उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिस बात का आकलन कर रहे थे वही सब हुआ । उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया । पिता जी ने बेटे को पार्टी से निकाल कर सिद्ध कर दिया कि अभी वो बूढ़े नहीं है । कितना सोच-विचार किये नेताजी जी ,ये तो पता नहीं पर जनता का मूड कुछ और है ,जो दिखाई दे रहा है । रामगोपाल और अखिलेश समाजवादी पार्टी ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की बुद्धजीवी जनता की पसंद थे । टिकट बँटवारे को लेकर शुरू हुई लड़ाई इतना भयंकर रूप ले लेगी किसी ने सोचा नहीं था । शिवपाल और मुलायम जी का अलग कदम क्या होगा ये तो पता नहीं पर जनता अखिलेश को चाहती है क्योंकि इस बार उत्तर प्रदेश में कुछ काम बोला है । यह हताशा भी हो सकती है नेताजी की क्योंकि पार्टी की छवि बदल कर काम वाली हो रही है और जो दबंगई वाली छवि थी वो कम हो रही है । नेताजी को भक्त पसंद हैं पर युवा जो विकास चाहती है अखिलेश को कुछ हद तक पसंद करती है,कुछ लोग आशंका व्यक्त कर रहें हैं कि यह अखिलेश की छवि सुधारने के लिए राजनीति है पर ऐसी राजनीति सकारात्मक नहीं होती ,अखिलेश की छवि तो सुधर जाएगी पर पार्टी बहुत खतरनाक मोड़ पर आ जाएगी । पार्टी के दो फाड़ होने पर फायदा तो विरोधियों को ही होगा । मुलायम जी समझ नहीं रहें है या उन्हें गुमराह किया जा रहा है ।
रामगोपाल का भला वो कैसे होता बोलो
सारे समाजवादी पार्टी कहते हैं "मन से मुलायम है इरादे से हैं लोहा " अतः फायदा उठाने वाले लोग लोहा गरम देखकर हथौड़ा मार दिए ,अब हालात और गड़बड़ हो गया है । मुलायम की छवि कुछ अलग रही ,विचारधारा भी कुछ कुछ अलग है ऐसे में वो विकास और साफ़ राजनीति की बात कर रहें अखिलेश और रामगोपाल को कितना पसंद करते इसलिए आज उन्होंने अपना फैसला सुना दिया । अब देखते जाइये और क्या क्या होता है उत्तर प्रदेश में ।
कहते थे सब लोग नाम से मुलायम हैं
निकला बड़ा कठोर नाम का नहीं हुआ
काम बोलने लगा तो अखिलेश को हटाया
वही जो कभी भी किसी काम का नहीं हुआ
उसके लिए तो सब आलू और बैगन हैं
भून दिया था जो शालिग्राम का नहीं हुआ
आदमी जो भगवान राम का नहीं हुआ
---विनोद पांडेय
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