Sunday, May 15, 2011

गीत लिखना छोड़ दूँ---विनोद कुमार पांडेय

मित्रों,जीवन में कुछ ऐसी बातें भी हो जाती है जो मन को अच्छी नही लगतीकुछ दिन पहले मेरे साथ भी ऐसी ही एक घटना घटी और प्रतिक्रिया स्वरूप एक नई ग़ज़ल बन गई..ज़्यादा नही कहूँगा आप लोग खुद समझ जाएँगे..भाव अच्छे लगे तो आशीर्वाद दीजिएगा


गीत गाना छोड़ दूँ, ग़म को भुलाना छोड़ दूँ

मुस्कुराना छोड़ दूँ, हँसना-हँसाना छोड़ दूँ

हादसों के ख़ौफ़ से कुछ लोग घबराने लगे
क्या इसी डर से क़दम आगे बढ़ाना छोड़ दूँ

भीड़ आँखें मूँद भागी जा रही, तो साथियो
मैं किसी की राह में पलकें बिछाना छोड़ दूँ

रेत है चारों तरफ़, सूखे कुँए तालाब, तो
क्या इसी डर से नई फ़सलें उगाना छोड़ दूँ

एक भी आँसू तुम्हारी आँख में है जब तलक
क्यों तुम्हारे दर्द को अपना बनाना छोड़ दूँ

सोचता है जो अकेला रह गया, मैं क्या करूँ
मैं उसे तनहा समझ अपना बनाना छोड़ दूँ

Sunday, May 8, 2011

आँचल की छाया----(विनोद कुमार पांडेय)

आज बस एक गीत देना चाहता हूँ|माँ को प्रणाम है

तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,

याद नही पर सब कहते हैं,
जब घुटनों पर चलता था,
पथरीले आँगन में अक्सर,
गिरता और संभलता था,

चोट मुझे जब-जब लगती थी,
दर्द तुम्हे भी होती थी,
हर एक ठोकर पर मेरे,
तुम भी तो साथ में रोती थी,

सोच रहा हूँ आज बैठ कर अब तक कितनी दूर चला,
मेरे हर एक पग पे मैया, तेरा ही उपकार दिखे,


मैने बस महसूस किया,
तुम हर वो बातें जान गई,
मेरे अंदर छिपी भावना को,
झटपट पहचान गई,

कष्ट न जानें कितने झेलें,
मगर हमें इंसान बनाया,
खुद भूखे-प्यासे रह कर के,
हमको अमृत कलश पिलाया,

पहली कौर खिलायी तूने भले नही हो याद मुझे,
पर उस पहली कौर के आगे,फीका हर आहार दिखे,


मेरे हर अपराध की माता,
सज़ा तुम्हे भी मिलती थी,
दुनिया की कड़वी बातें,
पग-पग पर तुमको खलती थी,

फिर भी तुमने हँसते-हँसते,
हमको इतना बड़ा किया,
ज़िम्मेदारी हमें सीखा कर,
के पैरों पर खड़ा किया,

रक्षंबंधन,ईद,दशहरा,होली और दीवाली सब है,
आशीर्वाद नही जब तेरा,सुना हर त्योहार दिखे,


सारे रिश्ते-नाते देखे,
तुझ जैसी ना कहीं दिखे,
तेरी ममता सब पर भारी,
जिधर देखता वहीं दिखे,

अब तक जो कुछ,भी पाया हूँ,
सब कुछ आशीर्वाद तुम्हारे,
याद मुझे हैं तेरी वाणी,
सद्दविचार संवाद तुम्हारे,

जितना भी अब तक पाया हूँ,तुच्छ है सब कुछ माँ के आगे,
चुटकी जैसा यह भौतिक सुख, भारी माँ का प्यार दिखे.

तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,