Monday, January 24, 2011

बदनाम हो ना मुन्नी कोई,ना कोई ज़्यादा ही दबंग हो-----(विनोद कुमार पांडेय)

पिछले कुछ दिनों से आप व्यंग्य आलेख पढ़ रहे थे|आज थोड़ा हट कर एक ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूँ जिसे विशेष रूप से मैने नववर्ष के तरही मुशायरे के लिए लिखी है|बहर थोड़ी कठिन है सो यदि कहीं कोई त्रुटि हो तो माफ़ करें और अपना आशीर्वाद दें|धन्यवाद|


नए साल में,नए गुल खिलें,नइ हो महक,नया रंग हो
मन में नया उत्साह हो,नइ हसरतों के पतंग हो

भोजन मिले भूखे है जो,फुटपाथियों को छत मिले
आपस में हो सौहार्दयता,निर्धन धनी एक संग हो

हँस कर जियें सब बेटियों, माँ-बाप भी खुशहाल हो
ना दहेज की कोई माँग हो, ना ससुराल में कोई तंग हो

भय दूर हो सब हो सुखी, राहत मिले सब लोग को
बदनाम हो ना मुन्नी कोई,ना कोई ज़्यादा ही दबंग हो

कोई नया मोदी न हो,और ना कोई कलमाड़ी हो
घोटालेबाजी दूर हो,सरकार के सही ढंग हो

सब मान लें इस ध्येय को, भगवान सारे एक है
हिंदू-मुसलमाँ एक हो, ना धर्म के लिए जंग हो

चारो तरफ बस हो खुशी,मुस्कान हो हर अधर पर
विकसित हो अपना देश यूँ, बैराक ओबामा दंग हो

Friday, January 21, 2011

क्रिकेट खिलाड़ी और उनका फॉर्म----(विनोद कुमार पांडेय)

क्रिकेट के माहौल में कुछ क्रिकेट की बात ना हो ना मज़ा नही आता|आज इसी सन्दर्भ में एक हास्य व्यंग्य प्रस्तुत कर रहा हूँ|धन्यवाद|

क्रिकेट के जन्म के साथ से ही एक और बढ़िया शब्द चला आ रहा है और वो है फॉर्म|जी हाँ खिलाड़ी का फॉर्म में होना और न होना भी एक चर्चा का विषय होता है|जब जब किसी मैच की चर्चा होती है चयन समिति बस इसी विषयवस्तु पर नज़र रखने के लिए बनी होती है कि कौन सा खिलाड़ी फॉर्म में है और कौन आउट ऑफ फॉर्म चल रहा है|

अब यह फॉर्म भी बड़ी अजीब चीज़ है|अगर क्रिकेट नही होता तो कोई फॉर्म का मतलब भी ठीक से नही समझ पाता|मुझे तो आज तक फॉर्म का आना-जाना समझ में नही आया कि यह कब आता है और कब चला जाता है|जैसे किसी खिलाड़ी का फॉर्म नही जापान में भूकंप के झटके हो या भारत के गाँव की बिजली|मतलब कभी भी आती है और कभी भी चली जाती है|फॉर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि फॉर्म किसी को भी हीरो बना सकता है और किसी को भी ज़ीरो|स्थिति ऐसी भी हो जाती है कि जब फॉर्म में रहते है तो आशीष नेहरा के गेंदों में भी धार हो जाती हैऔर आउट ऑफ फॉर्म होने पर सौरव गांगुली जैसे खिलाड़ी की भी वैल्यू ज़ीरो हो जाती है|

इससे भी इनकार नही किया जा सकता कि आई. पी. एल.-४ के लिए खरीदे गये खिलाड़ी भी फॉर्म के वजह से काफ़ी उँचे दाम पर बिके और जो नही बिके उनके पीछे भी उनका फॉर्म ही मुख्य कारण रहा|जिस वजह से जयसूर्या और लारा जैसे दिग्गजों को भी कोई खरीददार नही मिला|

फॉर्म के महिमा का जितना गुणगान गाया जाय कम है|अगर फॉर्म कोई ईश्वरीय स्वरूप होता तो सारे क्रिकेटर फॉर्म की रोज पूजा करते,अगरबत्ती जलाते और मन्नते भी करते कि हे फॉर्म देवता बस मेरे साथ रहना| और अगर फॉर्म कोई सरकारी अफ़सर होता तो इसी आने-जाने के मामले में घूस लेकर अरबपति हो जाता|मतलब आने के रेट भी तय हो जाते और यह भी तय हो जाता कि किस खिलाड़ी के साथ कितने मैच तक बने रहना है| पर शुक्र है फॉर्म ऐसा कुछ नही है बस एक स्थिति है जिसमें खिलाड़ी बढ़िया प्रदर्शन करता है|फॉर्म का महत्व बस खिलाड़ियों तक ही सीमित नही है बल्कि लोग भी अपने पसंदीदा क्रिकेटर के फॉर्म को लेकर उत्सुक रहते है| साथ ही साथ फॉर्म सट्टेबाज़ों के लिए भी बहुत महत्व रखता है|बल्कि यूँ कहे उनका धंधा ही खिलाड़ी के फॉर्म पे टिका रहता है|अब कोई पैसों के चक्कर में आकर जान-बूझ कर अपना फॉर्म खराब कर लें तो ये अलग बात है|

