Saturday, June 27, 2009

ये बोरवेल का ढक्कन बंद क्यों नही होता.

अभी पिछले सप्ताह समाचार पत्र मे पढ़ा की राजस्थान के एक गाँव मे अंजू नामक एक लड़की को 19 घंटों की मेहनत के बाद बोरवेल से निकाला गया. यह पहली घटना नही थी,इससे पहले ऐसे कई घटनाएँ हो चुकी थी और यही कारण था मेरे आश्चर्यचकित होने का कि इतने घटनाओं के बाद भी प्रशासन इसे रोक पाने मे असक्षम है. हमारी मीडिया जो हर खबरों को इतना बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करती है वो भी तब तक चुप ही रहती है जब तक खुले बोरवेल मे कोई गिर ना जाए.सरकार को इस अनहोनी से पहले कदम पर ही प्रहार करना होगा अन्यथा ऐसे न्यूज़ हमेशा आते रहेंगे और हम टीवी पर देख कर बस दूसरों के प्रति एक हमदर्दी की गुहार करते रहेंगे बस इसी घटना पर मैं ध्यान दिलाना चाहता हूँ अपनी हास्यात्मक शैली में कि जो कुछ नही कर सकते वो देश सेवा मे ज़्यादा दिमाग़ ना लगाए बस कविता पढ़े और मुस्कुराएँ, बस एक प्रार्थना है उनसे कि कही कोई खुला बोरवेल दिखे तो भगवान के लिए उस पर एक ढक्कन रख दे......धन्यवाद.


तीन साल हुआ,

घटना,जिसने सभी जनमानुष के हृदय को छुआ,

मीडिया मंत्र के तंत्र से लबालब समाचार,

ई.टीवी, यु.टीवी,जी.टीवी और अख़बार,

पर सनसनाती,सनसनीखेज बनकर छाई थी,

जब नन्हा मुन्ना राही,प्रिंस,

बाहें खोलकर,

जय बजरंगबलि बोलकर,

खुले बोरवेल मे छलाँग लगाई थी.


पूरे देश मे तब लाइव टेलीकास्ट हो रहे थे,

गाँव,घर,शहर मे प्रिंस के परिजन रो रहे थे,

पर रिपोर्टर भइया लोग,

बाकी सभी खबरों से मुँह मोड़ कर,

अन्न,जल छोड़ कर,

इसी न्यूज़ के पीछे पड़े थे,

और कैमरा लेकर उसी स्थान पर खड़े थे.


प्रिंस के सारे भूले बिसरे रिश्तेदारों को,

स्टूडियो मे बुला रहे थे,

ईमोसन की स्पीड बढ़ा कर,

पूरे देश को रुला रहे थे,

स्टूडियो मे बैठ कर दुर्घटना को हवा दे रहे थे,

पूरे देशवासीयों के दिल बखूबी दुआ दे रहे थे,

इस दुआओं के भीड़ मे जब भी सवाली पा जाते,

मुँह पर कैमरा लगा देते, जिसे भी वहाँ खाली पा जाते,

बोरवेल,ट्यूबवेल,घर,दरवाजे,

सब का फोटो खींच रहे थे,

मुखिया जी भी तन कर,

धोती,कुर्ता,पहन कर, आँखे मींच रहे थे.


मीडिया के मसालों ने धमाल कर दिया था,

प्रिंस को दुआओं से मालामाल कर दिया था,

सारी अटकलों के बात अंततः प्रिंस निकल गया,

पर प्रिंस का जादू हर एक भावुक दिल पर चल गया,

वह छोटा बालक फर्श के अर्श हो गया,

कुछ अनुयायीयों के लिए तो आदर्श हो गया,

बहुत प्रेरित हो गये आज के बच्चे,

इस घटना से,

जनता भी चिर परिचित हो गयी है,

ऐसी दुर्घटना से,

अब तो हर बच्चे ऐसे हैरतअंगेज़ खेल ढूढ़ते है,

कहीं मिले और कूद पड़े,

बड़े मन से खुला बोरवेल ढूढ़ते हैं.


