आज सिर्फ कुछ मुक्तक प्रस्तुत करता हूँ ।
1) मुझे इस बात की बिलकुल नहीं फिकर
है मेरे दोस्तों की आजकल टेढ़ी नजर
मैं तो हैरान हूँ यह सोचकर तब से
कि वो नाराज है इंसानियत की बात पर
है मेरे दोस्तों की आजकल टेढ़ी नजर
मैं तो हैरान हूँ यह सोचकर तब से
कि वो नाराज है इंसानियत की बात पर
2) उन्हें आसमान चाहिए, जिन्हें ऊँचाइयों से डर है
खुद में है गुम वो, जिस शख्स पे सबकी नजर है
अब आदमी भी किसी तिलिस्म से कम नहीं यारों
उसे खुद की खबर नहीं है,जिसे सबकी खबर है
अब आदमी भी किसी तिलिस्म से कम नहीं यारों
उसे खुद की खबर नहीं है,जिसे सबकी खबर है
3) ख्यालों में डूबी फ़िज़ा चाहता हूँ,
मैं अपना अलग आसमाँ चाहता हूँ |
दुखे दिल किसी का जो मुझसे कभी,
उसी पल मैं उसकी सज़ा चाहता हूँ |
दुखे दिल किसी का जो मुझसे कभी,
उसी पल मैं उसकी सज़ा चाहता हूँ |
4) गण सारे गड़बड़ हुए,हुआ प्रदूषित तंत्र,
भ्रष्टाचार बन गया सबका,धन उपजाऊँ मंत्र|
तीन गुना भुखमरी बढ़ गई,बढ़ी ग़रीबी पाँच,
ये तो रही तरक्की अपनी,जब से हुए स्वतंत्र||
भ्रष्टाचार बन गया सबका,धन उपजाऊँ मंत्र|
तीन गुना भुखमरी बढ़ गई,बढ़ी ग़रीबी पाँच,
ये तो रही तरक्की अपनी,जब से हुए स्वतंत्र||
5) अंधों को माँ नई रोशनी, गूँगो को संवाद दीजिए,
मूर्खों के दिमाग़ में थोड़ी, बुद्धि-वर्धक खाद दीजिए,
नही चाहिए और हमें कुछ, एक अर्ज़ है माँ तुमसे,
रहे ठसाठस पर्स हमेशा, ऐसा आशीर्वाद दीजिए
मूर्खों के दिमाग़ में थोड़ी, बुद्धि-वर्धक खाद दीजिए,
नही चाहिए और हमें कुछ, एक अर्ज़ है माँ तुमसे,
रहे ठसाठस पर्स हमेशा, ऐसा आशीर्वाद दीजिए
3 comments:
2) उन्हें आसमान चाहिए, जिन्हें ऊँचाइयों से डर है
खुद में है गुम वो, जिस शख्स पे सबकी नजर है
अब आदमी भी किसी तिलिस्म से कम नहीं यारों
उसे खुद की खबर नहीं है,जिसे सबकी खबर है
Mujhe aasmaan zaroor chahiye lekin uchayiyonse dar nahi!Pata nahi naseeb hoga ya nahi!
अंधों को माँ नई रोशनी, गूँगो को संवाद दीजिए,
मूर्खों के दिमाग़ में थोड़ी, बुद्धि-वर्धक खाद दीजिए,
आज तो बहुत जरूरत है इस की ... लाजवाब हैं सभी मुक्तक विनोद जी ...
बहुत अच्छे मुक्तक हैं ..बधाई
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