Tuesday, October 6, 2009

कुछ मचलती किंतु कमजोर तमन्नाएँ, उनकी जिन्हें ग़रीब कहते हैं

कुछ आधी अधूरी तमन्नाएँ जो एक पल में बनती है और एक पल में बिखर जाती है..

ऐ तमन्ना,

तू इतना,मचल क्यों रही है,

दिखावे की दुनिया में,

तू ढल क्यों रही है.


तू निरा अज्ञानी है,

या अबोध है,अथवा ये तेरी भूल है,

काँटे हैं तेरी राह में

फूल नही शूल है,

तुझे मचलना ही था,

जग के विचित्र चित्रों में ढलना ही था,

तो किसी धनवान के मन में उपजती,

वहाँ तू फूलती-फलती,

राजमहल के अद्भुत,

रंगिनियों में संवरती,

असहाय ग़रीब के,

मन के,

पगडंडीयों पर क्यों चल रही है||ऐ तमन्ना.....


तू देख तो सकती है?,

देखो,

महसूस करो,

रिश्तों के विभिन्न रूप,

किस तरह परिवर्तित हो रहे हैं,

किस तरह बेनाम,बदनाम लोग इस दुनिया मे,

चर्चित हो रहे हैं,

तुम्हारे हिस्से का वक्त भी,

किन्कर्तव्य विमूढ़ है,

तुम्हारा जन्मदायी भी आज मूढ़ है,

कोमल भावनाओं से वैर कर के,

गहन ज्वाला पर पैर धर के,

इस भाँति तू जल क्यों रही है||ऐ तमन्ना.....


तू ग़रीब के मन की,

बीज़ है,

तो क्या हुआ,

सोचो मत,

हँसी मुश्किल से आती है,

तो क्या हुआ,

वक्त प्रायः रूलाती है,

तो क्या हुआ,

इससे अधिक रोने को कुछ नही है,

पाना है तुझे अब,

खोने को कुछ नही है,

सारी शक्तियाँ झोंक दे,

राह के तूफान को तू रोक दे,

हिमालय सा बन,

बर्फ के टुकड़ों की भाँति गल क्यों रही है||


ऐ तमन्ना,

तू इतना,मचल क्यों रही है,

दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है||

22 comments:

सुशील छौक्कर said...

ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है

वाह क्या बात है। बहुत कुछ कह दिया।

Khushdeep Sehgal said...

हज़ार ख्वाहिशें ऐसीं...
कि हर ख्वाहिश पर दम निकले...

जय हिंद...

kshama said...

Behad sundar rachna...tamannayen to an meeronkee bhee pooree nahi hotti..ya eak pooree hotee hai to doosaree sar uthatee hai..gareebon kee chhotee ,chotee tamannayen hotee hain...insanee fitratka bada achha bayan hai...

M VERMA said...

ऐ तमन्ना,
तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में,
तू ढल क्यों रही है||
तमन्नाओ को भी सही घर तलाशना होगा.
बहुत खूब

Udan Tashtari said...

क्या बात है जनाब!! बहुत खूब!!

संजीव गौतम said...

सुन्दर अभिव्यक्ति की है विनोद जी. ग़रीब के मन में इच्छाओं का होना बडा कष्ट्दायी होता है.

vijay kumar sappatti said...

vinod ji
namaskar

kya kahun , aapki kavita padhkar nishabd hoon .. dil ko chooti hui rachna hai .. shabdo ne to jaise jaadu ka kaam kiya hua hai ...

gareeb ke man upji saari bhaavnao ko aapne abhivyakti de di hai ,

meri badhi sweekar kare ...

Regards

Vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

Mishra Pankaj said...

पांडे जी क्षमा चाहुगा देरी से आने के लिए .
सुन्दर लिखा है आपने

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत अच्छे ढंग से आपने इन्हें शब्दों में बांधा है।
----------
बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?

Mumukshh Ki Rachanain said...

ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है

गज़ब ढा दिया भाई आपने....

कुछ भी कहें अपन गरीब को भी बहुत नहीं तो थोडा-थोडा जोश तो आ ही गया.......

हार्दिक बधाई

चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह मुस्कुराते पलो की रचना.
धन्यवाद

हरकीरत ' हीर' said...

ए तमन्ना तू इतना क्यों मचल रही है
दिखावे की दुनिया में
तू क्यों ढल रही है

विनोद जी एक गरीब मन की उथल पुथल को बहुत ही करीने से सजाया है आपने .....!!

vikram7 said...

ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है, दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है
बहुत खूब

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा अपनी तमन्ना को बांधना जिसे आ गया ......... वो सफल है ......... सुन्दर रचना है आपकी .......

शरद कोकास said...

तमन्नाओ के बहलावे मे अक्सर आ ही जाते हैं....

Urmi said...

अत्यन्त सुंदर रचना! इस शानदार और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

पाना है तुझे अब, खोने को कुछ नही है, सारी शक्तियाँ झोंक दे, राह के तूफान को तू रोक दे, हिमालय सा बन, बर्फ के टुकड़ों की भाँति गल क्यों रही है||
ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है, दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है||

bahut sunder abhivyakti ke saath .......... bahut kuch kah diya......... achcha laga padh ke.... yeh baat bilkul sahi hai....ki tamannayen ab dikhave mein dhal rahi hai........

gr8........ keep it up........

वन्दना अवस्थी दुबे said...

जोश भर देने वाली रचना...

निर्मला कपिला said...

तमन्नायें इन्सान की तरह स्वार्थी नहीं होती। हवा की तरह सब के लिये बहती हैं और सब के मन मे मचलती हैं।गरीब के लिये इनकी बात सुनना जरा मुश्किल हो जाता है बहुत सुन्दर कविता है गरीबों के दर्द को उकेरती । शुभकामनायें

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दिखावे की दुनिया में,
तू ढल क्यों रही है|
बहुत खूब!!

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

पांडे जी एक आम जन की भावना को जो आपने शब्द दिए है अद्भुद है ,,, ह्रदय को छूती हुई कविता के लिए मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

अजय कुमार said...

सुन्दर भाव , अच्छा लगा