Monday, December 27, 2010

नए वर्ष की हार्दिक शुभकामना----(विनोद कुमार पांडेय)

आप सभी लोगों से मिलें प्यार और आशीर्वाद का आभारी हूँ| इस वर्ष काफ़ी कुछ नया भी सीखने को मिला |आप सब लोगों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए ईश्वर से यहीं प्रार्थना करता हूँ की आने वाला वर्ष आप सब लोगों के लिए सुखमय हो|नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ|

नया साल है आने वाला, आओ मिलकर खुशी मनाएँ|
गीत प्रीत के तुम भी गाओ,गीत प्रीत के हम भी गाएँ||


चेहरे पर उत्साह नया हो, नये रंग में तुम इतराओ,
नई सुबह हो,नयी शाम हो,नये स्वप्न से नैन सजाओ,
नई उमंगे,नया हर्ष हो,जोश नया हो तन-मन में,
नये भाव का सृजन करो तुम,हृदय सरीखे उपवन में,

प्रेम के दीए जलाएँ दिल में,नफ़रत दिल से दूर हटाएँ|
गीत प्रीत के तुम भी गाओ,गीत प्रीत के हम भी गाएँ||

दिन आता है,दिन जाता है,जग की रीत पुरानी है,
रह जाती है बस यादें बाकी सब आनी जानी है,
दिवस,महीना,साल बीतता,नया वर्ष फिर आता है,
दिन का एक एक अनुभव हर बार हमें समझाता है,

धीरज रख कर अंतर्मन में,मेहनत करें,सफलता पाएँ|
गीत प्रीत के तुम भी गाओ,गीत प्रीत के हम भी गाएँ||

जीवन एक एक पल से बनता,हर पल में जीना सीखो,
अमृत,विष सब कुछ मिलते है,हँस कर के पीना सीखो
कोई सुखी है,कोई दुखी है,जीवन का अभिसार यहीं,
सब ईश्वर की मर्ज़ी इस पर,अपना कुछ अधिकार नहीं,

जिन्हे रुलाया है जीवन नें,चलो उन्हे हँसना सिखलाएँ|
गीत प्रीत के तुम भी गाओ,गीत प्रीत के हम भी गाएँ||

Thursday, December 23, 2010

आम पब्लिक और प्याज---(विनोद कुमार पांडेय)

आज की मौजूदा हालात में मँहगाई ने आम आदमी के नाक में दम कर के रख दिया है|इसी मँहगाई का एक और रूप आज कल दिखने को मिल रहा है| उसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है एक व्यंग्य जो आज के हरिभूमि समाचार पत्र के दिल्ली संस्करण में भी प्रकाशित हुआ है धन्यवाद!


कांग्रेस की सरकार में आम आदमी की कीमत भले ही दो कौड़ी की हो गई हो पर बाकी सभी वस्तुओं की कीमत आसमान छूती नज़र आ रही है|बात मुद्दे की तब हो गई जब खाने पीने का सामान भी सोने-चाँदी के भाव बिकने लगा अब प्याज को ही लीजिए,आज-कल प्याज के बढ़ते भाव ने अच्छे-अच्छों को रुला कर रख दिया है|वैसे तो प्रायः प्याज छिलते समय आदमी के आँखो से आँसू आते है पर अब तो देख कर ही आँसू आ जाते है|


पिछले कई दिनों से सब्जियों के दाम वन-डे क्रिकेट में भारत की रेटिंग की तरह घट-बढ़ रहे है| पर प्याज के दाम तो अचानक से ही धोनी के अनुबन्ध के रेट की तरह दुगुने हो गये भारत सरकार चुपचाप बी. सी. सी. आई. की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठी है और देश के ठेकेदार ललित मोदी की तरह सब्जियों के बढ़ते दामों का फ़ायदा उठाकर जनता को लूट रहे है|अगर कुछ और चीज़ होती तो चलो ठीक था यह तो सीधे-सीधे पेट पर लात मारने वाली बात हुई |

लगभग हर सब्जियों में फिट हो जाने वाला प्याज आज तन कर बैठा है और बाकी सभी सब्जियों को मुँह चिढ़ा रहा है यह सिर्फ़ सरकार की मेहरबानी का नतीजा है|सरकार इस मामले में पहले ही साफ कह दी कि दाम तो अभी १ महीने तक ऐसे ही बढ़ेगा तो जब उनके तरफ से भविष्यवाणी पहले ही हो गई फिर उनसे कुछ उम्मीद रखना बेकार है वैसे भी पब्लिक में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो सरकार से किसी प्रकार की उम्मीद रखते है|ऐसी स्थिति में भारत की जनता से एक ही अनुरोध है कि कृपया धैर्य बनाए रखें जब तक हालात काबू में नही आ जाते और प्याज की दाम में गिरावट नही आ जाती विशेष रूप से वो सज्जनगण जिन्हें प्याज से प्रेम है अर्थात प्याज खाने के कुछ ज़्यादा ही शौकीन है|इसके दो फ़ायदे है एक तो मँहगाई की मार से बच जाएँगे दूसरे अगर चाहे तो घर में रखे प्याज को बाजार में निकाल कर दो-चार सौ रुपये की कमाई कर सकते है |बस थोड़े दिन मन को मनाना होगा वैसे भी बिजनेस करके पैसा कमाना कोई आसान काम नही है और वो भी ऐसी विषम परिस्थितियों में|


