मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने
चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Tuesday, November 29, 2016
नोटबंदी पर हास्य कविता ----(विनोद कुमार पांडेय )
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