Saturday, August 19, 2017

बरेली की बर्फी



फिल्मों की दुनिया में कम पैसा खर्च कर के अधिक मुनाफा कमाना एक कलाकारी है और इस कलाकारी में डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी का हाथ एकदम साफ़ मालूम पड़ता है |निल बटे सन्नाटा के बाद उन्होंने बरेली की बर्फी दिखा कर सिनेमा पसंद लोगों की जीभ को लपलपाने का मौका दिया है,कम ही लोग होंगे जो इसे खाने से परहेज करेंगे | सुपरहिट मूवी दंगल के डायरेक्टर नीतेश तिवारी ने बरेली की बर्फी की कहानी में मीठे के साथ-साथ नमक-मिर्च भी भरपूर मात्रा में ठूसा है | फिल्म असफल प्रेमियों को जीवन के प्रति आशावान बनाती है ,उन्हें किताब लिखने की प्रेरणा देती है ताकि शायद इस डिजिटल युग में कोई भूले भटके से उनकी किताब पढ़ ले और कोई बरेली की बर्फी उनकी जिंदगी में भी मिठास घोल दे | फिल्म हँसाती भी है ,रुलाती भी है ,डगमगाती भी है और भरमाती भी है | महानगरों की चकाचौंध से दूर फिल्म की पृष्ठभूमि आपको अपने पास-पड़ोस की याद दिलाएगी | हालाँकि फिल्म में बरेली का कोई विशेष योगदान नहीं है फिर भी कहीं-कहीं क्षेत्रीय बोलियों का अद्भुत प्रयोग डायलॉग डिलीवरी को आकर्षक बना रहा है | हाँ एक खास बात यह है कि बरेली की बर्फी टाईटल में साहित्यिक टाईप के लोगों को अनुप्रास अलंकार दिखाई पड़ता है परन्तु यह अलंकार तब भी झलकता अगर इस फिल्म का नाम बलिया की बर्फी ,बनारस की बर्फी ,बाराबंकी की बर्फी या बहलोलपुर की बर्फी होता |
फिल्म की कहानी बरेली के स्थानीय हलवाई (पंकज त्रिपाठी ) एवं प्राइमरी स्कूल शिक्षिका (सीमा पाहवा ) की इकलौती बिंदास लड़की बिट्टी मिश्रा (कृति सेनन ) के कारनामें से शुरू होती है | सिगरेट और इंग्लिश फिल्मों की दीवानी बिट्टी का शहर में कोई दीवाना नहीं है ,घर वाले शादी के लिए लड़के तो खूब ढूढ़ रहे हैं लेकिन बिट्टी की आदतों और हाजिरजवाबी का मुकाबला करना किसी लड़के के वश में नहीं होता अतः रिश्ता बनने से पहले ही टूट जाता | घर से भागने के चक्कर में बिट्टी को स्टेशन पर बरेली की बर्फी नामक एक घटिया किताब हाथ लगती है जिसे चिराग दूबे (आयुष्मान खुराना ) ने लिखा किन्तु किताब की घटियागिरि एवं मिलने वाली प्रतिक्रिया को सोचकर अपने लल्लू टाइप दोस्त प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव ) के नाम से छपवाया | बिट्टी को किताब के नकली लेखक प्रीतम विद्रोही से इसलिए प्यार जैसा कुछ हो जाता है क्योंकि बिट्टी को गलतफहमी हो जाती है कि प्रीतम विद्रोही ने किताब में जिस लड़की के बारे में लिखा है वो बिट्टी ही है जबकि चिराग ने उस किताब में अपनी भूतपूर्व प्रेमिका के मानसिक एवं चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख किया है | इधर बिट्टी के दिल की बात जब चिराग को पता चलती है तो स्वयं लेखक न स्वीकार करके प्रीतम विद्रोही से मिलवाने की बात करता है ,प्रीतम को केंद्र में रखकर दोनों में मिलना जुलना बढ़ता है और इस घटना में चिराग को बिट्टी से एकतरफा प्यार हो जाता है ,कहानी मुड़ती है प्रीतम विद्रोही चिराग द्वारा बिट्टी के जिंदगी में नाटकीय ढंग से लाया जाता है और फिर लवस्टोरी में चिराग बैकफुट पर आ जाता है | अंत तक जाते जाते फिल्म में बहुत कुछ वैसे ही होता है जैसा बहुत से रोमांटिक फिल्मों में हो चुका है अतः ज्यादा फिल्म देखने वाले आसानी से भाँप लेते हैं कि क्लीमेक्स में हीरोइन का दूल्हा कौन बनेगा |
पंकज त्रिपाठी जब जब स्क्रीन पर आते , सहज गुदगुदाते हैं | जोरदार एक्टिंग की है उन्होंने | राजकुमार राव ने दो तरह के किरदार निभाए हैं | लल्लू टाइप के किरदार में बेहतरीन एक्टिंग दिखा पर दबंग के रोल में उनका मेहनत ज्यादा रंग नहीं ला सका |आयुष्मान बेहतरीन एक्टर हैं ,फुटेज भी खूब मिला है ,काम भी बढ़िया रहा | अपने दोस्त के साथ बातचीत में उन्होंने भाषाई कलाकारी दिखाई है जो प्रभावित करता है | आयुष्मान के दोस्त,बिट्टी की सहेली रमा और बिट्टी के मम्मी के रोल में सीमा पाहवा ने भी छाप छोड़ी है | कृति सेनन ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर बताया कि अभी उन पर विश्वास किया जा सकता है |
फिल्म की कहानी में कुछ भटकाव भी है ,नाटकीयता अधिक है जो शायद नए मजनुओं को प्रभावित कर सकती है | कमजोरी की बात करें तो फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं है जिसे सुनने का मन करे ,कोई ऐसा लोकेशन नहीं है जो आपको लुभा सके,कलाकारों की साज सज्जा आधुनिक लडके लड़कियों को बड़े साधारण लगेंगे | सब कुछ साधारण लगभग ही है जो बहुत अच्छा है वो है कलाकरों की एक्टिंग और फिल्म की कहानी है | इसलिए आप इस पैसा वसूल फिल्म को एक बार देख कर अच्छा महसूस कर सकते हैं |
--विनोद पांडेय

