चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Saturday, September 17, 2011
देते है सिरदर्द वहीं जो,बनते झंडू बाम है----(विनोद कुमार पांडेय)
दर्शन उतने ही छोटे हैं,जितने उँचे नाम हैं|
देते है सिरदर्द वहीं जो, बनते झंडू बाम है||
गंगाजल सा वो पवित्र है,जिसका कोई चरित्र नही
अधनंगे है चित्र टँगे, फिर भी कुछ कहीं विचित्र नही
है दुर्गंध लोभ-लालच की, अपनेपन की इत्र नही
भले सुदामा मिल जाए पर, कृष्ण के जैसे मित्र नही
लुच्चो की है मौज यहाँ,अच्छों की नींद हराम है|
देते है सिरदर्द वहीं जो बनते झंडू बाम है||
जितने मुँह उतनी बोली है, बिना रंग की रंगोली है
द्विअर्थी संवादों में बस सिमटी,हँसी ठिठोली है
बाँट रहे है ज्ञान मूर्ख, और विद्वानों की झोली है
जनता जिनका तिलक कर रही,वो चोरों की टोली है
उनके उतने ही उँचे कद,जो जितना बदनाम है|
देते है सिरदर्द वहीं जो, बनते झंडू बाम है||
जल्दी में है सारी जमघट,सब कुछ यहाँ फटाफट है
अमन-शांति कहीं-कहीं है,नेकी,दया सफाचट है
वहीं समर्पण है सब जन का,जिधर माल की आहट है
प्यार,मोहब्बत,रिश्ते,नाते सब में यहाँ मिलावट है
बीस ग्राम है शुद्ध-शुद्ध और घपला अस्सी ग्राम है|
देते है सिरदर्द वहीं जो बनते झंडू बाम है||
Monday, August 22, 2011
अन्ना जी और देश की सरकार----(विनोद कुमार पांडेय)
भ्रष्ट नेताओं के चेहरे की चमक गायब हुई,
पड़ गई है देश की सरकार पेशोपेश में |
देख कर के देश के परिवेश को यूँ लग रहा,
कुछ नया बदलाव हो कर ही रहेगा देश में ||
जिस पे हमने की भरोसा,वो ही धोखेबाज थे
कीमतें बढ़ती रही जब-जब भी उनके राज थे
आम जनता को बनाया है गया उल्लू सदा
बोलकर कुछ शब्द मीठे छल भरे संदेश में || देख कर के.....
मिल गई चोरो को कुर्सी और जनता त्रस्त है
कुछ गये पकड़े मगर,कुछ अब भी बाहर मस्त है
कानिमोझी और राजा ने उड़ाए माल अरबों
खाक होगी कुछ तरक्की,इस बुरे परिवेश में || देख कर के.....
दैत्य भ्रष्टाचार का कुछ इस तरह पीछे पड़ा
लूटते खाते रहें सब जिसके जो हत्थे पड़ा
तब करप्सन को मिटाने का लिए संकल्प मन में
आ गये बापू दोबारा अन्ना जी के वेश में || देख कर के.....
टीम अन्ना नें उड़ा दी नींद इस सरकार की
सोनिया,राहुल हुए फुर्र, फँस गये सरदार जी
कपिल सिब्बल हैं लगे अपने सियासी दाँव में
दिग्विजय पगला के कुछ भी बक रहें आवेश में || देख कर के.....
