फिल्मों की दुनिया में कम पैसा खर्च कर के अधिक मुनाफा कमाना एक कलाकारी है और इस कलाकारी में डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी का हाथ एकदम साफ़ मालूम पड़ता है |निल बटे सन्नाटा के बाद उन्होंने बरेली की बर्फी दिखा कर सिनेमा पसंद लोगों की जीभ को लपलपाने का मौका दिया है,कम ही लोग होंगे जो इसे खाने से परहेज करेंगे | सुपरहिट मूवी दंगल के डायरेक्टर नीतेश तिवारी ने बरेली की बर्फी की कहानी में मीठे के साथ-साथ नमक-मिर्च भी भरपूर मात्रा में ठूसा है | फिल्म असफल प्रेमियों को जीवन के प्रति आशावान बनाती है ,उन्हें किताब लिखने की प्रेरणा देती है ताकि शायद इस डिजिटल युग में कोई भूले भटके से उनकी किताब पढ़ ले और कोई बरेली की बर्फी उनकी जिंदगी में भी मिठास घोल दे | फिल्म हँसाती भी है ,रुलाती भी है ,डगमगाती भी है और भरमाती भी है | महानगरों की चकाचौंध से दूर फिल्म की पृष्ठभूमि आपको अपने पास-पड़ोस की याद दिलाएगी | हालाँकि फिल्म में बरेली का कोई विशेष योगदान नहीं है फिर भी कहीं-कहीं क्षेत्रीय बोलियों का अद्भुत प्रयोग डायलॉग डिलीवरी को आकर्षक बना रहा है | हाँ एक खास बात यह है कि बरेली की बर्फी टाईटल में साहित्यिक टाईप के लोगों को अनुप्रास अलंकार दिखाई पड़ता है परन्तु यह अलंकार तब भी झलकता अगर इस फिल्म का नाम बलिया की बर्फी ,बनारस की बर्फी ,बाराबंकी की बर्फी या बहलोलपुर की बर्फी होता |
फिल्म की कहानी बरेली के स्थानीय हलवाई (पंकज त्रिपाठी ) एवं प्राइमरी स्कूल शिक्षिका (सीमा पाहवा ) की इकलौती बिंदास लड़की बिट्टी मिश्रा (कृति सेनन ) के कारनामें से शुरू होती है | सिगरेट और इंग्लिश फिल्मों की दीवानी बिट्टी का शहर में कोई दीवाना नहीं है ,घर वाले शादी के लिए लड़के तो खूब ढूढ़ रहे हैं लेकिन बिट्टी की आदतों और हाजिरजवाबी का मुकाबला करना किसी लड़के के वश में नहीं होता अतः रिश्ता बनने से पहले ही टूट जाता | घर से भागने के चक्कर में बिट्टी को स्टेशन पर बरेली की बर्फी नामक एक घटिया किताब हाथ लगती है जिसे चिराग दूबे (आयुष्मान खुराना ) ने लिखा किन्तु किताब की घटियागिरि एवं मिलने वाली प्रतिक्रिया को सोचकर अपने लल्लू टाइप दोस्त प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव ) के नाम से छपवाया | बिट्टी को किताब के नकली लेखक प्रीतम विद्रोही से इसलिए प्यार जैसा कुछ हो जाता है क्योंकि बिट्टी को गलतफहमी हो जाती है कि प्रीतम विद्रोही ने किताब में जिस लड़की के बारे में लिखा है वो बिट्टी ही है जबकि चिराग ने उस किताब में अपनी भूतपूर्व प्रेमिका के मानसिक एवं चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख किया है | इधर बिट्टी के दिल की बात जब चिराग को पता चलती है तो स्वयं लेखक न स्वीकार करके प्रीतम विद्रोही से मिलवाने की बात करता है ,प्रीतम को केंद्र में रखकर दोनों में मिलना जुलना बढ़ता है और इस घटना में चिराग को बिट्टी से एकतरफा प्यार हो जाता है ,कहानी मुड़ती है प्रीतम विद्रोही चिराग द्वारा बिट्टी के जिंदगी में नाटकीय ढंग से लाया जाता है और फिर लवस्टोरी में चिराग बैकफुट पर आ जाता है | अंत तक जाते जाते फिल्म में बहुत कुछ वैसे ही होता है जैसा बहुत से रोमांटिक फिल्मों में हो चुका है अतः ज्यादा फिल्म देखने वाले आसानी से भाँप लेते हैं कि क्लीमेक्स में हीरोइन का दूल्हा कौन बनेगा |
पंकज त्रिपाठी जब जब स्क्रीन पर आते , सहज गुदगुदाते हैं | जोरदार एक्टिंग की है उन्होंने | राजकुमार राव ने दो तरह के किरदार निभाए हैं | लल्लू टाइप के किरदार में बेहतरीन एक्टिंग दिखा पर दबंग के रोल में उनका मेहनत ज्यादा रंग नहीं ला सका |आयुष्मान बेहतरीन एक्टर हैं ,फुटेज भी खूब मिला है ,काम भी बढ़िया रहा | अपने दोस्त के साथ बातचीत में उन्होंने भाषाई कलाकारी दिखाई है जो प्रभावित करता है | आयुष्मान के दोस्त,बिट्टी की सहेली रमा और बिट्टी के मम्मी के रोल में सीमा पाहवा ने भी छाप छोड़ी है | कृति सेनन ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर बताया कि अभी उन पर विश्वास किया जा सकता है |
फिल्म की कहानी में कुछ भटकाव भी है ,नाटकीयता अधिक है जो शायद नए मजनुओं को प्रभावित कर सकती है | कमजोरी की बात करें तो फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं है जिसे सुनने का मन करे ,कोई ऐसा लोकेशन नहीं है जो आपको लुभा सके,कलाकारों की साज सज्जा आधुनिक लडके लड़कियों को बड़े साधारण लगेंगे | सब कुछ साधारण लगभग ही है जो बहुत अच्छा है वो है कलाकरों की एक्टिंग और फिल्म की कहानी है | इसलिए आप इस पैसा वसूल फिल्म को एक बार देख कर अच्छा महसूस कर सकते हैं |
--विनोद पांडेय
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