Tuesday, August 15, 2017

टॉयलेट - एक प्रेम कथा



टॉयलेट ,मैंने भी देख ली | साफ-सुथरी है | थोड़ा बहुत कूड़ा- करकट तो मंदिरों के आस-पास भी पाया जाता है ,इसलिए टॉयलेट में अधिक सफाई की उम्मीद करना बेमानी होगा | आप देशभक्त हैं ,तो टॉयलेट देखने में मजा आएगा ,आप मोदी भक्त हैं तो टॉयलेट देखने का आनंद दोगुना हो जायेगा |यदि आप पुराने रूढ़िवादिता ,अन्धविश्वास से नफरत करते हैं तो टिकट का पैसा वसूल होता महसूस करेंगे ,कुछ सीन में आप गुदगुदी का अनुभव करेंगे ,कुछ में आपको गुस्सा आएगा | हाँ यदि आप लोटा से प्रेम करते हैं तो बहुत निराशा होगी क्योंकि लोटा बार बार खूब पटका गया है ,फिल्म में लोटे की भयंकर बेइज्जती की गयी है |

मुद्दे की बात करें तो सारांश यही है कि अगर आपके घर में टॉयलेट नहीं है और आपके बाबूजी पुराने सोच वाले जिद्दी इंसान है तो पढ़ी लिखी लड़की से शादी करने का विचार त्याग दीजिये वरना पापड़ बेलने के लिए तैयार रहिये | फिल्म आपको शिक्षा देती है ,ऐसी परिस्थिति में पहले बाबूजी को समझा कर घर में टॉयलेट बनवायें फिर शादी करें वरना यही काम बाद में करना पड़ेगा तो पसीने छूट जायेंगे जैसा अक्षय कुमार को इस फिल्म में छूट रहा था | अक्षय ऐसी ही एक गलती कर बैठते हैं ,उनकी पत्नी भूमि को बाहर टॉयलेट जाना पसंद नहीं है और अक्षय के बाबू जी घर में संडास बनवाने के लिए राजी नहीं हैं | यही मामला तूल पकड़ता है और कहानी आगे बढ़ती है | 

