मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने
चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
Wednesday, December 17, 2014
ट्रैन लेट हो गई ----(विनोद कुमार पाण्डेय )
काश भारतीय रेल में कुछ ऐसी सुविधा होती कि हम ड्राइवर से कहते भाई चाहो तो सौ-पचास रुपये ज्यादा ले लो ,पर गाड़ी थोड़ा और तेज भगा लो
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