कुल मिला जुला कर हम यह कह सकते है कि क्रिकेट के शब्दावली में फॉर्म बहुत बड़ा नाम है|और इसे बनाए रखना एक खिलाड़ी के लिए बहुत बड़ा काम है वरना खिलाड़ी बस नाम का ही रह जाता है|

Monday, January 17, 2011

वाह रे मौसम----(विनोद कुमार पांडेय)

मौसम भी बड़ा दिलचस्प चीज़ है|गर्मी,बरसात या जाड़ा कोई भी मौसम हो आते ही तुरंत चर्चा में आ जाता है| मौसम आज कल आम आदमी के पास बहस का दूसरा मशहूर टॉपिक भी है| पहले पोज़िशन पर राजनीति है|वैसे ये भी बात सही है कि आम आदमी ज़्यादा प्रभावित भी इन्हीं दोनों चीज़ों से है|अगर अंतर की बात करें तो दोनों में एक खास अंतर यह है कि मौसम को तो बदलते देखा गया है पर राजनीति सालों-साल से जस की तस है|

खैर हम मौसम की बात कर रहे थे तो असल बात यह है कि मौसम कुछ ग़लत नही कर रहा है बल्कि हम ही उसे समझ नही पा रहे हैं |अब ठंड के मौसम में ठंड नही पड़ेगा तो क्या लू चलेगा?और अगर गर्मी में ओले पड़ जाए तो वो भी किसी को हजम नही होगा और पूरे दिन गाते फिरेंगे कि कैसा युग आ गया है भगवान,गर्मी में भी ओले पड़ रहे है |

दरअसल आदमी का स्वभाव ही ऐसा हो गया है| संतृष्टि मिलती ही नही पब्लिक की गणित कुछ ऐसे चलती है कि अगर ये हो गया तो वो क्यों नही हुआ? और वो हो गया तो ये होना चाहिए था|अब ऐसे में मौसम क्या करे|

आप को किसी भी समय,कोई भी बीमारी हो जाए आदमी के मुँह से सबसे पहले यहीं निकलता है सब मौसम का असर है|गर्मी की रात में छक कर आइसक्रीम खाओ और अगर सुबह हल्की सर्दी भी हो गई तो बस मौसम बदल रहा है| भाई मौसम बेचारे को कहीं तो बक्श दीजिए| हर समय बस सारी ग़लती मौसम की ही है ये तो नाइंसाफी हुई ना फिर कभी कभी अगर वो भी मनमानी करता है तो इसमें हल्ला मचाने वाली कौन सी बात है|हम अपनी मनमानी कर सकते है तो उसे भी अपनी मनमानी करने का पूरा अधिकार है|

हमें बोलने की आदत है सो हम बोलते रहते है| बाकी हमें सब पता है कि जब भयंकर भ्रष्टाचार,तेज मँहगाई,भीषण चोरबाज़ारी,बड़े बड़े घोटाले हमारा कुछ नही बिगाड़ पाए तो ये चार दिन का मौसम हमारा क्या बिगाड़ लेगा|अब तो हम सबको सहन करने की और दूसरों को दोष देने की आदत सी हो गई है|इस बात के लिए हम राजनीति का सदैव ऋणी रहेंगे जिस वजह से आज हम इतने सहनशील और मजबूत इरादे वाले बन पाए|

वैसे भी मौसम की मार के बारे में शोर करने वाले लोगों को यह याद ही नही रहता कि आख़िर हम नें प्रकृति को क्या दिया|धूल,धुआँ,प्रदूषण,गंदगी,शोर इत्यादि जब हमारे पास यहीं बेहतरीन मैटेरियल बचे है प्रकृति को देने के लिए तो हम मौसम से क्या अच्छे की उम्मीद रखें| जैसे को तैसे वाली बात तो अब हर जगह है|

और यहीं राज भी है मौसम के बदलने का अभी तो स्थिति बहुत सही है पर अगर ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो फिर देखिएगा| मौसम का स्टाइल आने वाले समय में ठंडी,गर्मी,बरसात सब कहर ढाएँगेऔर हम ऐसे ही दोष देते रहेंगे कि मौसम ऐसा है, मौसम वैसा है क्योंकि इससे ज़्यादा तो कुछ हमारे हाथ में रहेगा नही| इसलिए अभी ही सुधर जाना ही बेहतर है ताकि भविष्य में मौसम और हम दोनों संतुलित रहें|

Friday, January 14, 2011

साल नया पर हाल पुराना----(विनोद कुमार पांडेय)

नये साल के आगमन पर पिछले सप्ताह आपने एक ग़ज़ल पढ़ी आप सब के प्यार और आशीर्वाद का आभारी हूँ आज एक हास्य-व्यंग्य .प्रस्तुत कर रहा हूँ.उम्मीद करता हूँ यह भी आप सब को पसंद आएगीधन्यवाद