फिल्म की कहानी में थोड़ा बहुत लोचा है मगर चलता है क्योंकि बिना मसाले के अचार नहीं बनता है |एक पति का पूरा फोकस अपनी नवविवाहिता बीवी को टॉयलेट करवाने पर ही रहता है ,पूरा प्यार इसी टॉयलेट के इर्द-गिर्द घूमता है |इसमें खूब प्यार दिखाई देता है ,इसलिए एक प्रेमकथा टाइटल बना कर जोड़ दिया गया है | अक्षय कुमार बहुत हाथ पैर मारते हैं कि मामला सुलझ जाये लेकिन उनकी बीवी मोदी जी बहुत बड़ी भक्त निकलती हैं और जिसके लिए उन्हें आने वाले टाइम में कोई अवार्ड भी मिल जाए तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी| भूमि पेडनेकर ने बहुत बढ़िया एक्टिंग की है ,टॉयलेट न होने पर तलाक की बात करना मुझे इसलिए भी सही लगता है क्योंकि आजकल तो पढ़ी-लिखी लड़कियाँ बिना बात के तलाक ले लेती हैं ,यहाँ तो फिर भी कुछ पेंच वाली बात है |कहानी आगे बढ़ती है , ट्रैन में टॉयलेट के समय ट्रैन का नाटकीय ढंग से छूट जाना उनके जिद को और मजबूत कर देता है कि ससुराल में जब तक टॉयलेट नहीं बनेगा वो वहां नहीं जाएगी | अक्षय कुमार के पिताजी सुधीर पांडे ,पक्के पंडित और पुराने विचार वाले ठहरे सो उनकी भी अपनी जिद है कि बहु टॉयलेट बाहर ही जाएगी ,घर में नहीं बनेगा | अंत में तलाक की नौबत आ जाती है ,फिर ह्रदय परिवर्तन होता है | इसी बीच अक्षय कुमार की भागदौड़ से सरकार भी हिल जाती है मतलब कहानी में भ्रष्टाचार को भी जोड़ा जाता है और नोटबंदी का भी नाम लिया जाता है | भूमि के आंदोलन की चर्चा मीडिया में आती है ,गाँव की और भी औरतें लोटा छोड़कर इस आंदोलन से जुड़ती हैं ,मीडिया और तूल देता है ,लोटा पटका जाता है ,लोगों के घरों में भी विवाद होता है ,औरतें बाहर जाने से इंकार कर देती हैं और फिर सरकार हिल जाती है | अदालत में तलाक से ठीक पहले मुख्यमंत्री जी का लेटर भी आ जाता है और तलाक रुक जाता है ,पंडित जी का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है और घर में ही नित्यकर्म का सारा अरेंजमेंट करवा देते हैं | फिल्म टॉयलेट के साथ सेल्फी पर ख़त्म हो जाती है |

फिल्म में अक्षय कुमार और भूमि के साथ साथ अक्षय के भाई के रोल में दिव्येंदु ने बेहद शानदार अभिनय किया है ,अभिनय के मामले में सुधीर पाण्डे जब जब स्क्रीन पर दिखाई देते हैं ,कमाल ही करते हैं | ससुर और पिता के रोल में उनका किरदार डराने वाला रहता है पर अंत भला तो सब भला | अनुपम खेर को ज्यादा काम नहीं मिला है ,डाउट होता है कि शायद स्वच्छता मिशन के इस फिल्म का हिस्सा वो जान बूझकर होना चाहते थे | उनका किरदार ठूसा गया था ,लेकिन जितना भी रोल मिला उन्होंने हमेशा की तरह प्रभावित किया | बाकि फिल्म के डाइरेक्टर नारायण सिंह जी ने हर कलाकार से फ़ीस के बराबर ठीक-ठीक काम करा लिया |

वैसे तो अक्षय कुमार प्रोफेशनल अभिनेता है मगर इस फिल्म में उन्होंने सरकार की थोड़ी बहुत चापलूसी की है,जो साफ-साफ दिखाई पड़ता है |अक्षय कुमार और अनुपम खेर राष्ट्रवाद के ट्रैक पर सरकार के स्वच्छता मिशन के झंडे को लेकर दौड़ते हुए अच्छे लग रहे थे | गाँधी जी के चश्में से देखने पर मै इस फिल्म को पाँच में से साढ़े तीन नंबर देना पसंद करूँगा | अगर स्वच्छता अभियान वाला चश्मा आप भी पहन कर जाये तो मजा आएगा | वैसे एक बार यह फिल्म सभी को देखनी चाहिए ,खासकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में तो सरकार को यह फिल्म गाँव के लोटाप्रेमी पुरुष और महिलाओं को पकड़-पकड़ कर दिखवाने का भी कुछ प्रबंध करना चाहिए | अगर अक्षय कुमार और अनुपम खेर ने सरकार के मिशन को टॉयलेट के जरिये मजबूती देने का प्रयास किया है तो सरकार भी उनको मजबूती प्रदान करे |
--विनोद पांडेय

Saturday, July 29, 2017

टमाटर


खा रहें हैं जो टमाटर आजकल,दायरे में टैक्स के वो आएँगे
पी रहे हैं जो टमाटर जूस उनके, घर पे छापे जल्द मारे जायेंगे
जिस कवि को बस लिफाफा ही मिला,वो बहुत हल्का कवि कहलायेगा
जिस कवि पर खूब बरसेगा टमाटर, राष्ट्रीय कवि वो ही माना जायेगा





