एक दशहरा और आ गया,सोच के मन में उठे विचार,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं, यार.
आतंको से आतंकित है,
बस्ती,कस्बा,गली,मोहल्ला,
चारो ओर मचा है देखो,
छीना,झपटी,हल्ला-गुल्ला,
झूठ की जय-जय कार हो रही,
सत्य सनातन आहत है,
पापी नाच रहें हैं,धुन पर,
पुण्य की रोज शहादत है,
सालों-साल बढ़ रहे रावण,जो कल सौ थे,हुए हज़ार
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं, यार.
रावण के जड़ से विनाश का,
वो दिन प्रभु कब आएगा,
त्रेता युग की रामायण को,
कलयुग कब दोहराएगा,
जाति-पाँत,ईमान-धरम,
से कब पहरे हट जाएँगे,
शबरी का विश्वास जीतने ,
कब पुरुषोत्तम आएँगे,
जाति धर्म को पीछे कर के,जिसने अपनाया था प्यार,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं,यार
मानव को मानव से भय है,
भाई को भाई पर शंका,
शोर-शराबा,मारा काटी,
हुई अयोध्या भी अब लंका,
क्यों विभीषण रोज हैं,मरते,
सत्य का जो दामन पकड़े,
रोज हरण होता है सिय का,
क्यों हैं राम अबूझ पड़े,
बड़ी ज़रूरत आन पड़ी है, फिर से ले लो प्रभु अवतार ,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं, यार.
आज भी कुछ भूखे सोते हैं,
कहने को विकास है बस,
कुछ महलों में राज कर रहे,
कुछ झोपड़ियों में बेबस,
आँखों में बस एक आस है,
दुख के बादल कब जाएँगे,
कब आएँगे रामचंद्र जी,
रामराज्य को कब लाएँगे,
इसी दशहरे पर आ जाओ, साथ मनाते हैं त्योहार,
इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं,यार.
26 comments:
हे राम तुम फिर आ जाओ ....
बहुत बढ़िया गजल पांडेजी .आभार
बहुत सुंदर रचना.
आप ओर आप के परिवार को दुर्गा पूजा व विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
धन्यवाद
Raam to har yug me hue...kisee na kisee roop me...ham mahsoos nahee kar pa rahe ya, ya hazaron salon se wanwaan bhugat rahe hon...kya pata...
Aapki is rachnane ek geet yaad dila diya,
" badi der bhayee nandlala,
teree raah take brijbala'
isee geetme alfaaz hain,
' koyi nahee hai tujhbin Mohan ,
Bharat ka rakhwala"
Yahan lagta han, " mohan" Gandhi aur shrikrushn dono ko kaha gaya hai..
बेहद सही सवाल है और इस रचना को पढने के बाद जो मन से एक पुकार निकल रही है वह है .....हे राम तुम अब तो आ जाओ ......बेहद खुबसूरत.....लाज़वाब!
सालों-साल बढ़ रहे रावण,जो कल सौ थे,हुए हज़ार ..
-yahi sthiti dikhaayee de rahi hai..
bahut achchhee samayik rachna.
राम जी चांद पर पानी लेने गए हैं जी।
और
रावण भाई को पानी की कोनो जरूरत नाही।
राम जी लगता है थक गए हैं आराम कर रहे हैं कहीं ..:) आपका लिखा हुआ अच्छा सच्चा लगा .बधाई आपको दुर्गा पूजा की
रावण के जड़ से विनाश का,
वो दिन प्रभु कब आएगा,
त्रेता युग की रामायण को,
कलयुग कब दोहराएगा,
जाति-पाँत,ईमान-धरम,
से कब पहरे हट जाएँगे,
शबरी का विश्वास जीतने ,
कब पुरुषोत्तम आएँगे,
bahut hi khoob
ram jaroor aayenge...
sahi hai...ravan hi ravan hai...aur to aur..ravan ka vadh bhi ravan hi kar raha hai
पुन्य से अब पाप का, छिड़ने दो संग्राम।
धरती को शायद मिले, फ़िर से कोई राम॥
आज,
राम हुआ रामू
रावण हुआ मामू
बच्वे हुए बेदम
फिर भी ज़िंदा हैं लोग
क्या यही है कम ?
