चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Thursday, May 27, 2010
इम्तिहान ज्यों ख़तम हुआ,कल्लू नें बाँधी आस----(विनोद कुमार पांडेय)
Sunday, May 23, 2010
राष्ट्रीय कहिए या अंतरराष्ट्रीय पर एक हिट दिल्ली ब्लॉगर्स सम्मेलन की रिपोर्टिंग का काव्य रूपांतरण पढ़िए...मेरे अपने अंदाज में----(विनोद कुमार पांडेय)
Wednesday, May 19, 2010
बारह लाख लिए शादी में,दुलहिन देखें सन्न हो गये(एक हास्य ग़ज़ल)-----(विनोद कुमार पांडेय)
Thursday, May 13, 2010
हम तुम्हारे लिए जाल बुनने लगे,तुम हमारे लिए फंदे कसने लगे-----(विनोद कुमार पांडेय)
Friday, May 7, 2010
एक सुंदर सी कविता के साथ सभी ब्लॉगर्स साथियों को मातृ दिवस की अग्रिम बधाई-----(विनोद कुमार पांडेय)
मातृ दिवस के उपलक्ष्य में इस कवि ने अपने शब्द माँ के नाम अर्पित किया है,जीवन मे एक ऐसा नाम जिससे हम कभी भी अलग नही हो सकते,और वो शब्द है "माँ".आज एक बार फिर आपके सामने प्रस्तुत है मेरी यह कविता...
माँ,ममता का असीम श्रोत हैं,
माँ,इस नश्वर जीवन की,अखंड ज्योत हैं.
माँ,एक पवित्र नाम है,
माँ,के बिना जिंदगी गुमनाम है.
माँ,निहित है,परमात्मा के स्वरूप में.
माँ,बचपन के कठिन डगर पर,गोदी में ज़कड़ कर,
माँ,जिसने चलना सिखाया, उंगली पकड़ कर.
माँ,जिसने हमारे खुशी के लिए आँसुओं को भी पीया है,
माँ,जीवन के अंधेरे पथ पर राह दिखाने वाली दीया है.
माँ,जिसने मुस्कुरा कर अपने हाथ से पहली कौर खिलाई,
माँ,जैसे कड़ी धूप,तपती गर्मी की शीतल परछाई.
माँ,बचपन के चंचल,मोहक,मुस्कान की जननी है,
माँ,जिससे यह संपूर्ण सृष्टि बनी है.
माँ,हमारे मूक बचपन की भाषा है,
माँ,जिसकी कोई नही परिभाषा है.
माँ,बसी है,ममतामय हर एक पल में,
माँ,बसी है,पृथ्वी,आकाश,वायु और जल में.
माँ,ही मूल में,माँ ही आधार है,
माँ,के लिए सारी जिंदगी उधार हैं.
माँ,समस्त रिश्तो से परे है,
माँ,दिशाहीन जीवन में लक्ष्य भरे हैं.
माँ,किलकारी भरे, वात्सल्य का दर्पण है,
माँ,हमारी हर खुशी, तुम्हे अर्पण है.
माँ,जिसके लिए केवल मातृ दिवस ही सुखाय नही है,
माँ, जिसका दुनिया में,कोई पर्याय नही है.
माँ की यादों के साथ फिर एक बार,
बचपन मे आगमन करता हूँ.
और विश्व के समस्त माताओं को,
मातृ दिवस पर, सिर झुका कर हार्दिक नमन करता हूँ.