--विनोद पांडेय

Saturday, July 8, 2017

गुरु जी की जय --(विनोद कुमार पांडेय )

सभी गुरुओं को नमन करते हुए एक आधुनिक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ | पढियेगा और अपना आशीर्वाद दीजियेगा | 


हुए नदारद प्रेम समर्पण,बदलें गुरु शिष्य के नाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देख कर मर ही जाते 

अर्जुन कभी हुआ करते थे 
गुरु की बात सुना करते थे 
आज शिष्य भी बदल गए हैं 
गुरु से आगे निकल गए हैं 
इस नवयुग की बेला में ,
रेलम,ठेलम-ठेला में ,
भाग रहे सब इधर उधर,
कहाँ गुरु और शिष्य किधर,
कौन करे अंगुली का दान,
एकलव्य सा कौन महान,
आज गुरु की कॉलर पकड़े,शिष्य बहादुर हैं गरियाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देख कर मर ही जाते 

गुरुजी का भी  हाल अनोखा 
हींग फिटकरी बिन रंग चोखा 
धन से मालामाल हो रहे 
गुरु से गुरु घंटाल हो रहे  
कुछ तो केवल फर्ज निभाते 
बस विद्यालय आते जाते 
माना उनको ज्ञान बहुत है 
पर ट्यूशन पर ध्यान बहुत है 
कुछ मेहनत करके थक जाते 
लेकिन कुछ बस मौज उड़ाते 

और परीक्षा में बच्चों को नक़ल कराके पास कराते 
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

बदल रही है दुनिया सारी 
सिर्फ मची है मारा मारी 
शिष्य गुरु सब हुए आधुनिक 
और पढाई धिन -चिक,धिन-चिक  
शिक्षा,शिक्षक सब में झोल,
जैसे ढोल के अंदर पोल,
रुपये के अधिकार में हैं 
शिक्षा अब बाजार में है,
लोग लगाते दाम यहीं,
कुछ लोगों का काम यही,

विद्या अर्थ भूल करके वो ,विद्या से बस अर्थ कमाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

जैसा पहले हम सुनते थे 
सुन कर के मन में गुनते थे 
वैसे गुरु शिष्य अब कम है 
सोच-सोच कर आँखें नम है  
गुरु शिष्य का प्रेम,समर्पण,
ख़त्म हुआ अब वो आकर्षण,
परिवर्तन का चढ़ा असर 
शिष्य बनाया गुरु पर डर  
क्षीण हुए गुरु के अधिकार,
आख़िर हो कर गुरु लाचार,
रख कर के बंदूक जेब में,शिक्षक कक्षा में अब जाते ,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.

लालू यादव जी और घोटाला -- (विनोद कुमार पांडेय )



आज के ज़माने में दस बच्चों को पाल-पोष कर बड़ा करना ,इतना आसान नहीं है | रिस्क तो लेना ही पड़ता है  




Thursday, July 6, 2017

यूपी में नई सरकार -- (विनोद कुमार पांडेय )

उत्तर प्रदेश में जब सरकार बनी तो सभी को बहुत उम्मीद थी ,बहुत सारी उम्मीदों पर काम अच्छे से शुरू हुआ था पर पता नहीं क्यों आजकल स्पीड थोड़ी धीमी हो गयी है ,अपराध तो थमने का नाम नहीं ले रहा है और सारा सिस्टम सुस्त सा चल रहा है ,योगी जी काम करने में लगे हैं पर जमीनी स्तर पर कुछ दिख नहीं रहा है | हाँ प्रचार बहुत जोरदार चल रही है | ऐसी स्थिति में कवि निष्पक्ष होकर अपनी बात तो रखेगा ही ,मैंने भी कुछ लाइनें लिख डाली | आज आप सभी के नजर है |  हास्य - व्यंग्य की स्थिति है,पर असली बात जो कहना चाहता हूँ ,वो भी साफ-साफ है | शायद मेरी बात योगी जी तक पहुँच जाये और उत्तर प्रदेश के विकास में रफ़्तार दिखाई दे |   








Tuesday, July 4, 2017

राष्ट्रपति चुनाव में भी दांवपेंच की आजमाइश ---(विनोद कुमार पांडेय)

