आज राष्ट्रपति चुनाव भी अखाड़ा हो गया है ,दांवपेंच की आजमाइश चरम पर है |जो रिंग के भीतर जाने वाला है ,वो इस खेल के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता और बाहर बैठे उस्ताद दाँव में माहिर हैं | इन बाहर वालों की ही कलाकारी है कि कुछ पारम्परिक लड़ाकू अखाड़े में उतरने से पहले ही चित्त हो गए या कर चित्त कर दिए गए |
सब उस्ताद लोगों ने अपने-अपने समर्थित, पोषित एवं शोषित शीर्षस्थ लड़ाकू को अखाड़े में मिट्टी पोत कर उतार दिया है और वो स्वयं बाहर बैठ कर उम्मीदवार के सामाजिक गुणों की चर्चा करते हुए उसे परिणाम पूर्व ही विजेता घोषित करने पर तुले हैं | जिन्हें लड़ना है ,उनके चेहरे से उत्साह गायब है क्योंकि उनकी वास्तविक योग्यता को पीछे रखकर उन बातों पर जोर दिया जा रहा है जो सामाजिक अखंडता पर ठोकर मारता है |
राजनीति ऐसी थी पर राष्ट्रपति चुनाव ऐसा नहीं हुआ था,कौन सा राजनैतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ है ? समझ से परे है | यह सिर्फ एक ईगो है वर्ना जो देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाला हो उसके चयन में मल्ल्युद्ध की क्या आवश्यकता है ? ,उसे तो निर्विवाद रूप से उस कुर्सी पर बैठना चाहिए क्योंकि वो भारत का प्रथम व्यक्ति है | वो सामाजिक कसौटी पर खरा उतरता तो हो पर जातीय और सम्र्पदाय से परे हो ,वह लोगों का आदर्श हो ,इस देश का आदर्श हो ताकि देश के इतिहास में उसका व्यक्तित्व सुरक्षित हो जाये और देश उसको कभी भूल न पाए |
--विनोद पांडेय
3 comments:
यही हमारे देश का दुर्भाग्य है कि राष्ट्रपति का चुनाव भी जाति के आधार पर वोट बैंक की राजनीति से हो रहा है।
सही कहा आपने.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बात तो सही कह रहे हो मगर इन नेताओं को ही यह प्रणाली रास आती है..कौन बदलेगा इसे..
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
Post a Comment