लगातार कई गंभीर कविताओं के बाद आज हम अपनी टूटी फूटी हिन्दी में एक हास्य कविता प्रस्तुत कर रहे हैं, आप सब के आशीर्वाद का इंतज़ार रहेगा जिसके सहारे अभी तक लिखता रहा हूँ.
एक बंदूक दिला दो पापा,बहुत सह चुका अत्याचार,
हैं दिमाग़ के हल्के टीचर, हमको बहुत सताते हैं,
बात बात पर कान पकड़ते, मुर्गा भी बनवाते हैं,
क्लास में रेप्युटेशन की तो,उसने ऐसी तैसी कर दी,
जैसे-तैसे काट रहा था, इज़्ज़त दो पैसे की कर दी,
अब स्कूल तभी जाऊँगा, जब दिलवाओगे हथियार,
टीचर तो टीचर है पापा,बच्चे भी हड़काते हैं,
बिना बात,कमजोर समझ कर,हरदम लड़जाते हैं,
कुर्सी,मेज तोड़ देते हैं,नाम हमारा लग जाता है,
अलग बुला कर प्रेसीडेंट,भी हमको धमकाता है,
पहले उसको ही मारूँगा,बहुत बन रहा है दमदार,
अकल गयी है,घास चरन को,कौन इन्हे समझाएगा,
छूट गये हो जेल से अब तुम, इनको कौन बताएगा,
मम्मी नही चाहती की तुम, फिर से जेल दुबारा जाओ,
रफ़ा,दफ़ा मैं सब कर दूँगा, एक हथियार मुझे दिलवाओ,
इतना लतियाऊंगा सबको,पकड़ेंगे सब चरण हमार,
एक एक को चुन चुन करके,मैं गोली से मारूँगा,
गुंडा बाप का बेटा हूँ,ऐसे ना हिम्मत हारूँगा,
डरते थे सब पहले जितना,फिर से उन्हे डराऊँगा,
आप की पीढ़ी का चिराग हूँ,पूर्वज धर्म निभाऊँगा,
मेरी जमानत करवाने को,बस तुम हो जाओ तैयार,
एक बंदूक दिला दो पापा,बहुत सह चुका अत्याचार,
24 comments:
आपकी भी हिफाजत है सोच लीजिए
वाह वाह पंडित जी
"एक बन्दूक मुझे भी दिला दो अब बहुत सह चुका अत्याचार" ..
बड़ी जोरदार धाँसू पोस्ट है भाई .
आपके पास इस समय जो हथियार है उससे ताकतवर कोई हथियार नहीं है और वो कलम नहीं है आजकल कंप्यूटर का कीबोर्ड और ब्लॉग है। अभी तक इसमें जेल का प्रावधान नहीं जुड़ा है। बच्चों को हिंसा की ओर ले जाने में समर्थ, क्रांति करने वाली रचना है।
शांत गदाधारी भीम शांत...
मज़ेदार रचना
वाह! बहुत बढिया!!
अरे यह किसी नेता की ही ओलाद लगती है, जेस बाप गुंडा, बेटा चार कदम आगे ... राम राम
एक बंदूक दिला दो पापा,बहुत सह चुका अत्याचार,
हैं दिमाग़ के हल्के टीचर, हमको बहुत सताते हैं,
बात बात पर कान पकड़ते, मुर्गा भी बनवाते हैं, क्लास में रेप्युटेशन की तो,उसने ऐसी तैसी कर दी, जैसे-तैसे काट रहा था, इज़्ज़त दो पैसे की कर दी,
बहुत बढ़िया हास्य लिखा है पाण्डेय जी!
आपने तो फिर से बचपन में पहुँचा दिया।
बधाई।
बेहद खुबसूरत है आपके सम्वेदना संसार क्योकि यह कविता कई राज्यो के हाल बयान कर रही है......एक समसामयिक रचना!बधाई ....विनोद जी!
hahahahahahahaha.....papa dila do na bachche ko bandook....... mazaa aa gaya padh kar............
"एक बंदूक दिला दो पापा,बहुत सह चुका अत्याचार,"
विनोद जी, बहुत सुन्दर, और सोच रहा हूँ कि सच में अब इसकी जरुरत भी महसूस होने लगी है !
acha hai yar keep it up..............
बहुत ही अच्छी रचना ।
Pandit Ji,
Dil khush ho gya...din b din behatar with different tastes...really dear..u r a long run horse..
ha ha bahut hi badhiya rachana:),kaash hame banduk milti ab school mein thay,sabse pehle ganit ke master ji:)..
वाह बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने! बिल्कुल सच्चाई को शब्दों में पिरोया है ! आजके ज़माने में बच्चों को खेलने के लिए गाड़ी नहीं बल्कि बन्दूक देने की ज़िद करते हैं और ये अक्सर बिगड़े हुए बच्चे ही करते हैं !
बहूत खूब विनोद जी ......... आपका हास्य भी कमाल का है ......... बचपन की यादों को भी अच्छा लपेटा है ..........
वाह ये है जज्बा बाप का नाम रोशन करने का भाई कमाल की पोस्ट है बधाई !!
जैसे ही पापा दिला दें ..हमें बताईयेगा..उ मे लगाने वाला .पटाखा वाला रोलवा होता है न..दस ठो डिब्बी वाला ऊ हम गिफ़्ट कर देंगे बच्चा को ..अरे हमरा भी कुछ फ़र्ज़ है कि नहीं..
बहुत ही अच्छी रचना.बधाई !!
वाह क्या बात है आपने सामाजिक मुद्दों पर बन्दूक उठा रखी है तो बेटा क्यों पीछे रहे उसे जो बात बुरेe ीअगेगी उसी के खिलाफ तो बोलेगा न। व्यंग अच्छा है आभार्
भाई इतनी गम्भीर कविता को आप हास्य कविता कह रहे हैं ?
बच्चे के बहाने आजकी विद्रूपताओं का सटीक चित्रण प्रस्तुत किया है आपने।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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माँ खादी की चादर दे दे मै गान्धी बन जाउंगा :" से यह यात्रा अब य्हाँ तक पहुंच गई है । हे राम !!!
good one bro!
mast likha hai.
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