आज राष्ट्रपति चुनाव भी अखाड़ा हो गया है ,दांवपेंच की आजमाइश चरम पर है |जो रिंग के भीतर जाने वाला है ,वो इस खेल के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता और बाहर बैठे उस्ताद दाँव में माहिर हैं | इन बाहर वालों की ही कलाकारी है कि कुछ पारम्परिक लड़ाकू अखाड़े में उतरने से पहले ही चित्त हो गए या कर चित्त कर दिए गए | 

सब उस्ताद लोगों ने अपने-अपने समर्थित, पोषित एवं शोषित शीर्षस्थ लड़ाकू को अखाड़े में मिट्टी पोत कर उतार दिया है और वो स्वयं बाहर बैठ कर उम्मीदवार के सामाजिक गुणों की चर्चा करते हुए उसे परिणाम पूर्व ही विजेता घोषित करने पर तुले हैं | जिन्हें लड़ना है ,उनके चेहरे से उत्साह गायब है क्योंकि उनकी वास्तविक योग्यता को पीछे रखकर उन बातों पर जोर दिया जा रहा है जो सामाजिक अखंडता पर ठोकर मारता है | 

राजनीति ऐसी थी पर राष्ट्रपति चुनाव ऐसा नहीं हुआ था,कौन सा राजनैतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ है ? समझ से परे है | यह सिर्फ एक ईगो है वर्ना जो देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाला हो उसके चयन में मल्ल्युद्ध की क्या आवश्यकता है ? ,उसे तो निर्विवाद रूप से उस कुर्सी पर बैठना चाहिए क्योंकि वो भारत का प्रथम व्यक्ति है | वो सामाजिक कसौटी पर खरा उतरता तो हो पर जातीय और सम्र्पदाय से परे हो ,वह लोगों का आदर्श हो ,इस देश का आदर्श हो ताकि देश के इतिहास में उसका व्यक्तित्व सुरक्षित हो जाये और देश उसको कभी भूल न पाए | 


--विनोद पांडेय

Sunday, July 2, 2017

ट्यूबलाइट ---(विनोद कुमार पांडेय )

नाच मेरी जान होके मगन तू,छोड़ के सारे किन्तु परन्तु , आज जैसे ही ट्यूबलाइट का यह दार्शनिक गाना कान में पड़ा वैसे ही दिमाग के सारे तार झनझना गए ,झनझनाये इस बात पर कि जाने क्यों आजकल सब लोग नाचने-नचाने के पीछे बड़े जोर-शोर से पड़े हैं ,और इस गाने में तो गीतकार महोदय ने साफ-साफ़ इस बात की ओर इंगित किया कि आज के टाइम में नाचना ही मोक्ष का द्वार है ,समस्त चिंताओं का नाश है | मानो गाना न हो गया कोई गीता का सार हो | 

जमाना बदला,लोग बदले तो बात भी बदल गयी और बात कहने का तरीका भी | कभी एक जमाना था जब राजेश खन्ना जी बोले थे कि नाच मेरी बुलबुल तुझे पैसा मिलेगा ,और आज जब लोग पैसे के पीछे जमकर उछल कूद कर रहे हैं तब सलमान खान जी मुफ्त में नाचने की बात कर रहे हैं,वो भी बेशर्म होकर | ऐसा कह कर उन्होंने राजेश खन्ना जी का भी सारा गणित ख़राब कर दिया |कमर मटकाने की महिमा का वर्णन ऐसे किया जैसे जिंदगी में नाचना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य हो और इससे इतर बाकि कुछ माया मोह | 

खैर इस आधुनिक युग में कुछ भी जरा जोर लगा कर कह दो तो चल जाता है ,गाना हिट है ,लोग झूम नाच रहे हैं ,आगे और भी झूमने वाले लोग निकल-निकल कर आएंगे |कुछ दिनों पहले जो लोग भैस चराने गए थे इस बार वो भी नाचते हुए मिलेंगे | अद्भुत शक्ति होती है ऐसे गानों में | वैसे भी चटपटे गानों पर नींबू डाल कर बेच देने में सलमान खान को महारत हासिल है और आधा भारत उनकी इस नैसर्गिक प्रतिभा का भयंकर कायल है |

सभी ने देख ही लिया है कि बजरंगी भाईजान कैसे अखाड़े में दंड बैठकी मार कर सुल्तान बन गया था ,पर ट्यूबलाइट सुल्तान की जिंदगी में रोशनी नहीं कर पायी फिर भी वो लोग  किन्तु-परन्तु छोड़ कर नाच सकते हैं  ,जो  सलमान खान के भक्त हैं | 