Friday, August 19, 2011
४ मुक्तक----(विनोद कुमार पांडेय)
दोष अपना दूसरों पर मढ़ने की कला
बन चुकी है आज आगे बढ़ने की कला,
बन नही पाओगे उल्लू,तुम कभी
है पता गर आदमी को, गढ़ने की कला
जमाने के ढंग को समझने लगे हम
दिखावा है ज़्यादा,हक़ीकत बहुत कम,
और अपनों को चूना लगाने में भी अब
नही आती है आदमी को शरम
मानता हूँ बड़े आदमी हो गये,झोपड़ी थी कभी,जो महल हो गई
बीज बंजर पे बोया था जो आपने,उस जगह पे भी अच्छी फसल हो गई
पर न इतराना इस पर कभी दोस्त तुम,काम इससे बड़ा भी है संसार में
बन सको मुस्कुराहट अगर तुम किसी का,तब समझना की जीवन सफल हो गई
इस कदर हालात से मजबूर हो गये
नज़दीकियाँ कायम रही पर दूर हो गये
इंसानियत की बातें जिस दिन से बंद की
उस दिन से वो जहाँ में मशहूर हो गये
Wednesday, June 22, 2011
गर्मियों की ये दुपहरी---(विनोद कुमार पांडेय)
आ गई है ग्रीष्म ऋतु तपने लगी फिर से है धरती
और सन्नाटें में डूबी, गर्मियों की ये दुपहरी
आग धरती पर उबलने,को हुआ तैयार सूरज
गर्म मौसम ने सुनाई, जिंदगी की जब कहानी
चाँद भी छिपने लगा है,देर तक आकाश में
रात की छोटी उमर से, है उदासी रातरानी
नहर-नदियों ने बुझाई प्यास खुद के नीर से जब
नभचरों के नैन में दिखने लगी है बेबसी सी
तन पसीने से लबालब,हैं मगर मजबूर सारे,
पेट की है बात साहिब कर रहे जो नौकरी जी
देश की हालत सुधर पाएगी कैसे सोचते हैं.
ये भी है तरकीब अच्छी, गर्मियों को झेलने की
Sunday, May 15, 2011
गीत लिखना छोड़ दूँ---विनोद कुमार पांडेय
Sunday, May 8, 2011
आँचल की छाया----(विनोद कुमार पांडेय)
याद नही पर सब कहते हैं,
जब घुटनों पर चलता था,
पथरीले आँगन में अक्सर,
गिरता और संभलता था,
चोट मुझे जब-जब लगती थी,
दर्द तुम्हे भी होती थी,
हर एक ठोकर पर मेरे,
तुम भी तो साथ में रोती थी,
सोच रहा हूँ आज बैठ कर अब तक कितनी दूर चला,
मेरे हर एक पग पे मैया, तेरा ही उपकार दिखे,
मैने बस महसूस किया,
तुम हर वो बातें जान गई,
मेरे अंदर छिपी भावना को,
झटपट पहचान गई,
कष्ट न जानें कितने झेलें,
मगर हमें इंसान बनाया,
खुद भूखे-प्यासे रह कर के,
हमको अमृत कलश पिलाया,
पहली कौर खिलायी तूने भले नही हो याद मुझे,
पर उस पहली कौर के आगे,फीका हर आहार दिखे,
मेरे हर अपराध की माता,
सज़ा तुम्हे भी मिलती थी,
दुनिया की कड़वी बातें,
पग-पग पर तुमको खलती थी,
फिर भी तुमने हँसते-हँसते,
हमको इतना बड़ा किया,
ज़िम्मेदारी हमें सीखा कर,
के पैरों पर खड़ा किया,
रक्षंबंधन,ईद,दशहरा,होली और दीवाली सब है,
आशीर्वाद नही जब तेरा,सुना हर त्योहार दिखे,
सारे रिश्ते-नाते देखे,
तुझ जैसी ना कहीं दिखे,
तेरी ममता सब पर भारी,
जिधर देखता वहीं दिखे,
अब तक जो कुछ,भी पाया हूँ,
सब कुछ आशीर्वाद तुम्हारे,
याद मुझे हैं तेरी वाणी,
सद्दविचार संवाद तुम्हारे,
जितना भी अब तक पाया हूँ,तुच्छ है सब कुछ माँ के आगे,
चुटकी जैसा यह भौतिक सुख, भारी माँ का प्यार दिखे.
