Monday, August 22, 2011

अन्ना जी और देश की सरकार----(विनोद कुमार पांडेय)

भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए अन्ना हज़ारे जी के पहल और नेतृत्व को सलाम करते हुए देश की ताज़ा परिस्थितियों पर एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ |आप भी गुनगुनाएँ जिससे मेरी लेखनी सफल हो जाएँ| धन्यवाद||

भ्रष्ट नेताओं के चेहरे की चमक गायब हुई,
पड़ गई है देश की सरकार पेशोपेश में |
देख कर के देश के परिवेश को यूँ लग रहा,
कुछ नया बदलाव हो कर ही रहेगा देश में ||

जिस पे हमने की भरोसा,वो ही धोखेबाज थे
कीमतें बढ़ती रही जब-जब भी उनके राज थे
आम जनता को बनाया है गया उल्लू सदा
बोलकर कुछ शब्द मीठे छल भरे संदेश में || देख कर के.....

मिल गई चोरो को कुर्सी और जनता त्रस्त है
कुछ गये पकड़े मगर,कुछ अब भी बाहर मस्त है
कानिमोझी और राजा ने उड़ाए माल अरबों
खाक होगी कुछ तरक्की,इस बुरे परिवेश में || देख कर के.....

दैत्य भ्रष्टाचार का कुछ इस तरह पीछे पड़ा
लूटते खाते रहें सब जिसके जो हत्थे पड़ा
तब करप्सन को मिटाने का लिए संकल्प मन में
आ गये बापू दोबारा अन्ना जी के वेश में || देख कर के.....

टीम अन्ना नें उड़ा दी नींद इस सरकार की
सोनिया,राहुल हुए फुर्र, फँस गये सरदार जी
कपिल सिब्बल हैं लगे अपने सियासी दाँव में
दिग्विजय पगला के कुछ भी बक रहें आवेश में || देख कर के.....

Friday, August 19, 2011

४ मुक्तक----(विनोद कुमार पांडेय)

एक लंबे अंतराल के बाद 4 मुक्तक से अगली पारी का आगाज़ कर रहा हूँ देखिएगा...

दोष अपना दूसरों पर मढ़ने की कला
बन चुकी है आज आगे बढ़ने की कला,
बन नही पाओगे उल्लू,तुम कभी
है पता गर आदमी को, गढ़ने की कला

जमाने के ढंग को समझने लगे हम
दिखावा है ज़्यादा,हक़ीकत बहुत कम,
और अपनों को चूना लगाने में भी अब
नही आती है आदमी को शरम

मानता हूँ बड़े आदमी हो गये,झोपड़ी थी कभी,जो महल हो गई
बीज बंजर पे बोया था जो आपने,उस जगह पे भी अच्छी फसल हो गई
पर न इतराना इस पर कभी दोस्त तुम,काम इससे बड़ा भी है संसार में
बन सको मुस्कुराहट अगर तुम किसी का,तब समझना की जीवन सफल हो गई

इस कदर हालात से मजबूर हो गये
नज़दीकियाँ कायम रही पर दूर हो गये
इंसानियत की बातें जिस दिन से बंद की
उस दिन से वो जहाँ में मशहूर हो गये