--विनोद पांडेय

Friday, June 30, 2017

ओ बादल,क्या आना तेरा झलक दिखा कर चले गए --(विनोद कुमार पांडेय )

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

सालों गुजर गए एक वो समय हुआ करता था जब ब्लॉग से नजर नहीं हटती थी ,सुबह-शाम ब्लॉग लिखने और पढ़ने का जो भूत  सवार था वो फेसबुक के आने के बाद धीरे -धीरे कम होता गया,हमारे जैसे बहुत से लोग लिखते-पढ़ते रहे पर वो लय नहीं बन पायी |  परन्तु बेहद  खास बात रही कि ब्लॉग के दोस्त बिछुड़ने नहीं पाए और शायद इसी खास वजह से आज हम फिर संगठित होकर 

#हिन्दी  ब्लॉगिंग के लिए आगे आये हैं | सभी मित्रों का पुनः स्वागत है ,एक बार फिर से सब मिलकर साथ चले और हिन्दी ब्लॉगिंग को एक और नया मुकाम दें |  

आज इस नए कदम का स्वागत करते हुए ,एक कविता से ब्लॉगर्स डे को मानना चाहता हूँ ,बरसात हो रही है और नहीं भी हो रही है ,ऐसे मौसम में भाव उपजा है तो आप सभी के सम्मुख रह रहा हूँ | सभी ब्लॉगर्स मित्रों को अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स डे की बहुत बहुत बधाई  | 



ओ बादल,क्या आना तेरा झलक दिखा कर चले गए 
हम बैठे थे आस लगाए तुम तरसा कर चले गए 

तुमको देखा मन हरषाया 
प्यास दबी थी उसे जगाया 
सूखे सावन में तड़पा था 
जो दिल उसने शोर मचाया  
लेकिन तुम कुछ समझ न पाए आग लगा कर चले गए । हम बैठे थे ..... 

क्या है प्रेम समझ पाते तुम 
थोड़ी देर ठहर जाते तुम 
धरती भी हँस लेती थोड़ी 
काश जरा सा मुस्काते तुम 
पहले से उदास बैठी थी उसे रुला कर चले गए । हम बैठे थे .....  

बहुत खुश हुए थे किसान भी 
झुके हुए तन गए धान भी 
तुम्हें देखकर लगे झूमने 
बूढ़े ,बच्चें और जवान भी 
लगता था बरसोगे लेकिन बस भरमा कर चले गए । हम बैठे थे ..... 

कलियों ने खुशबू बिखरायी 
तुमको खुशबू रास न आयी 
बिजली रानी तड़प-तड़प के,
अपने दिल की व्यथा सुनाई,
शायद सब के सब प्यासे थे तुम तड़पा के चले गये । हम बैठे थे ..... 

नदियाँ खाली पड़ी हुई थी 
आँखे तुम्ही पर गड़ी हुई थी 
हाथ उठा कर तुमको पाने ,
सारी बस्ती खड़ी हुई थी 
तुमने फिर निराश कर डाला ख्वाब दिखा कर चले गए । हम बैठे थे ..... 

आ जाओ फिर इंतजार है 
तुमसे ही जग में बहार है 
अबकी थोड़ी देर ठहरना
प्यासी धरती बेकरार है 

नदी,फूल,हम सब प्यासे हैं तुम इठला कर चले गए । हम बैठे थे ..... 


