Sunday, March 8, 2009

एम.सी.ए. का तीसरा सेमेस्टर

हमारे जिंदगी मे कुछ ऐसे पल होते हैं जिन्हे हम बार बार याद करना चाहते है,और खास कर के वो समय जो थोड़ा मुश्किल और मजेदार दोनो रहा हो,परिस्थिति ऐसी होती है की हम उस पल को अपने संघर्ष से जीत तो लेते है,पर उस मस्ती से वंचित रह जाते है ,जो उस दौरान चलता रहता है. हम अपने सहपाठियों के लिए एक ऐसे ही पल के कुछ मजेदार अनुभव अपनी कविता में पिरो कर लाए हैं,जिसे पढ़ कर निश्चित रूप से आप को आनन्द आएगा. MCA के इस तीसरे सेमेस्टर की यात्रा के दौरान हम आपके चेहरों पर मुस्कुराहट की उम्मीद रखते है,बस मेरे लिए इस पल को आपके सामने प्रस्तुत करने का मेरा ध्येय सफल हो जाएगा. और हाँ साथ ही साथ मेरा निवेदन है अपने गुरुजनो से जिनका नाम इस कविता मे मैने ले रखा है ,किसी प्रकार से अपने को इससे ना जोड़े. मेरा उद्देश्य बस आप सब का मनोरंजन करना है आज भी हमारे दिल मे आप सब के लिए वही श्रद्धा है जो पहले थी और आपके आशीर्वाद की ज़रूरत हमे जीवन पर्यंत रहेगी.

तीसरे सेमेस्टर मे एम.सी.ए. के
जजबात सामने आने लगे, 
जो बात छुपे थे वो बात सामने लगे,
सोचा था बस यूँ ही,निकल जाएँगे ये 3 साल, 
पर इस मुकाम पे तो कदम डगमगाने लगे|  

ये मेरा ही नही हर लोगों का हाल है, 
हर एक दिल मे बसा यहीं एक मलाल हैं
एक सेमेस्टर मे 6 कोर्स रख दिए, 
ये U.P.T.U. का बहुत बड़ा चाल हैं| 
 वैसे तो सारे विषय Interested थे,
साफ्टवेय मार्केट मे भी Tested थे, 
पर जिस 3 महीने मे होना चाहिए था 3, 
उसी 3 महीने मे 6 सब्जेक्ट Suggested थे|  

पहले पेपर मे ही काफ़ी वर्क दिखा, 
जब MCA 301 COMPUTER NETWORK दिखा, 
जब तक की बात कुछ भेजे मे जाती,
 उससे पहले फैकल्टी ही चली जाती| 
शुरू से ही यह विषय डराने लगा, 
1 यूनिट 3-3 बुक से आने लगा| 
TOPOLOGY के साथ COLLISION बढ़ने लगा, 
CDMA/CS भी दिमाग़ पर चढ़ने लगा, 
PROTOCOL हर जगह ही टांग अड़ाने लगा, 
ISDN रात को सपनों मे आने लगा|  
CRYPTOGRAPHY गुथा था रहस्यमयी रोल मे, 
सब लोग उलझने लगे CONGESTION CONTROL मे| 
परेशान होने लगा टॉपिक सर्च करने के वर्क मे, 
कभी FROZEN कभी TANENBAUM के नेटवर्क मे,  

MCA 302 जितना भी कहे कम है, 
पूरे 3rd सें का आधा दमखम है, 
शॉर्ट मे DAA कहते है पर बहुत बड़ा है, 
पूरा COREMAN कमेटी इसके पीछे पड़ा हैं|
DESIGN,ANALYSIS,ALGORITHUM सब को समेटा है, 
तीन शब्द मे 3 फेज़ को लपेटा है, 
इसके बारे मे कुछ ना कहे तो ही ठीक होगा,
बस विनीता मेम से थोड़ी जान आ गयी थी, 
या कह सकते है पेपर ही आसान आ गयी थी|  

