सरला नारायण ट्रस्ट द्वारा दिसंबर माह की चुनी गयी प्रशंसनीय रचना |
पतझड़ का आभाष न होगा ।
रे मन फिर मधुमास न होगा । ।
पतझड़ जीवन का दर्शन है
एकाकीपन की अनुकृति है
पहले खो कर फिर पाता है
पतझड़ से पोषित प्रकृति है
खोने का यदि मर्म न जाना
तो पाकर उल्लास न होगा ।रे मन फिर.......
पत्ते पेड़ों से झर-झर कर
सृष्टि चक्र को गति देते हैं
नए फूल फिर से आकर के
पेड़ों का दुःख हर लेते हैं
क्रंदन का अनुभव न लिया तो
हँसने का अभ्यास न होगा ।रे मन फिर.......
प्रेम कठिन है, सर्व विदित है
किन्तु चाह सबकी रहती है
आँसू,विरह,वेदना,पीड़ा
स्नेहिल ह्रदय वास करती है
यदि ये सब दुःख नहीं मिले तो
प्रेम हुआ, विश्वास न होगा ।रे मन फिर.......
जीवन का भी ढल जाना है
पतझड़ हमें बताता है यह
नवनिर्माण नये जीवन का
कला हमें समझाता यह
सीखोगे पतझड़ से जीना
तो मन कभी उदास न होगा ।रे मन फिर.......
-----विनोद पांडेय
रे मन फिर मधुमास न होगा । ।
पतझड़ जीवन का दर्शन है
एकाकीपन की अनुकृति है
पहले खो कर फिर पाता है
पतझड़ से पोषित प्रकृति है
खोने का यदि मर्म न जाना
तो पाकर उल्लास न होगा ।रे मन फिर.......
पत्ते पेड़ों से झर-झर कर
सृष्टि चक्र को गति देते हैं
नए फूल फिर से आकर के
पेड़ों का दुःख हर लेते हैं
क्रंदन का अनुभव न लिया तो
हँसने का अभ्यास न होगा ।रे मन फिर.......
प्रेम कठिन है, सर्व विदित है
किन्तु चाह सबकी रहती है
आँसू,विरह,वेदना,पीड़ा
स्नेहिल ह्रदय वास करती है
यदि ये सब दुःख नहीं मिले तो
प्रेम हुआ, विश्वास न होगा ।रे मन फिर.......
जीवन का भी ढल जाना है
पतझड़ हमें बताता है यह
नवनिर्माण नये जीवन का
कला हमें समझाता यह
सीखोगे पतझड़ से जीना
तो मन कभी उदास न होगा ।रे मन फिर.......
-----विनोद पांडेय
1 comment:
बढ़िया रचना,
हार्दिक मंगलकामनाएं विनोद !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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