तेरी आँचल की छाया में,मुझको तो संसार दिखे,
Saturday, April 30, 2011
दिल की बात बताती आँखे---विनोद कुमार पांडेय
दिल की बात बताती आँखें
आँखों को समझाती आँखें
नफ़रत,प्रीत व दर्द खुशी सब
बिन बोले कह जाती आँखें
अंधेरो से घिरे भवन में
जैसे दीया-बाती आँखें
छोटी जलपरियों के जैसे
इधर उधर मंडराती आँखें
है नन्ही सी लेकिन सारे
जग की सैर कराती आँखें
प्यार लुटाती है अपनों पर
बदले आँसू पाती आँखें
ऐसा दौर चला है जिसमें
पल-पल धोखा खाती आँखें
बूढ़े बाबा हँस कर बोले,
शाम ढली,ढल जाती आँखें
Saturday, April 2, 2011
जीत लिए हम विश्वकप--(विनोद कुमार पांडेय)
आप सभी को विश्वकप जीतने की बहुत बहुत बधाई..भारत की जीत के जश्न में मैनें भी कुछ शब्द जोड़ें है..कुण्डलिनी छ्न्द में मेरा पहला प्रयोग है..आपसे हौसला आफजाई की उम्मीद है..धन्यवाद
धोनी व गंभीर ने ऐसा किया कमाल,
मुरली की सब तान गई,हुए मलिंगा लाल,
हुए मलिंगा लाल, लगाया जब धोनी ने चौका,
जीत नही पाई श्रीलंका,गया हाथ से मौका,
श्रीलंकाई टीम की सूरत हो गई रोनी,
बड़े जोश से आगे बढ़ जब,छक्का मारे धोनी.
लाएँ हम फिर विश्वकप,स्वप्न हुए साकार,
जीते हम एक शान से, गई श्रीलंका हार,
गई श्रीलंका हार हुए संगकारा बहुत उदास
धोनी व गंभीर की नें रच डाली इतिहास
मुरली,महेला और मलिंगा भी ना कुछ कर पाएँ
और सचिन के लिए विश्व कप हम भारत में लाएँ..
Monday, March 28, 2011
कुछ मुक्तक २----(विनोद कुमार पांडेय)
Monday, March 7, 2011
कुछ मुक्तक १---(विनोद कुमार पांडेय)
Saturday, February 19, 2011
फिर आया बसंत का मौसम-----(विनोद कुमार पांडेय)
फिर आया बसंत का मौसम, फिर छाया बसंत का मौसम
पतझड़ में नगमें बहार के, फिर गाया बसंत का मौसम
चला बाँटने प्यार की खुश्बू अपने साथ बहार लिए
पुरवा हवा के मंद गति में, मृदुल कोई झनकार लिए
फूलों से,कलियों से यारी,काँटों को भी स्नेह दिया
तन में, मन में और ह्रदय में प्यार भरा उपहार लिए
जीवन प्रीत बिना सूनी है,समझाया बसंत का मौसम
पतझड़ में नगमें बहार के, फिर गाया बसंत का मौसम
पेड़ों से विछोह पत्तों का,नये कोपलों को फिर लाना
मिलन और बिरहा की बातें,बातों-बातों में बतलाना
जवाँ उम्र पर जादू करना इस मौसम की चाल पुरानी
कलियों को इठलाने का गुर,भौरों को अंदाज सीखाना
पहले जैसी कोई कहानी फिर लाया बसंत का मौसम
पतझड़ में नगमें बहार के फिर गाया बसंत का मौसम
इस बसंत में यहीं दुआ है लोग सभी खुशहाल मिलें,
कोई नही भूखा सोये, कम से कम रोटी दाल मिलें
हरियाली चहूँ ओर मिलें, हर प्राणी प्रगतिशील रहे
अमन-चैन जग में फैले,सब अपराधी बेहाल मिलें
गीतों की महफ़िल देखी तो मुस्काया बसंत का मौसम
पतझड़ में नगमें बहार के, फिर गाया बसंत का मौसम
Monday, January 24, 2011
बदनाम हो ना मुन्नी कोई,ना कोई ज़्यादा ही दबंग हो-----(विनोद कुमार पांडेय)
नए साल में,नए गुल खिलें,नइ हो महक,नया रंग हो