--विनोद पांडेय 

Sunday, January 8, 2017

किसकी नैया पार लगेगी ,किसकी डूबेगी

नया साल वाकई बहुत धमाका लेकर आया । सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपने-अपने औकात के हिसाब से नये साल का स्वागत किया । पर सबसे जोरदार स्वागत समाजवादियों ने किया । नए साल के स्वागत में समाजवादियों ने दंगल का प्रोग्राम रखा जिसमें बाप ,बेटे और चाचा को बारी-बारी से लड़वाया गया ।मुकाबला जम कर हुआ ,दाँव पर दाँव दिखे पर चित्त कोई नहीं हुआ । झाड़-पोछ कर उठ खड़े हो जा रहे हैं और विजेता कौन कहलाये ,यह निर्णय करना बड़ा मुश्किल हो रहा है । मामला तो इतना बढ़ गया कि दंगल को प्रायोजित करने वाले एक अंकल जी भागने के मूड में आ गए ।लेकिन उनका मूड बार-बार बदल जाता है क्योंकि उनकी मज़बूरी है कहीं न कहीं,कुछ न कुछ प्रायोजित करते रहना । इसलिए सबसे हिट प्रोग्राम में शामिल होने का फायदा वो छोड़ना नहीं चाहते हैं ।वैसे भी उनको एक बार खदेड़ा गया था मगर बड़े पहलवान जी का ह्रदय परिवर्तन हो गया तो इनको बुला लिए । आज बड़े पहलवान जी को ही चुनौती मिल रही है । देखिये आगे क्या होता है ,पर जो भी होगा मजेदार होगा । अब बहुजन की बात करें तो बहन जी के दबाव में बहुजन ज्यादा हो हल्ला नहीं कर पर रहें हैं । बहन जी भी चुपचाप हो कर अपना काम कर रही हैं । मन करता है तो कभी-कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लेती हैं बाकि टाइम गंभीरता से चुनाव प्रचार में लगी हैं । सारे बड़े बहुजन गंभीर हैं ,हाथी जैसी गंभीरता चिह्नित हो रही है ,ये अलग बात है की पेट भारी है अतः उसको भरने के लिए कुछ न कुछ करना पड़ता है । उन्होंने भी किया तो बहुजन प्रिय लोगों ने खूब चंदा दिया जिस पर सीबीआई वाले भी गंभीर हो गए । अब ये सीबीआई वाले नहीं समझ पर रहे हैं कि हाथी के रखरखाव में पैसा तो लगता ही है । दूसरी बात बहन जी ने जीवन भर सिर्फ भाई बनाया,बाकि रिश्तों में कुछ विशेष उपलब्धि कर प्राप्त हो सकी । इस बार रक्षाबंधन के बाद से भाई लोग बहन को गिफ्ट देना शुरू किये तो आते-आते करोड़ों रुपये बैंक अकॉउंट में आ गए । अब विरोधियों की बुरी नजर से कौन बचाये ,यह सम्बन्ध है । विरोधी पार्टी नहीं बना पाए तो बहुजन के अकॉउंट को नजर लगा दिए और सीबीआई इस पवित्र रिश्ते में आये पवित्र धन की जाँच करने लगी और बहन जी को नये साल में बेवजह झटका लग गया । बहन जी के बाद जो सबसे बेहतरीन काम हो रहा है वो माँ-बेटे की पार्टी में हो रहा है ।बेटा आजकल बोलने की ट्रेनिंग ले रहा है और काफी हद तक सफल है ,नये साल बेटे के लिए उपलब्धि वाला हो ऐसा हम भी उम्मीद करते हैं । हमारे बड़े लोग कहते हैं बहुत से लोगों की किस्मत विवाह के बाद खुलती है । शायद इस बेटे के साथ भी ऐसा ही हो मगर माता जी का ध्यान नहीं जा रहा है । पूरा ध्यान पार्टी पर है ।पार्टी पर इतना ध्यान दिया गया कि देश ही नहीं बल्कि ढाई साल में कई राज्यों में पार्टी का बंटाधार हो गया । माता जी थोड़ा बेटे पर ध्यान दे दें तो शायद पार्टी का भी कल्याण हो जाये और बेटे का भी । नये साल में बेटे का कुछ पता नहीं चला कि कहाँ पर हैं ,मीडिया लगी है तो कुछ निकाल कर लाएगी । क्योंकि मिडिया भी अपना काम बहुत ध्यान से करती है और जिसके पीछे लग जाती है उसको शिखर पर पहुँचा देती है । बिना राष्ट्रवादी पार्टी की चर्चा के नये साल की चर्चा करना बेकार हो जायेगा । वैसे तो भाजपा के लोग एक जनवरी को नये साल का शुभारम्भ मानते ही नहीं फिर भी कुछ लोग शुभकामनायें देते हुए दिखे । प्रधानमंत्री जी ने नोटबंदी में परेशान लोगों के आँसू फिर पोछे । वो हर भाषण में यही करते हैं । कुछ लॉलीपॉप भी दिए,अगर जनता तक पहुँच जाये तो यह साल पब्लिक के लिए बेहतरीन हो सकता है । उत्तर प्रदेश में अन्य पार्टी के नेताओं को प्रोत्साहित कर भाजपा ने नये साल का स्वागत किया ,उसे पता है कि अपने कम बाकि पार्टी के लोग अगर चाह जाये तो कम से कम उत्तर प्रदेश में उनका हैप्पी न्यू ईयर शानदार हो जायेगा । यह सब सफल करने के लिए वो कीचड़ में प्रयास कर रहें हैं ,क्योंकि कमल भी कीचड़ में ही खिलता है ।हाथी से बहुत से लोगों को उतार कर उनके हाथ में कमल पकड़ा चुकी है और साइकिल पर भी नजर है । हाथ का पंजा तो वैसे ही आजकल ढीला है फिर भी भाजपा को कोई ढीलाढाला भी मिल जाये तो अपना लेती है । बहुत उदार है जिसे जनता के विकास से अधिक पार्टी का विकास पसंद है । इसलिए नये साल में नये-नये विकास को अपनाती जा रही है । बिहार के मुख्यमंत्री पर भी डोरे डाले जा रहे हैं ,कारण कुछ भी हो । बिहार में दो भाई बड़े प्रेम से सरकार चला रहे हैं ,प्रेम इतना की एक दूसरे की बुराई मुँह पर नहीं कर पाते हैं । दोनों भाइयों के बीच अगर दरार आती है तो भगवान भाजपा को कभी माफ़ नहीं करेंगे । ये बात अलग है कि भाजपा की वजह से ही एक दूसरे का गर्दन काटने वाले दोनों भाई आपस में गले मिले हैं । खैर राजनैतिक पार्टियों का यह नया साल कैसा होगा ,इसके बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी । उत्तर प्रदेश सहित बहुत से राज्य में चुनाव हैं ,परिणाम बताएगा कि यह किसका साल है ,किसके लिए काल है और कौन-कौन होने वाला बेहाल है ।

