(बालगीत)
मम्मी वो जूता दिलवा दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है
पापा से कह कर मँगवा दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है
जाड़े में जो दिलवाया था
वो जूता अब टूट रहा है
पैरों में हरदम रहता था
जाने क्यों अब रूठ रहा है
मुश्किल है अब इसे पहनना
अब तो जूता नया चाहिए
इसके साथ-साथ ही सुन लो
मोज़ा भी अब नया चाहिए
चाचा जी बाज़ार जा रहें हैं
तो वो ही ले आएँगे ।
उनको ही यह सब समझा दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है l
मेरा जूता चुप रहता है
टिंकु का चूँ चूँ करता है
सब उसको देखते ध्यान से
मेरा दिल धूँ धूँ करता है
मेरी भी अब यहीं चाह है
मेरा जूता चूँ चूँ बोले
उछलूँ-कूदूँ उसे देखकर
सबका ध्यान मुझी पर डोले
लाइट भी हो जो जलती हो
जब मैं कदम बढ़ाऊँ तो
मामा से भी यह बतला दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है
नहीं चाहिए कपड़ा मुझको
नहीं चाहिए कोई खिलौना
जूता नहीं दिलाया तो फिर
ख़ूब करूँगा रोना-धोना
उसे पहनकर नानी के घर
छुट्टी में जब जाऊँगा
ज़ोर ज़ोर से कूद कूद कर
सबका मन बहलाऊँगा
इंतज़ार है उस जूते का
जो सबके मन भाएगा
मम्मी इसी महीने ही ला दो
जो चूँ चूँ चूँ चूँ करता है l
--विनोद पाण्डेय
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