चंद लम्हें थे मिले,भींगी सुनहरी धूप में, हमने सोचा हँस के जी लें,जिन्दगानी फिर कहाँ
मुक्तक - 4
हालात बड़े ही बुरे दिखने लगे हैं अब
जनता गुहार कर रही,सरकार संभाले
सरकार इसी कश्मकश में जूझ रही है
बीमार संभालें या बाजार संभालें
---विनोद पाण्डेय
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