Friday, September 5, 2025

 



टीचर्स डे पर गुरूजी को समर्पित एक कविता


साढ़े नौ का घंटा बजते कक्षा में घुस जाते थे

चश्मा टिका नाक पर अपने एक नजर दौड़ाते थे
उनके पीछे बच्चे उनको चश्मुद्दीन बुलाते थे
उनको था मालूम मगर हँस कर के बात उड़ाते थे
बहुत मेहनती और समर्पित थे प्रेरक, दिलदार गुरुजी
किस्मत थी जो हम पाए थे ऐसे सदाबहार गुरुजी |
बड़ी महारत थी उनको जो विषय पढ़ाने आते थे
हर टॉपिक पर प्रश्न पूछते उत्तर दे समझाते थे
जो गरीब थे बच्चे उनका भर देते थे फीस गुरु जी
व्यवहारिकता में विद्यालय में सबसे इक्कीस गुरूजी
जीवन भर के लिए रहेंगे आभारी हम सारे बच्चे
ढल जाते थे हर बच्चों की क्षमता के अनुसार गुरूजी |
क्लासरूम में सिर्फ पढ़ाई बाहर बातें दुनियाभर की
गप्प मारने में ऐसे कि खबर नहीं रहती थी घर की
लड़कों से अमरुद मँगाकर नमक लगाकर खाते रहते
लतखोरों से विद्यालय में बढ़े घास कटवाते रहते
सज्जनता की पूजा करते भावुकता में बड़े प्रबल थे
जूतों से करते थे लम्पट,लुच्चों का सत्कार गुरु जी |
डाई बाल करा रखे थे हरदम क्लीन शेव में रहते
मैडम जी से बतियाते थे नहीं भाव में लेकिन बहते
जैसे ही पेपर आता था बच्चों का उत्साह बढ़ाते
और फेल होने वालों से मिलकर के ढाढ़स बँधवाते
टॉप किये थे तब हमको वो दो सौ रूपये पकड़ाए थे
याद आ रहें आज सुबह से जाने कितनी बार गुरु जी |
शिष्य जगत भर में फैले हैं जिनको गुरु जी स्वयं सँवारे
मगर गुरु जी बरगद के नीचे लेटे हैं टाँग पसारे
कोई नहीं पूछता है अब गुरु जी कैसे बीत रहा है
भीतर भीतर संतुष्टि है वहीं मौत को जीत रहा है
रामचरितमानस पढ़ते हैं सुबह-शाम पूजा करते हैं
भूल गए हैं कर के हम पर एक भारी उपकार गुरु जी |

Friday, May 16, 2025

Vinod pandey ka geet

 


एक गीत ( कवि विनोद पांडेय द्वारा रचित)


या तो साथ चलो मंजिल तक या पहले ही ना कह दो 

कोई स्वप्न अधूरा लेकर के चलना स्वीकार नहीं है 


बंधन मुझको रास नहीं है मगर प्रेम में बंध जाता हूँ 

साथ किसी का हो तो अच्छा मगर अकेले चल पाता हूँ 

भावुक हूँ पर रिक्त नहीं हूँ तुम कोई प्रयोग मत करना 

या तो हाथ पकड़ना कस कर या पगडंडी पाँव न धरना 


सोच समझ कर कदम बढ़ाना, राहों में कांटे बिखरे हैं 

मैं कुछ फूल बिछा भी दूं तो कांटों का प्रतिकार नहीं है ll 


पाँवों से सहमति लेकर के ही उनको पायल पहनाना 

काजल नहीं ठहर पाएंगे मत आंखों को तुम भरमाना 

तय करना है तूफानों में कैसे हम तुम साथ बढ़ेंगे 

मंजिल तक जो साथ चले तो यह तय है इतिहास गढ़ेंगे


फिर भी यदि संकोच कोई हो मुझे विदा मत करने आना

यदि मुझ पर विश्वास नहीं है तो यह भी अधिकार नहीं है ll


इसको एक निवेदन मानो,यह कोई अनुबंध नहीं है 

कुछ कदमों का साथ महज एक परिचय है संबंध नहीं है 

भला पुष्प का जीवन कैसा शामिल जो मकरंद नहीं है 

असमय टूट गए डाली से उन फूलों में गंध नहीं है


साथ टूटने के डर से तो बेहतर होगा एकाकीपन 

जब तक कसम उठा न लो तुम मन मेरा तैयार नहीं है ll


© कवि विनोद पाण्डेय