बाबू जी सेवानिवृत्त हो गये हैं
हाथों में सब्जी का थैला,
अंतर्मन में सवालों का झमेला,
उलझते, रीझते,खीझते,
और कभी मुस्काते ,
गोलमटोल आँखों में,
एक उम्मीद लिए,
कभी इस कभी उस दुकान जाते,
इधर-उधर,भागते,मोल भाव करते,
बहू -बेटे की कमाई के चार पैसे,
बचाने की जद्दोजहद में कितनी तल्लीनता से लिप्त हो गये हैं,
और बेटा-बहू कहते हैं कि बाबू जी सेवानिवृत्त हो गये हैं.
कड़कड़ाती ठंड में,
भोर तक काँप उठती है,
ओस की बूंदें,
बर्फ -सी लगती हैं,
नींद खुद उनींदी सी होती है,
ख्वाब एक छोटे अंतराल के लिए,
ठहर जाता है,
उस वक्त बाबू जी दूध और अख़बार,
की साज संभाल में लगे होते हैं,
घने कुहरे और ठंडी हवाओं के बीच,
सब कर्तव्य पिता के, सदैव बखूबी निभाते रहे,
अनगिनत खुशियों से हर पल जिनका सँवारते रहे,
आज वही भावनाओं से रिक्त हो गये हैं,
और बेटा-बहू कहते हैं कि बाबू जी सेवानिवृत्त हो गये हैं.
चाय के हल्के हल्के घूँट,
और एक सुखद अध्याय का आरंभ,
रोज पोते को स्कूल छोड़ना,
एक हसीन पल,
तेज कदमों के साथ,
बहकते हुए चलना,मचलना,
वृद्धावस्था का चंचल,
बचपन में बदलना,
दादा जी- दादा जी जैसे,
मोहक शब्द
तोतली आवाज़ और मुस्कान
के साथ कानों में घुलना,
स्नेह का सच्चा दर्शन लगते हैं,
अन्यथा प्रेम,श्रद्धा,आदर अब सब विलुप्त हो गये हैं,
और बेटा-बहू कहते हैं कि बाबू जी सेवानिवृत्त हो गये हैं.
वर्तमान की वीरनियों में,
अतीत की झनकार तो होती है,
पर अब उतनी नहीं गुदगुदाती,
बस याद भर कौंध जाती है,
जीवन के इस मोड़ पर आ गये,
जहाँ आवश्यकता निरकर्थता की ओर अग्रसर है,
उम्र समय के असर से बेखबर है
सब कुछ स्थिर है
परंतु आज भी,
यह मन जीवन के अंतिम पल तक यहीं,
अपनों के बीच में ही रहने ज़िद पाले बैठा है
यद्यपि समस्त इच्छाओं से मन तृप्त हो गये हैं,
और सब कहते हैं कि बाबू जी सेवानिवृत्त हो गये हैं .
(विनोद कुमार पांडेय )
#विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रिय हिंदी कविता प्रतियोगिता-2013 में भारत भौगोलिक जोन के अन्तर्गत प्रथम स्थान प्राप्त/पुरस्कृत कविता .
2 comments:
बहुत खूबसूरत रचना
आज तो अलग ही रंग में डूबी है लेखनी...बहुत ही सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति
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