सम्भावनाओं की ऐसी भयावह रात से पहले,

प्रिंस के चर्चा-ए-बरसात से पहले,

बहुत सारे बुलबुले हुए थे,

बोरवेल के ढक्कन के पहले भी खुले हुए थे,

तब चैनलों ने इतनी उत्सुकता नही दिखाई थी,

इसीलिए हमारे गाँव के चुन्नु को,

प्रिंस की तरह को सरकारी प्रोत्साहन नही मिल पाई थी.


वैसे इस प्रकरण पर सभी के ध्यान,

मीडिया के ध्यान दिलाने के बदौलत ही गये,

इस अभूतपूर्व योगदान से सैकड़ों प्रिंस जी गये,

पर ऐसी जानलेवा हरकत खेल खेल मे क्यों?.

नन्ही सी जान बार बार बोरवेल मे क्यों?.

प्रिंस,चिराग,बलवीर,अंजू आगे और भी आते रहेंगे,

कुछ बचा लिए जाएँगे,

कुछ मौत के मुँह मे समाते रहेंगे,

ये प्रशासन का ढीलापन है,

या बच्चों के परिवार का लचीलापन,

शरारत,उछलकूद तो नटखट बचपन का पसंद होता है,

परंतु ये बोरवेल का ढक्कन क्यों नही बंद होता है.

.

Saturday, June 13, 2009

पिता,भगवान को धरा पर लाने का सार्थक प्रयास है.

पिछले महीने माँ की महिमा की सच्चाई बयान किया तो लोगो ने बहुत पसंद किया अगर और कोई है जो माँ के नेह बराबरी करता है तो वो है एक पिता का प्यार..आज मेरे कलम उसी ओर रुख़ कर रहे है,आप पसंद कीजिएगा.

पिता,पवित्र पावन ईश्वरीय आविष्कार है,

पिता,त्याग-तपस्या का मानवीय अवतार है.

संसारिक सुख-दुख की आंख-मिचौली में,

पिता,धैर्यशील जीवन का धारणीय विचार है.


पिता, खिलते बचपन का,उत्प्रेरक उपकरण है,

पिता,पुत्र की हर्षित काया का उल्लासित वरण है.

पथ प्रदर्शक, मुश्किलों को आसान बना दे जो,

पिता, प्रेरणा का असीम स्रोत, शोक का हरण है.


पिता, प्यार है, पिता छांव है, पिता दर्पण है,

पिता, के चरणों में समस्त खुशियां अर्पण हैं.

पिता, अमूल्य, विशेष और अलंकारित शब्द है,

पिता, एक संज्ञा ही नहीं, पिता एक समर्पण है.


पिता,भगवान को धरा पर लाने का सार्थक प्रयास है,

पिता,सफल,लक्ष्यपूर्ण,उत्साहित जीवन की अटूट आस है.

हमारे सदगुणों के निर्माणकर्ता के प्रतिनिधि स्वरूप,

पिता,अविस्मरणीय, कालजयी अपठित उपन्यास है.


पिता,दिशाहीन डगमगाते कदमों पर प्रथम आपत्ति है,

पिता,कर्तव्य,मर्यादा, अनुशासन की सुंदर अभिव्यक्ति है.

पिता, के कठोर शब्दों में भी मधुर सीख निहित है,

पिता, वास्तव में सब कोमल भावनाओं के सहित है.


पिता, अनायास प्रेम प्रदर्शन में मूक होता है,

पर पिता, अंतर्मन से अत्यंत भावुक होता है .

दर्द भी सहता है, कभी-कभी आँसू भी पीता है

जब कभी कोई बच्चा जीवन में कुछ खोता है.


जिसने सांसारिक संघर्षों से जूझने की कला सिखायी,

जिसके कंधे पर बैठ कर , मंदिर की घंटियां बजायीं,

जो मेले की भीड़ से गुब्बारे फूटने से बचा कर लाते हैं,

पिता, हमारी खुशी के लिए हाथी ,घोड़े भी बन जाते हैं.