मन में नया उत्साह हो,नइ हसरतों के पतंग हो
भोजन मिले भूखे है जो,फुटपाथियों को छत मिले
आपस में हो सौहार्दयता,निर्धन धनी एक संग हो
हँस कर जियें सब बेटियों, माँ-बाप भी खुशहाल हो
ना दहेज की कोई माँग हो, ना ससुराल में कोई तंग हो
भय दूर हो सब हो सुखी, राहत मिले सब लोग को
बदनाम हो ना मुन्नी कोई,ना कोई ज़्यादा ही दबंग हो
कोई नया मोदी न हो,और ना कोई कलमाड़ी हो
घोटालेबाजी दूर हो,सरकार के सही ढंग हो
सब मान लें इस ध्येय को, भगवान सारे एक है
हिंदू-मुसलमाँ एक हो, ना धर्म के लिए जंग हो
चारो तरफ बस हो खुशी,मुस्कान हो हर अधर पर
विकसित हो अपना देश यूँ, बैराक ओबामा दंग हो
Friday, January 21, 2011
क्रिकेट खिलाड़ी और उनका फॉर्म----(विनोद कुमार पांडेय)
क्रिकेट के माहौल में कुछ क्रिकेट की बात ना हो ना मज़ा नही आता|आज इसी सन्दर्भ में एक हास्य व्यंग्य प्रस्तुत कर रहा हूँ|धन्यवाद|
क्रिकेट के जन्म के साथ से ही एक और बढ़िया शब्द चला आ रहा है और वो है फॉर्म|जी हाँ खिलाड़ी का फॉर्म में होना और न होना भी एक चर्चा का विषय होता है|जब जब किसी मैच की चर्चा होती है चयन समिति बस इसी विषयवस्तु पर नज़र रखने के लिए बनी होती है कि कौन सा खिलाड़ी फॉर्म में है और कौन आउट ऑफ फॉर्म चल रहा है|
अब यह फॉर्म भी बड़ी अजीब चीज़ है|अगर क्रिकेट नही होता तो कोई फॉर्म का मतलब भी ठीक से नही समझ पाता|मुझे तो आज तक फॉर्म का आना-जाना समझ में नही आया कि यह कब आता है और कब चला जाता है|जैसे किसी खिलाड़ी का फॉर्म नही जापान में भूकंप के झटके हो या भारत के गाँव की बिजली|मतलब कभी भी आती है और कभी भी चली जाती है|फॉर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि फॉर्म किसी को भी हीरो बना सकता है और किसी को भी ज़ीरो|स्थिति ऐसी भी हो जाती है कि जब फॉर्म में रहते है तो आशीष नेहरा के गेंदों में भी धार हो जाती हैऔर आउट ऑफ फॉर्म होने पर सौरव गांगुली जैसे खिलाड़ी की भी वैल्यू ज़ीरो हो जाती है|
इससे भी इनकार नही किया जा सकता कि आई. पी. एल.-४ के लिए खरीदे गये खिलाड़ी भी फॉर्म के वजह से काफ़ी उँचे दाम पर बिके और जो नही बिके उनके पीछे भी उनका फॉर्म ही मुख्य कारण रहा|जिस वजह से जयसूर्या और लारा जैसे दिग्गजों को भी कोई खरीददार नही मिला|
फॉर्म के महिमा का जितना गुणगान गाया जाय कम है|अगर फॉर्म कोई ईश्वरीय स्वरूप होता तो सारे क्रिकेटर फॉर्म की रोज पूजा करते,अगरबत्ती जलाते और मन्नते भी करते कि हे फॉर्म देवता बस मेरे साथ रहना| और अगर फॉर्म कोई सरकारी अफ़सर होता तो इसी आने-जाने के मामले में घूस लेकर अरबपति हो जाता|मतलब आने के रेट भी तय हो जाते और यह भी तय हो जाता कि किस खिलाड़ी के साथ कितने मैच तक बने रहना है| पर शुक्र है फॉर्म ऐसा कुछ नही है बस एक स्थिति है जिसमें खिलाड़ी बढ़िया प्रदर्शन करता है|फॉर्म का महत्व बस खिलाड़ियों तक ही सीमित नही है बल्कि लोग भी अपने पसंदीदा क्रिकेटर के फॉर्म को लेकर उत्सुक रहते है| साथ ही साथ फॉर्म सट्टेबाज़ों के लिए भी बहुत महत्व रखता है|बल्कि यूँ कहे उनका धंधा ही खिलाड़ी के फॉर्म पे टिका रहता है|अब कोई पैसों के चक्कर में आकर जान-बूझ कर अपना फॉर्म खराब कर लें तो ये अलग बात है|
