चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Saturday, September 26, 2009
विनम्र निवेदन है भगवान राम जी से एक बार फिर पृथ्वी पर आने की कृपा करें.
Wednesday, September 23, 2009
एहसास
Wednesday, September 16, 2009
रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
Sunday, September 13, 2009
साहित्यशिल्पी के वार्षिक समारोह में ब्लॉगर्स और कवियों की उपस्थिति में समारोह के सफलता की आँखो देखी प्रस्तुति
सफल रहा यह स्नेह मिलाप ,निहित है इसमे सबका प्यार,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.
हुआ बड़ा ही दिव्य प्रयोजन,दिल हर्षित मन था उत्साहित,
देख भीड़ ब्लॉगर,कवियों की, स्नेह की उर्जा हुई समाहित,
वर्षगाँठ साहित्यशिल्पी की,बड़ी ही सुंदर मन को लागी,
हिन्दी वास्ते ग़ज़ब समर्पण,देख हुआ यह मन अनुरागी,
चलो सुनाता हूँ मैं सबको, ब्लॉगर्स सम्मेलन का सार.
प्रेम बचन राजीव रंजन की सब के दिल को चूम रहे,
अभिषेक जी और मोहिंदर सब ने दिल में जगह बनाया,
अतिथि का स्वागत कर के, इस महफ़िल को खूब सजाया,
हास्य-व्यंग और हिन्दी युग में जिनके बड़े बड़े थे काम,
सारी दुनिया को समझाया, सारे जग में हिन्दी की जय,
प्रेम में जन्मे ऐसे जन को,कहते है प्रेम जन्मेजय,
जिनके आने से मत पूछो, हास्य सुमन कुछ और गये खिल,
चाहे वो अविनाश जी हो,चाहे हो डॉक्टर जन्मेजय,
पवन जी चंदन और दिनेश जी सुंदर गीत से मन हर्षाए,
नामिता जी और अनिल की ने भी कुछ मनभावन शेर कहें,
अब्दुल ,अमन व शोभा जी ने शब्दों के संदेश कहें,
गाहे बेगाहे के मालिक बेहतर शब्दों के सरकार,
अपने रखे विचार बड़ा ही सुंदर लगा इसे सुनकर,
अपनी बात और हालात खूब बताए धून-धुन कर ,
सहगल जी, मजेदार मेरठ कल्चर ही हालात कही,
क्षमा करे मैं भूल रहा हूँ, कुछ मित्रों के नाम,
लेकिन दिल से करता हूँ मैं उनको बातों का सम्मान,
सार्थक सृजन के यादव की सार्थक थी परिचर्चा,
शेफाली जी की कविता भी सबको खूब ही भायी थी,
साहित्य प्रेम के वश मे होकर हल्द्वानी से आई थी,
और सभी ब्लॉगर कवियों से करता हूँ ,फरियाद
फिर से क्षमा करे मुझे जिसका उल्लेख नही कर पाया,
लेकिन यह सच है, सब ने आयोजन को सफल बनाया..
आप लोग ही कुछ कह देना अब तो हो ही गये वाकिफ़,
जो थे नही उपस्थित उनसे यही प्रार्थना हैं मेरी,
अगली बार उपस्थित हो, कर के कुछ हेरा फेरी,
और हमारे चाचा जी अविनाश जी का आभार,
Wednesday, September 9, 2009
फरीदाबाद ब्लॉगर्स स्नेह सम्मेलन मे ब्लॉगर्स के चटपटें कारनामे..अगर सभी उपस्थित हुए तो-एक मजेदार परिकल्पना
Tuesday, September 8, 2009
ब्लॉगर्स महासम्मेलन ...ज़रूर आईएगा..
बहुत दिनों से इंतज़ार था,हमे ही नही हर ब्लॉगर को,
वह सम्मेलन जिसमे हम सब,खुशियाँ बाँटे,खुशियाँ लें.
इसी सितंबर में 12 को शनिवार के दिन होगा,
महासभा ब्लॉगर,कवियों का,धूम मचाएगा जम के.
बात है पक्की,दिन है निश्चित,इसीलिए सूचित करता हूँ,
इस सुंदर महफ़िल में आकर,महफ़िल को रंगो से भर दें.
3 दिनों की बेसब्री है,मिलेंगें फिर हम सब महफ़िल में,
मॉडर्न स्कूल,सेक्टर-17,ओल्ड फरीदाबाद में,
हिन्दी के उत्थान मे उस दिन जम कर परिचर्चा होगी,
हास्य व्यंग के रंग मे भी,मिलकर हम रंग भरेंगे.
अविनाश जी और अजय जी,और भी कुछ ब्लॉगर बंधु,
जिनके अथक प्रयासों से,यह सम्मेलन सच हो पाया.
साहित्यशिल्पी के बंधुगणो,का योगदान भी सच्चा है,
मैं धन्यवाद देता हूँ सबको, अपने अंतर्मन से .
सब से यहीं निवेदन है कि,कोशिश कीजिएगा आने का,
अपने उपस्थिति से आप,आयोजन को सफल बनाएँ.
Thursday, September 3, 2009
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.
शिक्षक दिवस की सभी को हार्दिक बधाई..आज के परिवर्तन और बदलते माहौल में शिष्य और गुरु के रिश्ते भी बदल रहें हैं, तो आइए थोड़ा देखते है की क्या क्या बदल रहा है तब और अब में,जब कभी द्रोणाचार्य जैसे महान गुरु और एकलव्य जैसे महान शिष्य हुआ करते थे.आज इस माहौल को देखते तो सच मेंउन महान आत्मा को बहुत कष्ट होता. वैसे इस कविता में सारे विचार मेरे व्यक्तिगत है तो मैं प्रार्थना करता हूँ की कोई बंधु जन इसे इसे किसी प्रकार का मानवीय भावनाओं पर प्रहार ना समझे..यह बस कुछ सीमित लोगों पर लागू होता है.
हुए नदारद प्रेम समर्पण,बदलें गुरु शिष्य के नाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.
शिक्षक दिवस बधाई है,
वह पद,जहाँ कमाई है,
शिक्षक गर चाहे तो कर ले,
लूट पाट कर जेबें भर ले,
गुरू कभी थे, गुरू घंटाल,
आज हुए है,मालामाल,
किधर पढ़ाते हैं,मत पूछो,नकल करा के पास कराते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.
शिक्षा,शिक्षक सब में झोल,
जैसे ढोल के अंदर पोल,
सम्मिलित व्यवहार मे है,
शिक्षा अब बाजार मे है,
लोग लगाते दाम यहीं,
कुछ लोगों का काम यही,
विद्या अर्थ विस्मरण करके,विद्या से बस अर्थ कमाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो, इसे देखते ही मर जाते.
गुरु शिष्य का प्रेम,समर्पण,
ख़त्म हुआ अब वो आकर्षण,
परिवर्तन का चढ़ा असर,
शिष्य बनाया गुरु पर डर,
क्षीण हुए गुरु के अधिकार,
आख़िर हो कर गुरु लाचार,
रख कर के बंदूक जेब में,क्लास मे लेक्चर लेने जाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.
नवयुग की इस बेला में,
रेलम,ठेलम-ठेला में,
भाग रहे हैं इधर उधर,
कहाँ गुरु और शिष्य किधर,
कौन करे अंगुली का दान,
एकलव्य सा कौन महान,
आज गुरु की कॉलर पकड़े,शिष्य बहादुर हैं गरियाते,
द्रोणाचार्य अगर होते तो,इसे देखते ही मर जाते.