Sunday, July 19, 2009

रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ, चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|


रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,

चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|


यह न पूछो हुआ,

कब व कैसे कहाँ,

धड़कनों की गुज़ारिश थी,

मैं चल पड़ा,

बेड़ियाँ थी पड़ी,

ख्वाइसों पर बड़ी,

उल्फतों के मुहाने पे,

मैं था खड़ा,

कुछ न आया नज़र,

बस यहीं था लहर,

ढूढ़ लूँगा कही,

मैं कभी ना कभी,


इस ज़मीं पर नही,आसमाँ मे सही,

बादलों के शहर मे ठिकाना हुआ|


रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,

चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|


इश्क मजबूर था,

प्यार मे चूर था,

जब हुआ था असर,

तब हुई ना खबर,

खामखाँ बीती रातें,

वो मोहब्बत की बातें,

कर रही थी पहल,

मन रहा था मचल,

हमनशीं,हमनवां,

क्या पता है कहाँ,

जो मिले गर सनम,

ए खुदा की कसम,


कह दूं सब कुछ बयाँ,

जो कभी मुझसे उस पल बयाँ ना हुआ|


रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,

चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|


सच कहूँ,अब लगा,

उसमे कुछ बात थी,

सूख सावन रहा,

जिसमे बरसात थी,

सोच मे मैं रहा,

बेखुदी ने कहा,

जो थी दिल मे बसी,

चाँद सी थी हसीं,

क्या पता वो कहाँ,

चाँद का कारवाँ,

अब सजाती हो वो,

छुप के हौले से,


मुझको बुलाती हो वो,

जिसको देखे कसम से जमाना हुआ,


रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,

चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|


अब तो ये आस है,

एक विश्वास है,

वो छुपी हो भले,

चाँद तो पास है,

सोचकर आजकल,

साथ लेकर ग़ज़ल,

आसमाँ की गली,

रोज जाता हूँ मैं,

जिंदगी ख्वाब से,

अब बनाता हूँ मैं,


जिस हसीं ख्वाब से,दिल बहलता न था,

अब वहीं दिल्लगी का बहाना हुआ,


रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,

चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|

20 comments:

श्यामल सुमन said...

खूबसूरत गीत है। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

ओम आर्य said...

waah waah waah waah ........bahut hi sundar abhiwyakti

नीरज गोस्वामी said...

विनोद जी आपने अद्भुत रचना लिखी है...वाह...शब्द शब्द दिल पर असर करती हुई...आनंद आ गया...
नीरज

अविनाश वाचस्पति said...

बेहतरीन भाव।

निर्मला कपिला said...

आपने जज़्वातों को बहुत सुन्दर शब्द दिये हैं बहुत ही भावमय कविता है बहुत बहुत शुभकामनायें

Rohit Khetarpal said...

इस बार तो आपने कुछ अलग ही लिखा है| कहीं कोई पुरानी गर्लफ्रेंड तो नही याद आ रही भाई|कुछ तो है और वो बताना तो पड़ेगा :-)|इस बार तो कोई संदेश देती कविता नही लाए,क्या कुछ अलग करने की कोशिश थी|

mehek said...

behad behad khubsurat ehsaas,har lafz sunder

अनिल कान्त said...

बहुत अच्छा लिखा है भाई ...

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

सुरभि said...

बहुत खूबसूरत ...आभार!

Anonymous said...

Heart touching poem...

वीरेन्द्र जैन said...

रकीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में
कि अकबर नाम लेता है खुदा का इस जमाने में
कमाल है आप इस ज़माने में भी ऐसी शायरी कर लेते हैं

दिगम्बर नासवा said...

Lajawaab rachnaa hai .....kuch alag hat kar likha hai aapne...... pyaar mein aksar raat haseen lagne lag jaati hai........

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुंदर भावपक्ष.... निरन्तरता बनाए रखें... शुभ-शुभ..

Mumukshh Ki Rachanain said...

अत्यत मनमोहक, भावपूर्ण सुन्दर गीत.
हार्दिक बधाई.

Prem Farukhabadi said...

सच कहूँ,अब लगा,
उसमे कुछ बात थी,
सूख सावन रहा,
जिसमे बरसात थी,
सोच मे मैं रहा,
बेखुदी ने कहा,
जो थी दिल मे बसी,
चाँद सी थी हसीं,
क्या पता वो कहाँ,
चाँद का कारवाँ,
अब सजाती हो वो,
छुप के हौले से,
मुझको बुलाती हो वो,
जिसको देखे कसम से जमाना हुआ,
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|

bahut hi sundar bhav. badhai vinod ji .

महेन्द्र मिश्र said...

बढ़िया भावपूर्ण रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जिन्दंगी स्वप्न में, आज पाता हूँ मैं।
दिल के बीहड़ नगर को,सजाता हूँ मैं।
रात से मेरा रिश्ता, पुराना हुआ।
चाँद के द्वार पे, आना-जाना हुआ।।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

सदा said...

बहुत ही गहरे भाव लिये हुये बेहतरीन रचना ।

Vinay said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना है!
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

अजित गुप्ता का कोना said...

भाई आप तो बडे छुपे रुस्‍तम हैं, चाँद के यहाँ आना-जाना है और दुनिया को पता भी नहीं। चलिए आपको आपका चाँद मुबारक।