कुल मिला जुला कर हम यह कह सकते है कि क्रिकेट के शब्दावली में फॉर्म बहुत बड़ा नाम है|और इसे बनाए रखना एक खिलाड़ी के लिए बहुत बड़ा काम है वरना खिलाड़ी बस नाम का ही रह जाता है|
Monday, January 17, 2011
वाह रे मौसम----(विनोद कुमार पांडेय)
खैर हम मौसम की बात कर रहे थे तो असल बात यह है कि मौसम कुछ ग़लत नही कर रहा है बल्कि हम ही उसे समझ नही पा रहे हैं |अब ठंड के मौसम में ठंड नही पड़ेगा तो क्या लू चलेगा?और अगर गर्मी में ओले पड़ जाए तो वो भी किसी को हजम नही होगा और पूरे दिन गाते फिरेंगे कि कैसा युग आ गया है भगवान,गर्मी में भी ओले पड़ रहे है |
दरअसल आदमी का स्वभाव ही ऐसा हो गया है| संतृष्टि मिलती ही नही पब्लिक की गणित कुछ ऐसे चलती है कि अगर ये हो गया तो वो क्यों नही हुआ? और वो हो गया तो ये होना चाहिए था|अब ऐसे में मौसम क्या करे|
आप को किसी भी समय,कोई भी बीमारी हो जाए आदमी के मुँह से सबसे पहले यहीं निकलता है सब मौसम का असर है|गर्मी की रात में छक कर आइसक्रीम खाओ और अगर सुबह हल्की सर्दी भी हो गई तो बस मौसम बदल रहा है| भाई मौसम बेचारे को कहीं तो बक्श दीजिए| हर समय बस सारी ग़लती मौसम की ही है ये तो नाइंसाफी हुई ना फिर कभी कभी अगर वो भी मनमानी करता है तो इसमें हल्ला मचाने वाली कौन सी बात है|हम अपनी मनमानी कर सकते है तो उसे भी अपनी मनमानी करने का पूरा अधिकार है|
हमें बोलने की आदत है सो हम बोलते रहते है| बाकी हमें सब पता है कि जब भयंकर भ्रष्टाचार,तेज मँहगाई,भीषण चोरबाज़ारी,बड़े बड़े घोटाले हमारा कुछ नही बिगाड़ पाए तो ये चार दिन का मौसम हमारा क्या बिगाड़ लेगा|अब तो हम सबको सहन करने की और दूसरों को दोष देने की आदत सी हो गई है|इस बात के लिए हम राजनीति का सदैव ऋणी रहेंगे जिस वजह से आज हम इतने सहनशील और मजबूत इरादे वाले बन पाए|
वैसे भी मौसम की मार के बारे में शोर करने वाले लोगों को यह याद ही नही रहता कि आख़िर हम नें प्रकृति को क्या दिया|धूल,धुआँ,प्रदूषण,गंदगी,शोर इत्यादि जब हमारे पास यहीं बेहतरीन मैटेरियल बचे है प्रकृति को देने के लिए तो हम मौसम से क्या अच्छे की उम्मीद रखें| जैसे को तैसे वाली बात तो अब हर जगह है|
और यहीं राज भी है मौसम के बदलने का अभी तो स्थिति बहुत सही है पर अगर ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो फिर देखिएगा| मौसम का स्टाइल आने वाले समय में ठंडी,गर्मी,बरसात सब कहर ढाएँगेऔर हम ऐसे ही दोष देते रहेंगे कि मौसम ऐसा है, मौसम वैसा है क्योंकि इससे ज़्यादा तो कुछ हमारे हाथ में रहेगा नही| इसलिए अभी ही सुधर जाना ही बेहतर है ताकि भविष्य में मौसम और हम दोनों संतुलित रहें|