पूरे सेमेस्टर मे जिसे लेकर रहे फ्री, 
वो था हमारा अपना MCA 303, 
OPERATING SYSTEM चतुर्वेदी सर पढ़ाते थे, 
सच कहे बच्चों का कॉन्फिडेन्स बढ़ाते थे|  
CRITICAL REGION मे कोई फँसनें नही पाया, 
पूरे सेमेस्टर मे कहीं DEADLOCK नही आया, 
हाँ THREAD,VIRTUAL MEMORY का अच्छा ज्ञान हो गया था, 
और SIR के SHEDULING से PROCESS MANAGMENT आसान हो गया था|  

एक ASSIGNMENT से SESSIONAL का काम चल जाता था, 
और सरप्राइज़ नंबर 28 के उपर ही आता था,
पूरा विषय बस 3 ASSIGNMENT मे बट गया था,
कुछ का तो इसी मे EXTERNAL भी निपट गया था|  

जिसे पढ़नेपे सभी ने दिया था ज़ोर,
वो था हमारा अपना MCA 304, 
क्यूँ ना पढ़े FACULTY ही कुछ ऐसी थी, 
बस यही समझ लो ,कुछ महान लोगो जैसी थी|  

कभी नरम कभी गरम दो टाइप के बिहेवियर थे, 
जी हाँ सही समझे वो अपने सिंघल सर थे, 
अच्छे पढ़ाते थे,सब कुछ समझाते थे, 
पर उनके जाते ही हम सब भूल जाते थे|  

जिसे चाहे धकेल देते थे, 
CLASS के हर ENTITY का STATE बदल देते थे, 
RELATIONSHIP, ATTRIBUTE की परवाह किए बिना, 
जिस दिन चाहे CLASS MODEL बना देते थे | 

INDEX बन ही नही पाया ,TRIGGER आ गया, 
CLUSTER,GROUP FUNCTION ना जाने कहा गया, 
RELATION DATABASE बस रूल ही रूल थी, 
E.F.CODE ही एक सोची समझी भूल थी|  

सब का चेहरा खुशी से खिल जाता था, 
जब सर का पढ़ाया टॉपिक NAVATHE मे मिल जाता था,

MCA 305 कुछ राहत दे रहा था, अपने से पढ़ने मे इंट्रेस्टेड हो रहा था, 
धीरे धीरे माइंड PROGRAMING पे सेट हो रहा था, 
पर एक बात का बहुत गम था, 
SESSIONAL मे नंबर बहुत कम था|  

OOPS का कॉन्सेप्ट तो कुछ समझ मे आने लगा था ,
पर बिना प्रैक्टिस प्रोग्रामिंग स्किल्स जाने लगा था,
हर FUNCTION VIRTUALY सेट हो जाता , 
PRIVATE ,PUBLIC,पब्लिक प्राइवेट हो जाता |  

OPERATION REASARCH, MCA 306 था, 
जितना करो उतना नंबर फिक्स था,
भूपेंद्र सर ने पूरी मेहनत से पढ़ाया था, 
ये बात अलग थी ,मेरी समझ मे कम आया था|  

SIMPLEX कुछ SIMPLE था,
REVISED मे घूमता रहा, 
DUAL के करेक्टर से परेशान हो जाता था, 
पर TRANSPORT से सब्जेक्ट कुछ आसान हो जाता था, 
INVENTRY पे ध्यान देता तो REPLACEMENT मे अटक जाता था, 
AT LAST QUEUE मे आकर भटक जाता था|  

तो ये थे हमारे तीसरे सेमेस्टर के हाल,
सब के सब विषय थे गजब के कमाल, 
पर FACULTY के SUPPORT से अभ्यास हो गया, 
थोड़े प्रयास से नंबर का आस हो गया,
गिरते ,संभलते किसी तरह काट ही लिए 3rd Sem, 
पर ये बीते पल मेरे लिए बहुत खास हो गया||
पर ये बीते पल मेरे लिए बहुत खास हो गया||

