कुछ आधी अधूरी तमन्नाएँ जो एक पल में बनती है और एक पल में बिखर जाती है..
ऐ तमन्ना,
तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में,
तू ढल क्यों रही है.
तू निरा अज्ञानी है,
या अबोध है,अथवा ये तेरी भूल है,
काँटे हैं तेरी राह में
फूल नही शूल है,
तुझे मचलना ही था,
जग के विचित्र चित्रों में ढलना ही था,
तो किसी धनवान के मन में उपजती,
वहाँ तू फूलती-फलती,
राजमहल के अद्भुत,
रंगिनियों में संवरती,
असहाय ग़रीब के,
मन के,
पगडंडीयों पर क्यों चल रही है||ऐ तमन्ना.....
तू देख तो सकती है?,
देखो,
महसूस करो,
रिश्तों के विभिन्न रूप,
किस तरह परिवर्तित हो रहे हैं,
किस तरह बेनाम,बदनाम लोग इस दुनिया मे,
चर्चित हो रहे हैं,
तुम्हारे हिस्से का वक्त भी,
किन्कर्तव्य विमूढ़ है,
तुम्हारा जन्मदायी भी आज मूढ़ है,
कोमल भावनाओं से वैर कर के,
गहन ज्वाला पर पैर धर के,
इस भाँति तू जल क्यों रही है||ऐ तमन्ना.....
तू ग़रीब के मन की,
बीज़ है,
तो क्या हुआ,
सोचो मत,
हँसी मुश्किल से आती है,
तो क्या हुआ,
वक्त प्रायः रूलाती है,
तो क्या हुआ,
इससे अधिक रोने को कुछ नही है,
पाना है तुझे अब,
खोने को कुछ नही है,
सारी शक्तियाँ झोंक दे,
राह के तूफान को तू रोक दे,
हिमालय सा बन,
बर्फ के टुकड़ों की भाँति गल क्यों रही है||
ऐ तमन्ना,
तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है||
22 comments:
ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है
वाह क्या बात है। बहुत कुछ कह दिया।
हज़ार ख्वाहिशें ऐसीं...
कि हर ख्वाहिश पर दम निकले...
जय हिंद...
Behad sundar rachna...tamannayen to an meeronkee bhee pooree nahi hotti..ya eak pooree hotee hai to doosaree sar uthatee hai..gareebon kee chhotee ,chotee tamannayen hotee hain...insanee fitratka bada achha bayan hai...
ऐ तमन्ना,
तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में,
तू ढल क्यों रही है||
तमन्नाओ को भी सही घर तलाशना होगा.
बहुत खूब
क्या बात है जनाब!! बहुत खूब!!
सुन्दर अभिव्यक्ति की है विनोद जी. ग़रीब के मन में इच्छाओं का होना बडा कष्ट्दायी होता है.
vinod ji
namaskar
kya kahun , aapki kavita padhkar nishabd hoon .. dil ko chooti hui rachna hai .. shabdo ne to jaise jaadu ka kaam kiya hua hai ...
gareeb ke man upji saari bhaavnao ko aapne abhivyakti de di hai ,
meri badhi sweekar kare ...
Regards
Vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
पांडे जी क्षमा चाहुगा देरी से आने के लिए .
सुन्दर लिखा है आपने
बहुत अच्छे ढंग से आपने इन्हें शब्दों में बांधा है।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है,
दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है
गज़ब ढा दिया भाई आपने....
कुछ भी कहें अपन गरीब को भी बहुत नहीं तो थोडा-थोडा जोश तो आ ही गया.......
हार्दिक बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com
बहुत सुंदर लगी आप की यह मुस्कुराते पलो की रचना.
धन्यवाद
ए तमन्ना तू इतना क्यों मचल रही है
दिखावे की दुनिया में
तू क्यों ढल रही है
विनोद जी एक गरीब मन की उथल पुथल को बहुत ही करीने से सजाया है आपने .....!!
ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है, दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है
बहुत खूब
सच कहा अपनी तमन्ना को बांधना जिसे आ गया ......... वो सफल है ......... सुन्दर रचना है आपकी .......
तमन्नाओ के बहलावे मे अक्सर आ ही जाते हैं....
अत्यन्त सुंदर रचना! इस शानदार और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
पाना है तुझे अब, खोने को कुछ नही है, सारी शक्तियाँ झोंक दे, राह के तूफान को तू रोक दे, हिमालय सा बन, बर्फ के टुकड़ों की भाँति गल क्यों रही है||
ऐ तमन्ना, तू इतना,मचल क्यों रही है, दिखावे की दुनिया में, तू ढल क्यों रही है||
bahut sunder abhivyakti ke saath .......... bahut kuch kah diya......... achcha laga padh ke.... yeh baat bilkul sahi hai....ki tamannayen ab dikhave mein dhal rahi hai........
gr8........ keep it up........
जोश भर देने वाली रचना...
तमन्नायें इन्सान की तरह स्वार्थी नहीं होती। हवा की तरह सब के लिये बहती हैं और सब के मन मे मचलती हैं।गरीब के लिये इनकी बात सुनना जरा मुश्किल हो जाता है बहुत सुन्दर कविता है गरीबों के दर्द को उकेरती । शुभकामनायें
दिखावे की दुनिया में,
तू ढल क्यों रही है|
बहुत खूब!!
पांडे जी एक आम जन की भावना को जो आपने शब्द दिए है अद्भुद है ,,, ह्रदय को छूती हुई कविता के लिए मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
सुन्दर भाव , अच्छा लगा
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