मित्रों,हास्य-व्यंग्य से थोडा हटकर एक ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ । अच्छा लगे तो आशीर्वाद दीजियेगा।|
दर्द ही जब दवा बन गई
मुस्कराहट अदा बन गई
राह इतनी भी आसाँ न थी
जिद मगर हौसला बन गई
सीख माँ ने जो दी थी मुझे
उम्र भर की सदा बन गई
संग दुआ जो पिता की रही
बद्दुआ भी दुआ बन गई
पाप कहते थे जिसको कभी
छल-कपट अब कला बन गई
झूठ वालों की इस भीड़ में
बोलना सच बला बन गई
चाँद से चाँदनी क्या मिली
रात वो पूर्णिमा बन गई
चूमना है गगन एक दिन
ख्वाब अब प्रेरणा बन गई
दर्द ही जब दवा बन गई
मुस्कराहट अदा बन गई
राह इतनी भी आसाँ न थी
जिद मगर हौसला बन गई
सीख माँ ने जो दी थी मुझे
उम्र भर की सदा बन गई
संग दुआ जो पिता की रही
बद्दुआ भी दुआ बन गई
पाप कहते थे जिसको कभी
छल-कपट अब कला बन गई
झूठ वालों की इस भीड़ में
बोलना सच बला बन गई
चाँद से चाँदनी क्या मिली
रात वो पूर्णिमा बन गई
चूमना है गगन एक दिन
ख्वाब अब प्रेरणा बन गई
24 comments:
वाह.... बहुत सुंदर गज़ल
Zid hamesha hausala banee rahe!
Very nice Vinod San :)
Very nice :)
विनोद जी ... बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह व्यंग का पुट लिए शेर ...
Amazing.. Hamesha ki tarah.. ek lajawab kavita..
पाप कहते थे जिसको कभी
छल-कपट अब कला बन गई
झूठ वालों की इस भीड़ में
बोलना सच बला बन गई
WAH WAH....
Amazing....
पाप कहते थे जिसको कभी
छल-कपट अब कला बन गई
झूठ वालों की इस भीड़ में
बोलना सच बला बन गई
WAH WAH KYA BAAT HAI..BAHUT KHOOOB...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल --अंतिम लाइन में -- "प्रेरणा अब ख्वाब बन गयी" कर दीजिये !
सादर निमंत्रण,
अपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें
बहुत बढ़िया ...
चाँद से चाँदनी क्या मिली
रात वो पूर्णिमा बन गई .
वाह भाई साहब वाह ..कमाल कर दिया आपने ... मैंने "नई-पुरानी हलचल" पर भी इस पोस्ट के लिए टिप्पणी की है।
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है बेतुकी खुशियाँ
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13 -12 -2012 को यहाँ भी है
....
अंकों की माया .....बहुतों को भाया ... वाह रे कंप्यूटर ... आज की हलचल में ---- संगीता स्वरूप
. .
बहुत सुंदर बिल्कुल दिल को छूने वाली ...बधाई .आप भी पधारो
http://pankajkrsah.blogspot.com
स्वागत है
झूठ वालों की इस भीड़ में
बोलना सच बला बन गई
तेरा मुस्कुराना कज़ा ( बन )गई .
छोटी बहर की बड़ी गज़ल .
झूठ वालों की इस भीड़ में
बोलना सच बला बन गई
तेरा मुस्कुराना कज़ा ( बन )गई .
छोटी बहर की बड़ी गज़ल .
utam-***
संग दुआ जो पिता की रही
बद्दुआ भी दुआ बन गई
भावपूर्ण शब्द ! लाजवाब शे'र !
पाप कहते थे जिसको कभी
छल-कपट अब कला बन गई
सही बात कहने का सही सलीका …
क्या बात है !
चाँद से चाँदनी क्या मिली
रात वो पूर्णिमा बन गई
बड़ा प्यारा शे'र है भाई !
सहज और सरल भाव !
विनोद कुमार पांडेय जी
आपकी पिछली कुछ पोस्ट्स आज पढ़ीं… तरही वाली ग़ज़ल भी , हास्य रचना भी
…सारी रचनाओं के लिए बधाई और मंगलकामनाएं !
…आपकी लेखनी से श्रेष्ठ सुंदर सार्थक रचनाओं का सृजन होता रहे …
शुभकामनाओं सहित…
पाप कहते थे जिसको कभी
छल-कपट अब कला बन गई
sahi kha hai ...sundar rachna
bahut bahut aabhar
राह इतनी भी आसाँ न थी
जिद मगर हौसला बन गई
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
चाँद से चाँदनी क्या मिली
रात वो पूर्णिमा बन गई
काफ़ी पोजिटिव थिन्किन्ग के साथ लिखी गई ग़ज़ल!
वाह!
bahut sundar
एक अलग अनुभूति का एहसास कराती हुई एक सुन्दर रचना, सुन्दर छन्दमुक्त रचना जिसे बार बार पढ़ने का मन होता है। धन्यवाद संगीता जी|
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
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