Thursday, January 5, 2017

साइकिल की घंटी किसको मिलेगी

साइकिल बहुत अच्छी चल रही थी । हाथी को टक्कर देने के मूड में थी ,दे भी देती मगर जो कुछ हुआ उससे साइकिल की आत्मा को बहुत ठेस पहुँच । हाथी से मुकाबला होने से पहले साइकिल के सारे सपने टूट गए और अब साइकिल भी टूटने के कगार पर है । जिन लोगों को साइकिल सबसे अधिक प्रिय था वहीं लोग उसके टुकड़े करने पर तुले है ।अभी तक तो मुलायम सिंह जी साइकिल की हैंडिल अपने हाथ में होने का दावा कर रहे हैं मगर रामगोपाल और अखिलेश पैडल पर पैडल मारे जा रहे हैं ।शिवपाल यादव टायर तो थे पर अब हवा कम होती जा रही है ।आजम खान चैन बनकर आये थे तो थोड़ी आगे बढ़ी थी । अब जाने क्या होगा अमर सिंह बार-बार ब्रेक बन जा रहे हैं ।साइकिल से ब्रेक हटाने का फैसला हो गया ताकि सरपट दौड़े पर हैंडिल जिसके हाथ में है उसके रास्ते अलग है और पैडल मारने वाले उसे दूसरे रास्ते पर के जाना चाहते हैं । समाजवादियों की प्रिय साइकिल टूटेगी तो सभी को दुःख होगा ,उसका सारा पार्ट महत्वपूर्ण समाजवादियों के हिस्से में आएगा । पार्टियाँ बनेगी और फिर चुनाव का नजारा कुछ अलग ही होगा । एक दो दिन में फैसला आ जायेगा पर मैं तो इसी सोच में डूबा हूँ कि अगर साइकिल टूट गयी तो तो घंटी किसके हिस्से में आएगी  

Tuesday, January 3, 2017

पतझड़ से सीख

सरला नारायण ट्रस्ट द्वारा दिसंबर माह की चुनी गयी प्रशंसनीय रचना | 



पतझड़ का आभाष न होगा ।
रे मन फिर मधुमास न होगा । ।

पतझड़ जीवन का दर्शन है
एकाकीपन की अनुकृति है
पहले खो कर फिर पाता है
पतझड़ से पोषित प्रकृति है

खोने का यदि मर्म न जाना
तो पाकर उल्लास न होगा ।रे मन फिर.......

पत्ते पेड़ों से झर-झर कर
सृष्टि चक्र को गति देते हैं
नए फूल फिर से आकर के
पेड़ों का दुःख हर लेते हैं

क्रंदन का अनुभव न लिया तो
हँसने का अभ्यास न होगा ।रे मन फिर.......

प्रेम कठिन है, सर्व विदित है
किन्तु चाह सबकी रहती है
आँसू,विरह,वेदना,पीड़ा
स्नेहिल ह्रदय वास करती है

यदि ये सब दुःख नहीं मिले तो
प्रेम हुआ, विश्वास न होगा ।रे मन फिर.......

जीवन का भी ढल जाना है
पतझड़ हमें बताता है यह
नवनिर्माण नये जीवन का
कला हमें समझाता यह

सीखोगे पतझड़ से जीना
तो मन कभी उदास न होगा  ।रे मन फिर.......



-----विनोद पांडेय