प्याज की बढ़ती हुई दाम पर जनता की प्रतिक्रिया भी कुछ अलग ही तरीके से होनी चाहिए हर बार मँहगाई के नाम पर रोने-चिल्लाने से अभी तक क्या मिल गया सरकार को तो सुनाई देता नही फिर भैस के आगे मुरली बजाना कोई फ़ायदे की बात नही लगती|सरकार की कृपा से प्याज भी आज-कल अपने जीवन के सर्वोत्तम दौर से गुजर रहा है अगर सब्जियों पर ऐसी ही कृपा दृष्टि बनी रही तो निश्चित रूप से सब्जियाँ फलों से कई गुना आगे निकल जाएगी|इस बात का एहसास फलों को भी है और अगर ऐसा हुआ तो फलों के ऐसे श्राप लगेंगे कि अगले चुनाव के फल भी मंत्री जी की टोकरी से बाहर ही होंगे|

Monday, December 20, 2010

क्या तेरा क्या मेरा साथी----(विनोद कुमार पांडेय)

एक छोटे से अंतराल के बाद आज फिर एक छोटी बहर की छोटी ग़ज़ल पेश करता हूँ....उम्मीद करता हूँ आप सब को पसंद आएगी..धन्यवाद


जग सुख-दुख का डेरा साथी
सब मायावी घेरा साथी

रैन,सपन दो पल की खुशियाँ
आँख खुली अंधेरा साथी

रात घनी जितनी भी हो पर
उसके बाद सवेरा साथी

मिट जाना है एक दिन सब कुछ
किसका कहाँ बसेरा साथी

आस तभी तक जब तक साँसे
क्या तेरा क्या मेरा साथी

Sunday, December 5, 2010

महानगर की चकाचौंध---(विनोद कुमार पांडेय)

पिछले कुछ दिनों से लगातार ग़ज़लों की प्रस्तुति के बाद आज एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ..रचना की पृष्ठभूमि मेरी पसंदीदा हास्य-व्यंग्य ही है..उम्मीद करता हूँ. एक लंबे अंतराल के बाद मेरा यह प्रयोग आप सब का मनोरंजन करने में सफल रहेगा..धन्यवाद!

धक्का-मुक्की,हल्ला-गुल्ला,लोग-लोग पर टूटे हैं||
महानगर की चकाचौंध को,देख पसीने छूटे हैं||

आसमान की नाक पकड़ती मंज़िल बड़ी-बड़ी देखी,
गीत सुनाती लिफ्ट भी देखी,सीढ़ी खड़ी-खड़ी देखी,
सिगरेटों के धुएँ उड़ाते पुरुषों की भी लड़ी देखी,
बीयर-बार में बालाओं को टल्ली हुई पड़ी देखी,

उनके माँ-बाबूजी से तो भाग्य-विधाता रूठे हैं||महा.

मस्त चमाचम सड़कें चमकें तनिक नही भी धूल दिखे,
पंचसितारा होटल जैसे बच्चों के स्कूल दिखे,
गंदे नाले ऐसे दिखते जैसे स्वीमिंग पूल दिखे,
लंबी-चौड़ी जाम दिखे पर बढ़िया ट्रैफिक रूल दिखे,

चौराहे पर हवलदार भी बढ़िया रुपया लूटे हैं||महा.

शॉपिंग-मॉल के अंदर झाँके देख नज़ारा खीस लगे,
४४ के हुए चचा पर देखो तो २४ लगे,
हरियाली की दशा देख कर मन में थोड़ा टीस लगे,
ग़लती से भी थूक दिए तो उसके भी कुछ फीस लगे

समतल राहों में भी देखा जगह-जगह पर खूटे हैं||महा.

कपड़े,खाने और खिलौनों से दुकान सब भरे मिले,
लड़के और लड़कियाँ दोनों वस्त्र मोह से परे मिले,
भूखे और ग़रीब शहर में सहमें एवं डरे मिले,
लोग सजे-सँवरे दिखते हैं बूढ़े भी छरहरे मिले,

चमकीलें कुर्तों के उपर रंग-बिरंगे बूटे हैं||महा.

दिन को साथ लपेटे घूमें ऐसी काली रात दिखी,
चालीस साल का दूल्हा लेकर स्पेशल बारात दिखी,
स्पेशल बाइक-कारें और स्पेशल औकात दिखी,
छोटी-छोटी बातों पर भी भारी जूता-लात दिखी,

नया दौर का नाटक देखा सोचा लगा अनूठे हैं||

महानगर की चकाचौंध को,देख पसीने छूटे हैं||