिए

नियामत खूब बरसनी चाहिए

राज भाटिय़ा said...

बुढ़ापे में खुदा से जो मिला,यह तोहफा उसको,
जिसे जग से छुपाने की,कभी नौबत नही आयी.
क्या बात है एक एक शेर अलग ही दर्द लिये है, आज का सच लिये.
धन्यवाद

SP Dubey said...

बहुत अछ लिखे हो

Mishra Pankaj said...

कई सपने संवर कर टूट जाते, रात भर में अब,
सुबह के गुनगुनाने की, कभी नौबत नही आयी.

बाप बनकर जिसे सदा दी,जिंदगी के हर मोड़ पर,
उसे हक़ भी जताने की,कभी नौबत नही आयी.

पाण्डेय जी नमस्कार
सुन्दर लगा आपकी ये कविता

Vinay said...

congs! really it's gud poem.

Unknown said...

उम्दा सोच

प्यारे शे'र

मज़ा आया
___लगे रहो दादा !

Girish Kumar Billore said...

nice
कई सपने संवर कर टूट जाते, रात भर में अब,
सुबह के गुनगुनाने की, कभी नौबत नही आयी.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह भाई बहुत सुंदर

शरद कोकास said...

अच्छे अशआर हैं ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

Jai ho.........

हरकीरत ' हीर' said...

अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
गैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.

वाह ....वाह ....वाह ....!!

घर की आँगन में ही दीवार, उठा लिए उसके अपने,
हसरते आशियाने की, कभी नौबत नही आयी.

बहुत सुन्दर ...!!

विनोद जी गहरे भावः हैं आपके शे'रों के ....!!

अपूर्व said...

पहले तो सोचा किसी एक शेर को ही उठा कर उसकी शान मे कुछ बोलूँ..मगर इतने सारे उम्दा अशआर आपने एक साथ पिरो दिये हैं कि एक शेर उठाना नाइंसाफ़ी होगी बाकी के साथ..बस गजब लिखा है..Hats off!!

रश्मि प्रभा... said...

ज़िन्दगी के सारे उसूल अपने ही सिखाते हैं,
दर्द भी वही देते हैं और सलाह भी............
बहुत ही डूबकर अपने एहसासों को लिखा है

कंचनलता चतुर्वेदी said...

apano ne hi......naibat nahee aai.
bahut hee sundar kavita.

Udan Tashtari said...

अपनों ने ही सीखा दिए उसे,जमाने के उसूल,
गैरों को आज़माने की, कभी नौबत नही आयी.


वाह!! क्या बात है..

Urmi said...

आपकी इस कविता को पढ़कर मैं निशब्द हो गई! बहुत ही सुंदर और दिल को छू लेने वाली कविता है!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बाप बनकर जिसे सदा दी जिन्दगी हर मोड़ पर
उसे हक़ भी जताने की कभी नौबत नहीं आई !

वाह, क्या बात कही आपने पाण्डेय साहब !

सदा said...

गम यूं मिला ... बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां, गहराई लिये भावपूर्ण रचना, बधाई ।

निर्मला कपिला said...

पने लिये आपकी शुभकामनाओं के लिये अभिभूत हूँ धन्यवाद । रचना तो कमाल है हमेशा की तरह धन्यवाद्

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अपनो ने ही सिखा दिए उसे ज़माने के उसूल
गैरों को आज़माने की कभी नौबत नहीं आई
--इस शेर की जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
--अच्छा लिख रहे हो भाई
...बधाई

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

क्या बात है....
हर सेर अपने आपको वाह लेने को मजबूर कर रहा है....