Saturday, March 7, 2009

राजनीति और हम


आज सुबह जैसे ही मेरी नींद खुली रात भर की भटकती हुई आँखे सामने मेज पर रखे न्यूज़ पेपर पर पड़ी जहाँ फ्रंट पेज पर ही देश कुछ महान नेता जी लोगों का फोटो छपा था,जी हाँ आप चाहे जो समझे पर इन्हे महान कहना मेरी मजबूरी है, आख़िर एक अरब से अधिक जनता की ज़िम्मेवारी इन्ही के उपर है ना, आप भले इस बात को मत मानिए पर ये बार बार हर चुनाव से पहले चीख चीख कर इसी ज़िम्मेवारी का अहसास खुद करते है साथ ही साथ हमारी इस अर्धस्वीकृत विश्वास को और बढ़ावा देते है की हमारे देश की आर्थिक,धार्मिक,मानसिक यहाँ तक की सामाजिक परिस्थिति सब सोचनीय सो चुकी है और ये एकमात्र चमत्कारिक अवतार है जो हमारी इस डूबती हुई पतवार को सहारा दे सकते है.
तो आप ही सोचिए ऐसे मनोबल बढ़ाने वाले व्यक्तित्व को महान कहना कदापि ग़लत नही होगा,वैसे तो मैं इन्हे महापुरुष के नाम से सुशोभित करता पर कभी कभी देश की मुश्किल घड़ी में इनकी महानता, पुरुषत्वता पर भारी पड़ जाती है. इन्हे देखकर और इनकी करतूतो को याद करके मैं कुछ देर सोचने लगा की अगर हम इनकी पथ पे चले तो देश के विनाश में कैसे भागीदार बन सकते है तो सचमुच बड़ा ही रुचिकर लगा वही सब बातें अपनी कल्पना मैं आपके सामने पेश करने जा रहा हू अपनी नये कविता के रूप में जो इस वर्तमान चुनाव मे देश के लोगो के लिए एक प्रेरणा श्रोत का कार्य करेगी.

एक दिन सोच रहा था मैं,कि राजनीति मे आऊँ,
जो लिपटे हैं सत्ता से,उनका जलवा दिखलाऊं| 
कूद पडु इस महासमर मे लेकर रंग बिरंगी चाल,
नये तरह राजनीति मे,Tech-Style Use करूँ||  

सीख चुका हूँ रंग बदलना,सत्ताधारी वीरों से, 
मेरा तरकश भरा पड़ा है दाँव पेंच के तीरों से| 
कुर्सी लोभी रेस मे मैं ,सबको पीछे कर दूँगा, 
जब पहुँचुँगा संसद को,उपर नीचे कर दूँगा||  

हर चुनाव से पहले ,माफ़िया Network बढ़ाऊँगा, 
लूट पाट,मारा मारी सबकी Training करवाऊँगा | 
Simulation करवाऊँगा, हर एक चुनाव से पहले, 
बनेगा बस अपना Model, कोई कितना भी कह ले||  

फिर जनता का काम करूँगा ,जगह जगह प्रोग्राम करूँगा , 
भाषण दूँगा जमकर खूब ,अपने देश का नाम करूँगा | 
करने को Deploy देश का ,बिज़नेसमेन करूँगा Set , 
किसको मिलेगी Priority, Random Number होगा Genarate ||  

करके मदद ग़रीबों का ये भी Interest बचा लेंगे , 
नाम हमारा ही होगा ,हम जनता को समझा लेंगे |
राजनीति के Packeage मे हूँ, Work भी होगा Inherite , 
हर Project के Planing मे ,फिर जान बूझकर होगा Late||  

सारा ध्यान लगा दूँगा ,Object-Money के Hacking मे , 
I-Way को उसे करूँगा ,Decision Making मे | 
दबा के सबको रख दूँगा ,कोई भी कितना बड़ा सिकंदर, 
और पार्टी का Main Function(),होगा मेरे Class के अंदर||  

बन जाऊँगा Interface ,बढ़ेगा तब पार्टी का Tent,
बिन Planing Project चलेगी ,रहेगा बढ़ता अपना Rent| 
वैसे तो पैसा जनता का ,फिर भी काम नही कुछ होगा ,
 Signature Available होगा ,नही दिखेगा Impliment|| 

दे दूँगा कश्मीर पाक को ,अपने हाथ भी कुछ आएगा , 
जनता लड़ेगी आपस मे ,तो अपने बाप का क्या जाएगा | 
मुद्दा लेकर मंदिर मस्जिद ,करता रहूँगा सबको Worm,
राज करूँगा जनता पे ,With One Name Multiple Form||  

ऐसा हम बस सोच रहें हैं,पर देखो तो हाल यही हैं, 
यही आज का रूप है भाई,हर एक दिल में चाल यहीं हैं|
आने वाले पल मे ,ऐसा कभी भी हो सकता है, 
ऐसे घटना से भारत खुद फिर से खो सकता हैं|| 

