हिन्दी फिल्म जगत के, आज कल जो हाल चल रहे है,
पूरे बॉलीवुड मे फिल्मों के, नाम के अकाल चल रहे है,
डाइरेक्टर खुद परेशान, अगली फिल्म का नाम क्या रखे,
कुछ नाम रख-रख कर, बार बार बदल रहे है.
सिनेमा मे नाम रखने की, उलझन से अब तो,
उपाय ढूढ़ने लगे है सब तो,
कुछ समंदर किनारे जाकर, नाम सोचते है,
कुछ स्टूडियो मे बैठ कर, बॉल नोचते है.
अब तो डाइरेक्टर भी एक दो लोगो को,
सिनेमाई रोग से भूक्त भोंगो को,
बाकी हर काम से मुक्त करते है,
और बस नाम सुझाने के लिए ही नियुक्त करते है.
वो भी अपने काम से 100% इंसाफ़ करते है,
पूरे दिमाग़ का कचरा यही पर साफ करते है,
ऐसे ऐसे जुगाड़ भिड़ाते है,जोड़ तोड़ कर ,
रख देते है,पूरा नेमिंग कन्वेंसन मरोड़ कर.
तभी तो आज कल देखो,
मायानगरी का नया पहल देखो,
इंग्लीश,हिन्दी सब जोड़ कर नाम बनाते है,
रोमांटिक मूवी भी दर्शको को डराते है.
हॉरर सिनेमा बस ऐसे ही होते है,
थियेटर मे बैठ कर दर्शक सोते है,
दिमाग़ रख कर घर पर मूवी देखने जाओगे,
तभी कॉमिक स्क्रिप्ट का पूरा मज़ा पाओगे.
दिल कबड्डी,आलू चाट,बताओ,कैसे कैसे नाम है,
अब ऐसे नाम का क्या पैगाम है,
वो दिन दूर नही जब ऐसे ही मूवी आते रहेंगे,
प्यार खो खो ,इश्क पोलो ,लोगो के दिल मे समाते रहेंगे.
मोहब्बत की उँची कूद भी सुपरहिट हो जाएगी,
जान जिमनॅस्टिक भी युवाओं का मन बहलाएगी,
नमस्ते क्रिकेट और सलाम-ए-हॉकी भी भाएगी,
लैला मॅंजनू की सीक्वल,लैला तैराकी भी आएगी.
आलू चाट के बाद अब, टमाटर चाट शूट होगा,
पेटीज़,बर्गर,पिज़्ज़ा के लिए मल्टीप्लेक्स मे लूट होगा,
गली,मोहल्ले,चप्पे-चप्पे पर छाएँगे,
जब शाहरुख ख़ान गोलगप्पे मे नज़र आएँगे.
आज जब हम याद करते है,वो दिन
हिन्दी सिनेमा के वो पल छिन,
नाम के अनुरूप ही कहानी चलती थी,
तब नाम में ही समस्त की भावनाएँ पलती थी.
3 comments:
kisi ko to chod do vinod har field par taunt and a poem , but anyways good one.
विनोद जी,
सबसे पहले तो इस बात की बधाई कि कोई बनारसी तो मिला....वरना यहाँ बनारस जैसे साहित्यिक शहर के बलागर गिने चुने ही हैं.....
रचनाएं गुदगुदाती हैं....धन्यवाद
विनोद जी,
जब प्रोड्यूसर ही अस्लीलता का जहर परोस रहें हैं
तो सिनेमा जगत का तो पराभव होना ही है।
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