माँ,माटी का अलख जगा कर,मानुष को भरमाया है,
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
चाहत बस मुठ्ठी भर थी,वो आसमान ही भर डाली,
जीवन रेखा है ग़रीब की रेल,उन्होने समझायी,
करो न्याय अब तुम्ही,ग़रीबों के हिस्से मे क्या आयी,
विश्वस्तरीय स्टेशन से क्या, ग़रीब को मतलब है,
बज़ट बगीचें में उनके जो सबसे सुंदर खिलता था,
उन्हे मिला वो जनरल डिब्बा, जो पहले भी मिलता था,
बज़ट ग़रीबों का जनरल से,कभी नही बढ़ पाया है,
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
मोबाइल वैंनो से टिकटों का खरीद आसान किया,
लंबी दूरी की ट्रेनो मे, ए.सी का अभियान किया,
पेट भरे बस इतना पाते,क्या उनको ये फबती है,
ए. सी.,वे. सी. से उनके तो, मन में आग सुलगती है,
कितने बड़े बड़े किस्सें क्या,इसको सच कर पाएँगी,
कुछ ट्रेनो का रूप बदल कर,दो मंज़िल बनवाएँगी,
रोज़गार तब बढ़ जाएँगे,समझ रहे, इसके माने,
कहने मे आसान बहुत है,सच कर दे तो फिर जाने,
सीधी सादी जनता को, अच्छे से खूब लुभाया है,
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
बना दो हर स्टेशन को तुम चाहे ,जितना भी सुंदर,
समय मिले तो कभी नज़र डालो तुम,ट्रेनो के अंदर,
भ्रष्टाचार वहाँ कितना है,उसके बारे मे सोचो,
छोड़ो बात ग़रीबों की तुम,बाकी बारे मे सोचो,
जहरखुरानों के बारे मे, भी तुम कुछ चर्चा करती,
लूटपाट ट्रेनो मे कम हो, कुछ इस पर खर्चा करती,
ऐसे आतंको को दीदी, जनमानस से दूर करो,
मुक्त करो भय से जनता को,उसको मत मजबूर करो,
मत भूलो उस जनता को,जिसने कुर्सी दिलवाया है,
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
रेल बज़ट इस बार का देखो,दोहरी मानसिकता पाया,
मानव को पीछे छोड़ा और अर्थ का चेहरा दिखलाया,
होटल शॉपिंग कांप्लेक्सों मे पैसें सभी उड़ाएँगे,
धनवर्षा से मंत्रालय के गलियारें भर जाएँगे,
चलो ठीक है चकाचौंध तुम स्टेशन पर करवा दो,
मगर गाँवों के क्रासिंग पर भी,एक-दो फाटक धरवा दो,
लोग जहाँ ट्रेनो को सिटी सुन कर ही डर जाते हैं,
खेल खेल मे नन्हे बचपन, कट कर के मर जाते हैं,
सोचो, माँ की आँखों मे आँसू, क्यों ऐसे आया है.
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
उस दिल का अरमान रखो,जिस दिल ने तुम्हे बसाया है.
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
25 comments:
बहुत सुंदर रचना !!
उस दिल का अरमान रखो,जिस दिल ने तुम्हे बसाया है.
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
बहुत ही सुन्दर है यह पंक्तियाँ .............बहुत ही सही कहा है रेल वजट .....तो कोरी दीदी की माया है .........लाज़बाव
लाजवाब पंक्तियाँ सुन्दर है
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
bahut sahi kaha aapne.badhai!
bahut sunder evam mnoranjak rachna...
सोचो, माँ की आँखों मे आँसू, क्यों ऐसे आया है.
दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है.
वाह वाह क्या अभिव्यक्ति है सुन्दर आभार्
"चलो ठीक है चकाचौंध तुम स्टेशन पर करवा दो,
मगर गाँवों के क्रासिंग पर भी,एक-दो फाटक धरवा दो,
लोग जहाँ ट्रेनो को सिटी सुन कर ही डर जाते हैं,
खेल खेल मे नन्हे बचपन, कट कर के मर जाते हैं,
सोचो, माँ की आँखों मे आँसू, क्यों ऐसे आया है"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...
"दरियादिली नही दीदी की,यह दीदी की माया है"
बहुत खूब! मज़ाक-मज़ाक में बड़ी बात कह दी, बधाई!
बजट फेल पर इस फेल बजट का यह लाभ हुआ है कि एक सुंदर कविता पढ़ने को मिली है। जहां तक भ्रष्टाचार दूर करने की बात है तो रेल के डिब्बों को सीसीटीवी कैमरों से युक्त कर देना चाहिए जो अंधेरों में भी काम करें और टी सी की करतूतों को नंगा सरेआम करें। या तो टी सी रिश्वत देकर बच जाएंगे अथवा लेने से बाज आयेंगे।
लाजवाब पंक्तियाँ सुन्दर
वाहजी आपने बिलकुल सही फरमाया है|
दरियादिली नहीं दीदी की यह माया है||
बोहोत दिनों बाद आपके blog पे आ पायी हूँ ...जो नही पढ़ा गया था , उसमे से कुछ तो पढ़ा , कुछ बचा है ...
कभी,कभी, अपनी सेहत, या कुछ अन्य वजूहात, ऐसे बन जाते हैं, की, निरंतरता नही रख पाती...क्षमा प्रार्थी हूँ...
आप इतनी व्यस्तता के बावजूद लिखते हैं , ये बात सब से अधिक आपके लिए मन में सम्मान जगाती है... ..और सामाजिक दायित्व निभाते हुए,सरलता से लिखते हैं...!
अनेक शुभ कामनाएँ ..!
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एक अदद रेलमंत्री हिमाचल से होगा तो वहां भी रेल चलेगी वरना यूं लगता है कि रेलों की ज़रूरत केवल बिहार ओर बंगाल में ही पड़ती है...
bahut sundar....
लाजवाब ,बहुत सुन्दर है कविता.
धन्यवाद
Lajawaab hai yeh rachnaa........... sachmuch ye mamta ki maaya hai........ darasal har 2 saal baad rail mantri badal dena chahiye..... aur har baad naye prdesh se rail mantri ko laana chahiye.... tabhi poore desh mein railway ka vikaas ho paayega.
Umda Prastuti...bat bhi kah di aur lathi bhi nahin tuti...Kabhi hamare blog par bhi ayen.
आपत्ति उच्च स्तर की सुविधाएँ माल शापिंग कांपलेक्स ए सी उपलब्ध कराने से नहीं है। इनसे प्राप्त धन को निचले तबके के मुसाफ़िरों कि सुविधा में वृद्धि में खर्च करने की जरूरत है। जैसा आपने कहा रेल के दिब्बों के भीतर और ठेके देने में जो भ्रष्टाचार है उसको रोकने के लिए और पुख्ता कदम उठाने होंगे।
बहुत ख़ूबी से सब कुछ बयाँ कर दिया है
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श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग
Acchi lagi lekin kahin kuch adhoorapan saa lagaa....
Keep writing....
ulimate...superb
देर आयद-दुरुस्त आयद...........शानदार.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आभार्
दीदी की दरियादिली, आपकी कविता खिली।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Hi,
Here I read one funny but also admirable best ever creation for railway budget-2009.
ohh,,thanks a lot to share with us.
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