पिता,जिनकी उंगली पकड़ कर हमने,रास्ते जाने,

वास्तविक जिंदगी के माने, समझे और पहचाने.

लम्बे सफ़र में, दो पल उन्हें भी अर्पित कर दो,

जिनकी बदौलत चलें हैं हम अपनी मंज़िल पाने


पितृ स्नेह जैसा कोई,मरहम नही हो सकता,

भावना का प्यार कभी, कम नहीं हो सकता.

सभी रिश्तों से परे है,ये बंधन अटूट प्यार का,

पिता,का अध्याय कभी,ख़तम नही हो सकता.


पिता की यादों के साथ बार-बार,

अपने बचपन में आवागमन करता हूं.

अपने ही नहीं विश्व के समस्त पिताओं को,

सिर झुका कर सादर नमन करता हूं.

Saturday, June 6, 2009

हिन्दी सिनेमा मे नाम का अकाल पड़ गया है.

आज कल सिनेमा के अजीब अजीब नाम आ रहे है,उन्ही बातों से आपको हँसाने का प्रयास कर रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ कि आप सब को पसंद आएगा.
हिन्दी फिल्म जगत के, आज कल जो हाल चल रहे है,
पूरे बॉलीवुड मे फिल्मों के, नाम के अकाल चल रहे है,
डाइरेक्टर खुद परेशान, अगली फिल्म का नाम क्या रखे,
कुछ नाम रख-रख कर, बार बार बदल रहे है.

सिनेमा मे नाम रखने की, उलझन से अब तो,
उपाय ढूढ़ने लगे है सब तो,
कुछ समंदर किनारे जाकर, नाम सोचते है,
कुछ स्टूडियो मे बैठ कर, बॉल नोचते है.

अब तो डाइरेक्टर भी एक दो लोगो को,
सिनेमाई रोग से भूक्त भोंगो को,
बाकी हर काम से मुक्त करते है,
और बस नाम सुझाने के लिए ही नियुक्त करते है.

वो भी अपने काम से 100% इंसाफ़ करते है,
पूरे दिमाग़ का कचरा यही पर साफ करते है,
ऐसे ऐसे जुगाड़ भिड़ाते है,जोड़ तोड़ कर ,
रख देते है,पूरा नेमिंग कन्वेंसन मरोड़ कर.

तभी तो आज कल देखो,
मायानगरी का नया पहल देखो,
इंग्लीश,हिन्दी सब जोड़ कर नाम बनाते है,
रोमांटिक मूवी भी दर्शको को डराते है.

हॉरर सिनेमा बस ऐसे ही होते है,
थियेटर मे बैठ कर दर्शक सोते है,
दिमाग़ रख कर घर पर मूवी देखने जाओगे,
तभी कॉमिक स्क्रिप्ट का पूरा मज़ा पाओगे.

दिल कबड्डी,आलू चाट,बताओ,कैसे कैसे नाम है,
अब ऐसे नाम का क्या पैगाम है,
वो दिन दूर नही जब ऐसे ही मूवी आते रहेंगे,
प्यार खो खो ,इश्क पोलो ,लोगो के दिल मे समाते रहेंगे.

मोहब्बत की उँची कूद भी सुपरहिट हो जाएगी,
जान जिमनॅस्टिक भी युवाओं का मन बहलाएगी,
नमस्ते क्रिकेट और सलाम-ए-हॉकी भी भाएगी,
लैला मॅंजनू की सीक्वल,लैला तैराकी भी आएगी.

आलू चाट के बाद अब, टमाटर चाट शूट होगा,
पेटीज़,बर्गर,पिज़्ज़ा के लिए मल्टीप्लेक्स मे लूट होगा,
गली,मोहल्ले,चप्पे-चप्पे पर छाएँगे,
जब शाहरुख ख़ान गोलगप्पे मे नज़र आएँगे.

आज जब हम याद करते है,वो दिन
हिन्दी सिनेमा के वो पल छिन,
नाम के अनुरूप ही कहानी चलती थी,
तब नाम में ही समस्त की भावनाएँ पलती थी.