Friday, January 14, 2011
साल नया पर हाल पुराना----(विनोद कुमार पांडेय)
नया साल आ भी गया और एक सप्ताह पुराना भी हो गया इधर कुछ दिनों में कुछ नया तो हुआ ही नही|नये साल की तैयारी में लगी जनसमूह में एक ग़ज़ब का उत्साह हर वर्ष ऐसे ही रहता है पर जैसे जैसे दिन बीतते जाते है उन्हें समझ में आने लगता है कि सारा शोर-शराबा बस महज एक दिखावा था|यह साल भी ऐसे ही जा रहा है जैसे बाकी के वर्ष गये|
ऐसी परंपरा लगभग हर वर्ष के अंत और प्रारम्भिक दौर में चलती रहती है और भोली-भाली जनता सकारात्मक ख्वाब बुनने में लगी रहती है |वैसे यह बुरी बात नही सोच तो ऐसी ही होनी चाहिए पर अब अपना देश ही ऐसा है जो पुराने मुद्दों में ही उलझा रहता है तो नया कहा से होअगर नया कुछ सुनने में भी आता है तो वो बस घोटाले बस और कुछ भी नही|
एक विश्लेषण के अनुसार गत वर्ष में बहुत बड़े बड़े घोटाले सामने आए जो खुद अपने में एक कीर्तिमान है| जिसके लिए २०१० का नाम सदा इतिहास में दर्ज हो गयाचूँकि घोटाला काफ़ी विद्वान और पढ़े लिखे लोगों द्वारा किया गया था इसलिए यह थोड़ा और ज़्यादा ही स्टैंडर्ड घोटाला माना जा रहा है|
अब अगर नया साल कुछ नया लाता है तो इन घोटाले करने वालों के लिए नया होगा जैसे कि यह बरी हो जाएँगे या कोई छोटी-मोटी सज़ा हो जाएगी|आम जनता के लिए कुछ नया होना तो जैसे बंग्लादेश के लिए विश्वकप जीतने जैसी बात होगी|फिर भी भारत की भोली जनता की उम्मीद देखिए अपने निजी खुशियों को नया-पुराना करने में व्यस्त है |सार्वजनिक खुशी या कोई देशव्यापी समाचार की ओर वो भी ध्यान नही देते है क्योंकि उन्हें भी पता है कि अब डीजल और पेट्रोल के दाम तो घटेंगे नही और ना ही देश में भूख और ठंड से मरने वालों की संख्या में घटोत्तरी होगी|
नये के नाम पर अगर पिछले वर्ष की बात करें तो कॉमनवेल्थ गेम जैसी सफलता मिली जो निश्चित रूप से हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है पर उसके साथ ही कॉमनवेल्थ घोटाला भारतीयों के सर को नीचा कर दिया और कोई उम्मीद भी नही दिखाई देती की इस बात का फ़ैसला कब तक होगा|
सुरेश कलमाड़ी,ललित मोदी जैसे महान विभूतियों ने तो यह भी सिद्ध कर दिया की खेल-खेल में भी घोटाले संभव है और वो भी हल्के-फुल्के नही बल्कि काफ़ी भारी भरकम| जब जब २०१० की बात होगी इन लोगों का नाम सबसे उपर होगा|भारत के पूर्व रेकॉर्ड को देख कर इससे इनकार नही किया जा सकता कि नये वर्ष में कुछ और नये कलाकार सामने निकल कर आए जो घोटालेबाजी के करतब में जनता को और भी आश्चर्यचकित कर दें और देश की हालत यथास्थिति बनी रहें |और नया जैसा कुछ प्रतीत ही ना हो|
अब यदि पब्लिक प्याज के दाम में कमी को नया मानती है तो फिर नये वर्ष में नया ज़रूर होगा वरना राष्ट्रीय स्तर पर तो पुरानी टाइप की घटना ही बार बार घटती रहती है