चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में,
हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Wednesday, December 28, 2016
आ गया सावन सजन कब आओगे
नवम्बर माह के प्रयास में मेरे गीत को प्रशंसनीय रचना के शामिल किया गया ,मेरे लिए हर्ष का विषय है । सरला नारायण ट्रस्ट एवं गीतऋषि डॉ विष्णु सक्सेना जी का बहुत बहुत आभार |
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