नया साल आ भी गया और एक सप्ताह पुराना भी हो गया इधर कुछ दिनों में कुछ नया तो हुआ ही नही|नये साल की तैयारी में लगी जनसमूह में एक ग़ज़ब का उत्साह हर वर्ष ऐसे ही रहता है पर जैसे जैसे दिन बीतते जाते है उन्हें समझ में आने लगता है कि सारा शोर-शराबा बस महज एक दिखावा था|यह साल भी ऐसे ही जा रहा है जैसे बाकी के वर्ष गये|


ऐसी परंपरा लगभग हर वर्ष के अंत और प्रारम्भिक दौर में चलती रहती है और भोली-भाली जनता सकारात्मक ख्वाब बुनने में लगी रहती है |वैसे यह बुरी बात नही सोच तो ऐसी ही होनी चाहिए पर अब अपना देश ही ऐसा है जो पुराने मुद्दों में ही उलझा रहता है तो नया कहा से होअगर नया कुछ सुनने में भी आता है तो वो बस घोटाले बस और कुछ भी नही|


एक विश्लेषण के अनुसार गत वर्ष में बहुत बड़े बड़े घोटाले सामने आए जो खुद अपने में एक कीर्तिमान है| जिसके लिए २०१० का नाम सदा इतिहास में दर्ज हो गयाचूँकि घोटाला काफ़ी विद्वान और पढ़े लिखे लोगों द्वारा किया गया था इसलिए यह थोड़ा और ज़्यादा ही स्टैंडर्ड घोटाला माना जा रहा है|


अब अगर नया साल कुछ नया लाता है तो इन घोटाले करने वालों के लिए नया होगा जैसे कि यह बरी हो जाएँगे या कोई छोटी-मोटी सज़ा हो जाएगी|आम जनता के लिए कुछ नया होना तो जैसे बंग्लादेश के लिए विश्वकप जीतने जैसी बात होगी|फिर भी भारत की भोली जनता की उम्मीद देखिए अपने निजी खुशियों को नया-पुराना करने में व्यस्त है |सार्वजनिक खुशी या कोई देशव्यापी समाचार की ओर वो भी ध्यान नही देते है क्योंकि उन्हें भी पता है कि अब डीजल और पेट्रोल के दाम तो घटेंगे नही और ना ही देश में भूख और ठंड से मरने वालों की संख्या में घटोत्तरी होगी|


नये के नाम पर अगर पिछले वर्ष की बात करें तो कॉमनवेल्थ गेम जैसी सफलता मिली जो निश्चित रूप से हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है पर उसके साथ ही कॉमनवेल्थ घोटाला भारतीयों के सर को नीचा कर दिया और कोई उम्मीद भी नही दिखाई देती की इस बात का फ़ैसला कब तक होगा|


सुरेश कलमाड़ी,ललित मोदी जैसे महान विभूतियों ने तो यह भी सिद्ध कर दिया की खेल-खेल में भी घोटाले संभव है और वो भी हल्के-फुल्के नही बल्कि काफ़ी भारी भरकम| जब जब २०१० की बात होगी इन लोगों का नाम सबसे उपर होगा|भारत के पूर्व रेकॉर्ड को देख कर इससे इनकार नही किया जा सकता कि नये वर्ष में कुछ और नये कलाकार सामने निकल कर आए जो घोटालेबाजी के करतब में जनता को और भी आश्चर्यचकित कर दें और देश की हालत यथास्थिति बनी रहें |और नया जैसा कुछ प्रतीत ही ना हो|

अब यदि पब्लिक प्याज के दाम में कमी को नया मानती है तो फिर नये वर्ष में नया ज़रूर होगा वरना राष्ट्रीय स्तर पर तो पुरानी टाइप की घटना ही बार बार घटती रहती है

Friday, January 7, 2011

साल नया पर हाल न बदला---(विनोद कुमार पांडेय)

नववर्ष की हार्दिक बधाई के साथ साथ अपनी ही शैली में एक व्यंग्य रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ|आप सभी के आशीर्वाद का आपेक्षी हूँ|धन्यवाद

साल नया पर हाल न बदला,गीत नयी पर ताल पुरानी
मँहगाई नें जड़े तमाचे,जनता की है गाल पुरानी

मरते है हर साल भूख से,अपने देश के बाशिंदे
दूर ग़रीबी होगी अबकी,है सरकारी ढाल पुरानी

राजनीति व्यवसाय बना है,काले-गोरे धंधों का
आरक्षण व जाति-धर्म की वहीं चुनावी जाल पुरानी,

पढ़े लिखे भी चुप बैठे हैं,जो है सब कुछ वही ठीक है,
लोगों को भरमा कर रखना,चमचों की है चाल पुरानी

राजनीति कब तक सुधरेगी,यह कह पाना मुश्किल है,
संसद में बदलाव चाहिए,मन में यहीं ख्याल पुरानी