कैसी गहरी राजनीति,अब कैसा गिरा ये राजतंत्र , 
पराधीन लगता भारत ,जो बरसो पहले हुआ स्वतंत्र| 
हुआ अगर ऐसा तो समझो ,ज़िम्मेदार हमी हैं,
हमे सोचना है की हममे,आख़िर कहाँ कमी है||  

क्यूँ ऐसे को चुन लेते है,जिसके कई रूप व Phase, 
क्यूँ ऐसी Coding करते है,जिसका OutPut Garbage|
ऐसे मत लो decision जिसका परिणाम विकट हो,
 System Print कराओ ऐसा ,अच्छा Output हो||  

एक बार फिर मिला है मौका ,सोचो समझो Get करो, 
किसी नये संचालक को,अपने System पर Set करो|
Check करो Auto Process को ,लगा के हर Moment Mirror,
अगर सही है Logic तो,क्यूँ करते हो Syntax Error ||

Monday, March 2, 2009

वो बीते दिन बचपन के


आइए हम इस ब्लॉग की शुरुआत करते है अपने सबसे अच्छे कविता से जो आज कल के परिवेश मे जी रहे एक युवा के मन की दास्तान है,आशा है आप सब को भी मेरी यह कविता पसंद आएगी हम अपने पीछे क्या छोड़ कर आए है कितनी बातें और कितनी सरल और सहज जिंदगी जी आप सही समझ रहे है वो है हमारा बचपन और आज हम उसी बीते पल को याद करते है.

संवरता रहा मैं निखरता रहा मैं, समय चक्र के संग चलता रहा मैं,
मगर जब कभी बीते पल की निहारा,सहमने लगा मैं मचलता रहा मैं,  

सहारा जो कल थे कहाँ अब गये वो ,ये उलझन बड़ी थी सुलझती नही,  
हर एक पल संवारे कहाँ,खो गये वो ये कहता रहा खुद से सुनता रहा मैं,  

वो दादी के किस्से वो बाबा की बातें,पुराने हुए पर रही बात बाकी, 
हर एक पल वो दो पल वो जीतने भी पल थे,गुजरते गये पल रही याद बाकी,  

उन्ही चन्द लम्हों को फिर से पिरोया तो दिल के झरोखे से आवाज़ आई,  
अंधुरी कहानी के वो लफ़्ज अंतिम, बढ़ाते ही रहना सुनो मेरे भाई,  

ये मीठी सी चुभती जो दस्तक हुई ,किया गौर देखा मेरे यार थे,  
वो कहते थे ऐ दोस्त पूरा करो, जो बचपन मे हमने कहानी बनाई,  

अचानक तभी दिल के दो तार झूमे ,लगा जैसे दादी की आवाज़ आई,  
अरे मेरे बच्चे ये क्या करा रहा तू,अभी तक भी तूने ना वो लक्ष्य पाई,  

संभल कर भी चलना नही तुझको आया ,कदम से कदम को मिला कर चलो,  
करो याद चलना संभल कर के बेटा, जो उंगली पकड़ कर के हमने सिखाई,  

ये शिकवे थे उनके जो साहस लगे,मगर मैं बहुत दूर तक आ चुका था, 
वो बचपन की बातें नयी फिर हुई ,जवानी के दहलीज़ पर जब रुका था,  

जो रुक कर चला तो लगा मुझको ऐसे ,यही सब सहारा हमारे लिए, 
वो यारों के सपनो से है राह जाता,बने जो किनारा हमारे लिए,  

करूँ ख्वाब को सच जो हमने था देखा ,वो मुश्किल भी चाहे हो जितना बड़ा,  
वो बचपन के सपने भी होते है सच ,जो हिम्मत से करने को खुद से अड़ा,  

कहानी कहानी मे मंज़िल मिली थी,हक़ीक़त मे भी उसको पा कर रहूँगा , 
दुआओं से यारों के मुश्किल हटेगी,मैं सपना हक़ीक़त बना कर रहूँगा ,  
मैं सपना हक़ीक़त बना कर रहूँगा ,मैं सपना हक़ीक़त बना कर रहूँगा....