इसी दशहरे पर आ जाओ, साथ मनाते हैं त्योहार, इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं,यार
har yug me RAM aur ravan hai fark itna hai us smy ravan ak hi tha aur aj usi ravan ke das siro snkhya klyug tak kitni badh gai soch skte hai .ramji to apna kam kar hi rhe hai .aur kal bhi aavege .
vijya dhmi ki hardik badhai
हुई अयोध्या भी अब लंका,
क्यों विभीषण रोज हैं मरते,
सत्य का जो दामन पकड़े,
रोज हरण होता है सिय का,
क्यों हैं राम अबूझ पड़े...........
बहूत ही लाजवाब लिखा है विनोद जी ........ आज सब की आँखे राम को पुनः देखना चाहती हैं ......... दुष्टों का नाश करो हे प्रभू
आप ओर आप के परिवार को विजयादशमी की शुभकामनाएं
हकीक़त को बहुत सुन्दर शब्दों, प्रतिमानों में गधा है आपने.
गीत बहुत ही सुन्दर है.
पर सुन्दर रामराज्य आने में अभी बहुत वक़्त है, हम इतने अपराधों से परेशां हो गए, श्री राम को अवतार ले कर रावन का संहार करने के लिए अभी और पापों के संग्रहण कि आवश्यकता है, क्योंक पाप का घडा शायद अभी काफी खाली है..............
आपकी यह रचना मुझे तहे दिल तक रोमांचित कजर गई. लय, ताल, मधुरता, प्रार्थना, सन्देश, सभी कुछ तो है इसमें
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
बहुत बढ़िया लगा! अत्यन्त सुंदर! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
'इसी दशहरे पर आ जाओ, साथ मनाते हैं त्योहार'
- इसी कामना के साथ दशहरे की शुभकामनाएं.
bahut sundar reachana hai
रावण के जड़ से विनाश का, वो दिन प्रभु कब आएगा,त्रेता युग की रामायण को, कलयुग कब दोहराएगा, जाति-पाँत,ईमान-धरम, से कब पहरे हट जाएँगे, शबरी का विश्वास जीतने ,कब पुरुषोत्तम आएँगे,
जाति धर्म को पीछे कर के,जिसने अपनाया था प्यार,इतने रावण घूम रहें हैं, राम कहाँ गायब हैं,
hey ramji........ aap jaldi aayiye....
दशहरे की बहुत बहुत शुभकामनाएं .........
ram to sach me ab nahi nazar aate....saarthak prastuti....
तुम्हारी कविता पढ़कर बनारस के प्रसिध्द शायर अलकबीर का एक शेर याद आ गया--
तुम अपने भीतर के रावण का गला घोंट दो
देखते ही देखते सब राम मय हो जाएगा।
--विजया दशमी की ढेर सारी शुभ कामनाएँ।
बहुत सुंदर परिकल्पना है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रावण के जड़ से विनाश का,
वो दिन प्रभु कब आएगा,
त्रेता युग की रामायण को,
कलयुग कब दोहराएगा,
जाति-पाँत,ईमान-धरम,
से कब पहरे हट जाएँगे,
शबरी का विश्वास जीतने ,
कब पुरुषोत्तम आएँगे,
क्या सुन्दर कल्पना है शायद अब उन्हें आना ही पडेगा जब भी पऋथवी पर अत्याचार और पाप बढ जाते हैं तो उन्हें आना ही पडता है बधाई इस रचना के लिये
sabse pahale to mai aapko dhanyabad bolungi... ki aap mere NGO ko saraha....
aaj hi mai aapke blog pe aai hu aapke rachnaye padi bahut hi sunder rachnaye hai likhte rahiye.....
गहरे निहितार्थ हैं आपकी कविता के।
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