ग्रह,नक्षत्र अनुकूल हो,मंदिर जाते रोज|
घर में माँ भूखी रहे,बाँट रहे वो भोज||
सब अपने में लीन है,अजब -गजब हालात|
ऐसे तैसे काटते,बाबू जी दिन रात||
बस रोटी दो जून की, हिस्से दादी के |
कंप्यूटर ने छीन ली,किस्से दादी के||
नाती पोते समझते,हैं उनको अब भार| |
अंधे दादा की छड़ी,का बोलो आभार||
भाई और बहन हुए,आज हृदय से दूर|
अंजाने रिश्तों की देखो,चर्चा है मशहूर||
बेदम छोटी बात में,सब इतने मगरूर|
एक जगह रहते मगर,दिल हैं कोसो दूर||
यह समाज का रूप है,बदल रहा संसार|
गैरों को अपना रहें,अपनो को दुत्कार||
ऐसे प्राणी का भला,कैसे होगा यार|
जो ये भी ना जानते,होता क्या परिवार||
27 comments:
बहुत बढ़िया, यही आज का सच है !
नाती पोते समझते,हैं उनको अब भार| |
अंधे दादा की छड़ी,का बोलो आभार||
बहुत सुन्दर विनोद जी
हर दर्द हमदर्द सा लगा
Bahut khoob vinod ji !
बदलते समाज की भयानक तस्वीर पेश करती और चिंतन को मजबूर करती कविता /
ग्रह,नक्षत्र अनुकूल हो,
मंदिर जाते रोज|
घर में माँ भूखी रहे,
बाँट रहे वो भोज||
सब अपने में लीन है,
अजब -गजब हालात|
ऐसे तैसे काटते,
बाबू जी दिन रात||
विनोद कुमार पाण्डेय जी!
श्रमिक दिवस पर बहुत ही
सटीक रचना लगाई है आपने!
मार्मिक कविता के लिए बधाई!
आज की सच्चाई को बखूबी शब्दों में अभिव्यक्त किया है !!
sundar dohe ban gaye, isame jeevan-bodh.
lagatar likhate raho, khul kar sadaa vinod..
badhai, achchhe bhavon ke liye.
ऐसे प्राणी का भला,कैसे होगा यार|
जो ये भी ना जानते,होता क्या परिवार||
बहुत सुंदर जी, आप ने आज के उन बद दिमागो के बारे लिखा जो अपने आप को माड्रन समझते है.
धन्यवाद
सच उजागर करती.... शानदार दो लाइना.....
श्रम दिवस पर बेहद श्रम (मानसिक) से बुनी गई रचना।
वाह सुंदर भावाभिव्यक्ति साधुवाद....
बहुत भावपूर्ण रचना। आज की हालात पर एकदम सटीक।
विनोद जी - तीसरे दोहे में मेरे हिसाब से दोहा का नियम भंग हो रहा है। क्या इसे आप ऐसे लिख सकते हैं-
रोटी दादी को मिले कुछ अचार, नमकीन।
दादी के किस्से लिए कम्प्यूटर ने छीन।।
चौथे दोहे में "समझते" की जगह "सोचते" देने से कैसा रहेगा?
पाँचवे दोहे में - "भाई और बहन हुए" की जगह "भाई बहन भी हो गए" - कैसा रहेगा?
मैं अपने को रोक न सका। कुछ सलाह दे दिया। मानना या न मानना पूर्णतया आपके ऊपर है। जरूरी नहीं कि जो मैंने कहा वही सही - आप अपने ढ़ंग से भी बदलाव कर सकते हैं। उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगे।
शुभकामनाओं सहित-
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
sach ko ujaagar kar diya.
बहुत खूब । रिश्तों पर एक बेहतरीन रचना ।
काश कि लोग समझ सकें इन रिश्तों की अहमियत को ।
ऐसे प्राणी का क्या भला होगा जो नहीं जानता परिवार ...
अच्छी रचना ...
विनोद भाई ,
संवेदनशील रचना के लिए आभार ! दुःख है कि इस कष्ट को समझाने की कोशिश ही नहीं की जाती ...
Kitna sach hai...aaj dada-dadi,nana-nani sab apne bachhon, nati poton ke sahwas ke liye taras gaye hain..akele pad gayye hain..
waah sach ki aankh kholti ye rachna sach me kaabile tareef hai...koi samjh sake to samjhe...koi sambhal sake to sambhle.
badhayi.
कटु सत्य को सहज रूप से लिखा है....बहुत बढ़िया ये सारे ही दोहे
Ek baar phir padhi yah rachana...aah! Kaash yah sach na hota!
आज के समाज की पोल खोलती रचना.
बस रोटी दो जून की, हिस्से दादी के |कंप्यूटर ने छीन ली,किस्से दादी के||
बेदम छोटी बात में,सब इतने मगरूर|एक जगह रहते मगर,दिल हैं कोसो दूर||
Behad sachche dohe. Yatharthvadi--
बहुत बढ़िया. ये तो आधुनिक जीवन का ओपरेशन मनुअल ही हो गया.
विनोद भाई, सचमुच आइना दिखाती दोहे हैं.
कमाल का लिखा है, सब के सब लाइने!!
ऐसे प्राणी का भला,कैसे होगा यार|
जो ये भी ना जानते,होता क्या परिवार||
... बहुत सुन्दर!
सब अपने में लीन है,अजब -गजब हालात|
ऐसे तैसे काटते,बाबू जी दिन रात
बहुत ही मार्मिक वर्णन ....
नाती पोते समझते,हैं उनको अब भार| |
अंधे दादा की छड़ी,का बोलो आभार
वाह क्या खूब लिखा है ... आज के दौर के लिए ही शायद किसी ने लाठी बनाई होगी तो जीवन का सहारा है ...
ऐसे प्राणी का भला,कैसे होगा यार|
जो ये भी ना जानते,होता क्या परिवार
परिवार की अहमियत को जो नही जानता सच में उसका तो भगवान ही राखा है ...
बहुत हो अच्छे छन्द है विनोद जी .... समाज का आईना ....
सब अपने में लीन है,अजब -गजब हालात|
ऐसे तैसे काटते,बाबू जी दिन रात
...वाह!
दूध सा सफेद सच लिख दिया आपने तो।
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