चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Sunday, June 27, 2010
बादल जी के नाम एक खुला पत्र-----(विनोद कुमार पांडेय)
Sunday, June 20, 2010
जींस तेरे कितने रूप (हास्य-व्यंग)--------(विनोद कुमार पांडेय)
जींस आधुनिक विश्व का एक प्रचलित पहनावा परिचय का मोहताज नही है,फिर भी मैने कहा चलो कुछ चर्चा हो ही जाए आख़िर खाली टाइम का सदुपयोग करें तो कैसे,वैसे भी दोस्तों मैं भी तो उसी भारत का हिस्सा हूँ जहाँ फालतू की चर्चा किए बिना ज़्यादातर लोगों का दिन ही नही कटता और दिन भर रुक भी गये तो शाम होते होते कोई ना कोई ऐसी सुर्रा छोड़ ही देते है जिससे महफ़िल में गर्माहट बनी रहें. खैर छोड़िए इन बातों को हम जींस की बात कर रहे थे, भारत के इतिहास में जींस का इतिहास तो ज़्यादा पुराना नही है फिर भी काफ़ी कम समय में जींस ने एक अच्छा जन-संपर्क बना लिया मुंबई हो या दिल्ली,कोलकाता हो या बैंगलोर हर जगह जींस का एक खास वर्गसमूह हैं..बस चेन्नई को छोड़कर क्योंकि चेन्नई वालों को अभी तक “चेन नही” हो जैसे कपड़ो में ही आनंद आता है जिसमें आज भी लूँगी का सर्वोच्च स्थान बरकरार है.
पैंट,पतलून,पाजामा कई विविध प्रकार के परिधान तरह तरह के चित्रकारिताओं से सज कर बाजार में आते रहें पर जींस की लोकप्रियता जस की तस रही,जींस की सबसे खास बात तो यह रही की जींस के साथ आप शर्ट, कुर्ता,टी.शर्ट, कुछ भी पहन लें सब में फिट, अरे पहनने की छोड़िए अगर ना पहने तो भी हिट.लोग यहीं समझेंगे किसी बड़े घर से ताल्लुक़ात है या किसी स्टार-वस्टार का रिश्तेदार हैं जो अभी नया नया मोहल्ले में आया है.
जींस के मार्केट में टिके रहने का एक कारण यह भी है कि इसके रंग-रूप में किसी भी प्रकार का परिवर्तन अशोभनीय नही होता है..पहली बात यह कि जींस को २ महीने तक ना धुलों फिर भी बेचारा कुछ नही बोलेगा और ईमानदारी से आपके शरीर से चिपका रहेगा भले उसकी सड़ी टमाटर सी हल्की हल्की दुर्गंध पास वाले आदमी के नाक में दम कर दें और दूसरी बात यह जब तक सलामत है तब तक तो ठीक-ठीक अगर फट जाए तो कहनें ही क्या,आज कल तो फटे जींस का कारोबार और भी बढ़िया चल रहा है.
वैसे तो जींस की महिमा बहुत बड़ी है पर शॉर्ट में ही निपटाना चाहूँगा,जींस पहनने के एक फ़ायदे जेब के भी है एक साधारण से साधारण जींस में कम से कम ५-६ जेबें होती है, थोड़ा और फैशन में चले गये तो जेबें की संख्या भी १० से उपर चली जाती है मतलब आदमी एक चलता फिरता ए. टी. एम. मशीन बन जाता है चाहे तो २-४ लाख यूँ ही लेकर टहलता रहे किसी को कानों कान तक खबर नही लगने वाली..
ये रहें कुछ विशेष गुण जिसके बदौलत जिस के कारण जींस भारत में भी बहुत ही लोकप्रिय हो गया है,वैसे भी भारत का विदेशी वस्तुओं से बहुत ज़्यादा ही प्यार रहा है और उनके लिए भारत एक बढ़िया बाजार रहा है.
Wednesday, June 9, 2010
चोरबजारी,इतना ज़्यादा,मारामारी,इतना ज़्यादा-----(विनोद कुमार पांडेय)
Saturday, June 5, 2010
अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-6-----(विनोद कुमार पांडेय)
कहूँ बड़ों को क्यों भला,छोटे भी है तेज|
संस्कार से वो सभी,हैं करते परहेज||
बाबू माँ की बात का,तनिक नही सम्मान|
उल्टे कामों में सदा,रहता उनका ध्यान||
लाल कलर टी- शर्ट पर,काला-नीला शूज|
जींस छोड़ कर देह पर,बाकी सब कुछ लूज|
गाँव-मोहल्ला तंग है,ऐसे सुंदर काम|
गाली,मार-पिटाई में,फेमस इनका नाम||
पॉकेट में धेला नहीं,फिर भी सीना तान|
गलियों में हैं घूमते,वो बन कर सलमान||
अपने कक्षा चार में,छोटा पहुँचा सात|
घर में होती बाप से,डेली जूता लात||
घर-बाहर दोनो जगह,हैं भीषण बदनाम|
बड़े आदमी की तरह,फिर भी इनके काम|
महँगी मोबाइल रखें,बाइक रखें बजाज|
घर का मालिक राम जी,इन्हे नही कुछ लाज||
अपनी खुद चिंता नहीं,हैं ये ऐसे वीर|
कैसे इनको हम कहें,भारत की तस्वीर||