दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन,
सुनते ही उछलने लगा मन,
जैसे ही हमने सुबह छोड़ी चारपाई,
अविनाश चाचा जी को फ़ोन मिलायी,
पर ये क्या उधर से,
नॉट रिचेबल की मधुर आवाज़ आई,
दूसरी बार फिर मैने घंटी मारी,
उस वक्त इन्होनें ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया,
बाद में उल्टा १ रूपिया काल बैक में खर्चा किया.
फोन करते ही पूछें,पहुँच गये?
नही बस चलने ही वाला हूँ,
कृपा करके एक बार फिर पता बताइए,
और कोई आस पास का जगह भी समझाइये,
अविनाश जी भी मज़े में बोले,
हास्य के तरकश, ज़ुबान से खोले,
बोले इसमें क्या समझाना है,
ठीक राघू पैलेस के पिछवाड़े आना है.
अब फिर क्या मैं भी फटाफट उठा,
बन कर, ठन कर,
एक दो कपड़े पहन कर,
जूते पैर में डाले,बाल बनाया,
और मुस्कुराते हुए ऑटो स्टॅंड पर आया,
ऑटो के बाद मैट्रो धरा,
गिरते संभलते डाइरेक्ट लक्ष्मी नगर उतरा,
उतरते ही एक भाई से पूछा,
राघू पैलेस कहाँ है? कृपया बताएँगे?,
कुछ जानकारी हो तो हमें भी समझाएँगे?,
वो बोला भाई जगह तो मुझे पता है,
पर राघू पैलेस आज कल लापता है,
देखो दो मंज़िलों के आगे जो सुनसान है,
वहीं राघू पैलेस का मैदान है.
कंफ्यूज़न में मैने फिर चाचा को फोन लगाया,
पर ये क्या आवाज़ सुनते ही दंग था,
अविनाश जी का ये कौन सा रंग था,
ब्लॉगर्स सम्मेलन में आते ही आवाज़ बदल डाले,
पर नही इस बार तो अजय भैया बोल रहे थे,
मेरे कान के अंडरस्टॅंडिंग को तोल रहे थे,
फिर से पता पूछने पर समझाया,
इस बार कोई सांस्कृतिक भवन बतलाया,
जो हमें कहीं मिल ही नही पाया,
थोड़ा इधर उधर टहलने के बाद,
भूलभुलैया में चलने के बाद,
एक बार फिर फोन लगाया,
और फिर से राघू पैलेस के खंडहर के सामने आया,
इस बार अविनाश जी से डीटेल में पूछा,
तो उन्होंने बोला सामने क्या दिख रहा है?
मैने कहा कुछ नही बस संतरे बिक रहा है,
बोले अरे यार कोई कॉलोनी नज़र आ रही है?
मैने कहा हाँ एक है जो फायर ब्रिगेड की ओर जा रही है,
बोले बस बस उसी में चले आओ,
अब देर ना लगाओ,
मैं और सरप्राइज़ हो गया,
धीरे धीरे फायर ब्रिगेड की ओर जाने लगा,
सोच कर दिमाग़ खुजलाने लगा,
कि ये ब्लॉगर्स सम्मेलन है?
या सब आग बुझाने की ट्रैनिंग ले रहे है,
या क्या पता आग लगने की आशंका हो,ऐसा प्रोग्राम है,
इसीलिए बुझाने का भी बढ़िया इंतज़ाम है.
फायर स्टेशन से आगे बढ़ा,
तो मुस्कुराहट से चेहरा खिला,
जहाँ से टर्न लेना था, वहीं पर,
पप्पू का दुकान मिला,
तब समझ में आ गया की हाँ,
अविनाश जी यही कहीं होंगे,
ढूढ़ते-ढूढ़ते आगे बढ़ता रहा,
धूल-मिट्टी का रंग कपड़ों पर चढ़ता रहा,
एकदम पूरे इंसान बन गये थे,
सहारा मरुस्थल का रेगिस्तान बन गये थे.
चलते-फिरते, उछलते-कूदते,
सामने जी. जी. एस. फास्ट फूड कैंटीन दिख गई,
फटाफट कपड़ें झाड़-पोंछ कर अंदर गये,
तो जाने-पहचाने चेहरे दिखे,
कुछ नये कुछ पुराने स्टार सरीखे,
ये वहीं अपने ब्लॉगर्स,बड़े भाई,चाचा लोग थे,
जिनका प्यार हमें यहाँ तक खींच लाया,
और उस कहानी को इस मजेदार लफ़्ज़ों में हमने,
आप लोगों के सामने फ़रमाया.
19 comments:
रोचक वर्णन
हा हा हा ,विनोद जी , मजा आ गया , क्या पहुंचे आप और क्या पहुंचाया आपने , आनंद आ गया । आज एक और बात कहने का मन कर रहा है जब भी आपको गले लगाया मुझे लगा कि गांव से बिछ्डा कोई भाई बहुत दिनों बाद कलेजे से लगा है , सच वो ठंडक बडा सुकून दे गई मन को ।
अजय कुमार झा
हम भी ऐसे ही आड़े टेड़े रास्ते से एक दुकान से टॉफियाँ खरीदते हुए वहाँ पहुँचे थे पिछली बार।
बहुत मजेदार विवरण एवं प्रस्तुति !!
बढिया लपेटे हो भाई
पहुचे हुर ब्लोगर हो इसीलिये पहुच पाये
महफ़ूज भाई तो टिकट कटा के भी सोते रहे
अरे वाह पान्डेय जी, मस्त कविताओं में वर्णन हो रहा है
अभी तक ब्लोगर मिलन का रंग लगा हुआ है
अगली कविता की फ़रमाइश अभी से कर देतें है
जय हो टाइप कमेंट्री है। शानदार!
वाह,वाह! मजा आ गया!
ये भी मजेदार रहा..बढ़िया प्रयोग!
बहुत खूबसूरत अन्दाज़ में आपने तो पहुँचने की कहानी सुना दी
पहुंचा दिया
कहां से कहां
पर मिले जाकर
ब्लॉगर्स वहां
नूरजहां ?
Sundar Chitran!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
हा हा हा ! बढ़िया कवितामयी वर्णन।
इसीलिए कहते हैं भैया , थोडा घूमना फिरना भी चाहिए।
वाह भई मजा आ गया।
बेहतरीन अंदाज़,भई वाह.
अरे वाह !! क्या संस्मरण सुनाया है! एकदम नये अन्दाज़ में. सुन्दर है विनोद जी.
विनोद जी ...... अपने सही फ़रमाया ...
पूरा का पूरा हाल ... ज्यों का त्यों सुनाया ....
आपका अंदाज बहुत भाया ...
मज़ा आ गया आपके हास्य पढ़ कर ....
आपको महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......
वाह क्या पहुंचाया है
लिखने का अंदाज़ कुछ हटकर है.
भाव से भरा है.
लिखते रहे !
धन्यवाद !
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